ब्लॉग: चीन के चक्रव्यूह में फंसते भारत के पड़ोसी, श्रीलंका और बांग्लादेश की तरह नेपाल का भी कम हो रहा विदेशी मुद्रा भंडार
By राजेश बादल | Published: November 22, 2022 10:30 AM2022-11-22T10:30:52+5:302022-11-22T12:04:56+5:30
चेतावनी गंभीर है. अभी तक बांग्लादेश बचा हुआ था, लेकिन अब वह भी गिरफ्त में आ गया. चीन के चक्कर में आत्मघाती रास्ते पर चल पड़ा है. मुश्किल है कि उसे समझ में तो आ गया, मगर चीनी चक्रव्यूह से बाहर कैसे निकले, वह नहीं समझ पा रहा है. बांग्लादेश के वित्त मंत्री मुस्तफा कमाल का ताजा बयान इसका सबूत है. उनके इस बयान ने अनेक देशों में खलबली मचा दी है.
मुस्तफा कहते हैं कि चीन अपने कर्ज जाल में फांसकर गरीब देशों को तबाह कर रहा है. छोटे मुल्कों को चीन के कर्ज से बचना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि चीन की शर्तें बेहद खराब और सख्त हैं. उनमें पारदर्शिता नहीं है. उनसे बेईमानी की बू आती है. वित्त मंत्री का बयान इसलिए भी गौरतलब है कि वे पहले वित्त मंत्री हैं, जिन्होंने अपनी सरकार की ओर से अधिकृत बयान दिया है.
अभी तक चीनी ऋण के मारे मुल्क उसके आगे चूं तक नहीं करते थे. वे जानते थे कि अब इस कर्ज जाल से बाहर निकलना उनके लिए कठिन है. इसलिए चुप्पी साधे अपनी बर्बादी देखते रहते थे. पहले पाकिस्तान और उसके बाद श्रीलंका का हाल सारी दुनिया देख रही है. बांग्लादेश ने पहली बार यह साहस दिखाया है.
बांग्लादेश की स्थिति को तनिक विस्तार से समझना होगा. जब मुस्तफा कमाल कहते हैं कि चीन का बेल्ट एंड रोड अच्छा है तो उसका मतलब चीन के अपने हितों के बारे में है. लेकिन वे आगे खुलासा करते हैं कि इसी परियोजना के कारण छोटे और विकासशील राष्ट्र तबाह हो रहे हैं. चीन एक बड़ा देश है. वह जो धन इस परियोजना में पूंजी के तौर पर लगा सकता है, उतना कई देशों का साल भर का बजट है. ऐसे में छोटे और मंझोले देश अपनी प्राथमिकताओं को पीछे धकेल देते हैं और चीन के चंगुल में फंस जाते हैं.
बेल्ट एंड रोड में करीब सत्तर देशों को जोड़ने का इरादा है. उन्हें रेल, सड़क और समुद्री मार्गों के जरिये आपस में जोड़ा जाएगा. छह साल पहले बांग्लादेश इस परियोजना में शामिल होने को राजी हुआ. बांग्ला प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच करार हुआ. कुल छब्बीस अरब डॉलर में से 14 अरब डॉलर संयुक्त रूप से खर्च किए जाने थे. इसी बीच रूस और यूक्रेन के बीच जंग छिड़ गई. बांग्लादेश में पेट्रोल, डीजल तथा कच्चे तेल के अन्य उत्पादों की कीमतें आसमान में जा पहुंची.
बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार चालीस अरब डॉलर से भी कम रह गया है. यानी मुल्क के पास केवल चार-पांच महीने तक आयात करने लायक भंडार बचा है. अब वह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष समेत अनेक बड़ी संस्थाओं के आगे सहायता के लिए गिड़गिड़ा रहा है. उसका संकटकालीन फंड चीन के साथ परियोजना में खर्च हो चुका है. यही उसका संकट है. भारत से भी उसने मदद की गुहार की है. इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि बांग्लादेश आज रेडीमेड वस्त्रों का सबसे बड़ा निर्यातक है और उसके लिए सारा कच्चा माल यानी कॉटन भारत से जाता है. यदि भारत भी कॉटन देने से मना कर दे तो बांग्लादेश की हालत और खराब हो जाएगी. ऐसे में वह भारत से उधार माल चाहेगा.
बांग्लादेश के बाद आइए नेपाल की ओर. रविवार को नेपाल में नई संसद और विधानसभाओं के लिए मतदान हुआ. इस पूरे चुनाव प्रचार में चीन की भूमिका का भी बड़ा मुद्दा छाया रहा. सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस के मुखिया और प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा भारत के प्रति सहानुभूति रखने वाले माने जाते हैं और चीन के नेपाल में बढ़ते आर्थिक प्रभाव को पसंद नहीं करते. लेकिन सरकार में शामिल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (सीपी एनएमसी) के सर्वेसर्वा पुष्प कमल दहल प्रचंड का चीन के प्रति मोह जगजाहिर है.
उनके सामने पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के नेतृत्व में विपक्ष का गठबंधन है. इसमें कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल - यूनाइटेड मार्कसिस्ट (सीपीएन- यूएमएल) के साथ राजशाही समर्थक और हिंदूवादी पार्टी राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) है जो 150 सीटों पर एफपीटीपी व्यवस्था के तहत चुनाव लड़ रही है. विपक्ष के मोर्चे में भी वैचारिक अंतर्विरोध छिपे नहीं हैं. दोनों पक्षों में अंदर-अंदर चीन के समर्थन और विरोध के सुर उभरते रहे हैं. इस बार नेपाल में महंगाई आसमान पर है और अवाम इसके लिए चीन को जिम्मेदार मानती है.
चीन के बेल्ट एंड रोड पर भी नेपाल की सियासत बंटी हुई है. मगर बहुमत यह मानता है कि नेपाल ने 2017 में जो समझौता चीन से किया था, उसने नेपाल की हालत खस्ता कर दी है. यही नहीं, चीन से आने वाले सामान पर नेपाल में कोई कर नहीं लगता. इस एकतरफा सौदे में नेपाल को घाटा ही है. लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के बावजूद वह चीनी माल पर कोई टैक्स नहीं लगा पा रहा है. अब चीन नेपाल सरकार पर यह दबाव डाल रहा है कि पाकिस्तान की तरह वहां भी चीनी मुद्रा प्रचलन में आ जाए. इससे नेपाल को कोई लाभ नहीं होने वाला है.
चीन के इस असर का परिणाम है कि श्रीलंका और बांग्लादेश की तरह नेपाल का भी विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा है. मौजूदा हाल में नेपाल लगभग छह महीने ही आयात की स्थिति में है. छह-सात महीने पहले नेपाल का विदेशी मुद्रा भंडार 975 करोड़ डॉलर था. इसमें लगातार गिरावट आई है. यदि पिछले साल से तुलना करें तो करीब 1200 करोड़ डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार के साथ नेपाल बेहतर स्थिति में था. कोई पच्चीस हजार करोड़ नेपाली रुपए की भंडार में कमी देश की चिंता बढ़ाती है.
भारत के इन तीनों पड़ोसियों पर चीन अब अपने कर्ज की वसूली के लिए दबाव डाल रहा है. इन मुल्कों की हालत अभी ऋण चुकाने की नहीं है. बांग्लादेश ने चार अरब डॉलर का कर्ज लिया है. श्रीलंका को चीन के 37000 करोड़ रुपए चुकाने हैं और नेपाल पहले ही चीन के 6. 67 अरब रुपए के कर्ज में डूबा है.