जी-7 सम्मेलन: कंगाल मालिकों का तमाशा, कुमार प्रशांत का ब्लॉग 

By कुमार प्रशांत | Published: June 16, 2021 02:50 PM2021-06-16T14:50:53+5:302021-06-16T14:53:27+5:30

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने महामारी से सीख लेने के संदेश के साथ कॉर्नवाल में शुक्रवार को जी-7 शिखर सम्मेलन का उद्घाटन किया और आगाह किया कि 2008 की आखिरी बड़ी आर्थिक मंदी की भूल को दोहराने की जरूरत नहीं है.

G-7 countries summit 10 percent people occupy 40 percent resources kumar prashant blog | जी-7 सम्मेलन: कंगाल मालिकों का तमाशा, कुमार प्रशांत का ब्लॉग 

ब्रेक्जिट के बाद का इंग्लैंड भी चीन के साथ आर्थिक व्यवहार बढ़ाना चाहता है. (फाइल फोटो)

Highlightsसमाज के सभी हिस्से में एक समान विकास नहीं हो रहा.जी-7 में ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान के साथ यूरोपीय संघ शामिल हैं.हमें अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए उपाय करने होंगे.

अपने को दुनिया का मालिक समझने वाले जी-7 के देशों का शिखर सम्मेलन इंग्लैंड के कॉर्नवाल में कब शुरू हुआ और कब खत्म, कुछ पता चला क्या?

हम दुनिया वालों को तो पता नहीं चला, उनको जरूर पता चला जो दुनिया का मालिक होने का दावा करते हैं : अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और इंग्लैंड. इन मालिकों के हत्थे दुनिया की जनसंख्या का 10 प्रतिशत और दुनिया की संपत्ति का 40 प्रतिशत आता है.

अब यहीं पर एक सवाल पूछना बनता है कि जो 10 प्रतिशत लोग हमारे 40 प्रतिशत संसाधनों पर कब्जा किए बैठे हैं, उनकी मालिकी कैसी होगी और वे हमारी कितनी और कैसी फिक्र करेंगे? दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या का हिसाब करें कि सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का तो इस सम्मेलन में चीन की अनुपस्थिति का कोई तर्क नहीं बनता है.

हम अपने बारे में कहें तो हम भी जनसंख्या व अर्थव्यवस्था के लिहाज से इस मजलिस में शामिल होने के पूर्ण अधिकारी हैं. लेकिन आकाओं ने अभी हमारी औकात इतनी ही आंकी कि हमें इस बार ऑस्ट्रेलिया व दक्षिणी कोरिया के साथ अपनी खिड़की से झांकने की अनुमति दे दी.

अगर जी-7 को जी-8 या जी-9 न बनने देने की कोई जिद हो तो फिर इसमें चीन और भारत की जगह बनाने के लिए इटली और कनाडा को बाहर निकालना होगा. इन दोनों की आज कोई वैश्विक हैसियत नहीं रह गई है. आखिर 1998 में आपने रूस के लिए अपना दरवाजा खोला ही था न, जिसे 2014 में इसलिए बंद कर दिया कि रूस ने क्रीमिया को हड़प कर अपना अलोकतांत्रिक चेहरा दिखाया था.

लेकिन जब योग्यता-अयोग्यता की एक ही कसौटी हो कि आप अमेरिका की वैश्विक योजना के कितने अनुकूल हैं, तब कहना पड़ता है कि हम जहां हैं, वहां खुश हैं, आप अपनी देखो! जिस दुनिया की मालिकी का दावा किया जा रहा है, उस दुनिया को देने के लिए और उस दुनिया से कहने के लिए जी-7 के पास भी और हमारे पास भी है क्या?

हमने और हमारे मालिकों ने तो यह सच्चा आंकड़ा देने की हिम्मत भी नहीं दिखाई है कि कोरोना ने हमारे कितने भाई-बहनों को लील लिया? अगर ऐसी सच्चाई का सामना करने की हिम्मत हमारे मालिकों में होती तो यह कैसे संभव होता कि जी-7 के हमारे आका कह पाते कि हम गरीब मुल्कों को एक बिलियन या 100 करोड़ वैक्सीन की खुराक देंगे?

अगर हम आज दुनिया की जनसंख्या 10 अरब भी मानें तो भी हमें 20 अरब वैक्सीन खुराकों की अविलंब जरूरत है. अब तो हम यह जान चुके हैं न कि 10 अरब लोगों में से कोई एक भी वैक्सीन पाने से बच गया तो वह संसार में कहीं भी एक नया वुहान रच सकता है. ऐसे में जी-7 यह भी नहीं कह सका कि जब तक एक आदमी भी वैक्सीन के बिना रहेगा, हम चैन की सांस नहीं लेंगे.

कोविड ने यदि कुछ नया सिखाया है हमें तो वह यह है कि आज इंसानी स्वास्थ्य एक अंतरराष्ट्रीय चुनौती है जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता जरूरी है. वैसी किसी प्रतिबद्धता की घोषणा व योजना के बिना ही जी-7 निबट गया. यह जरूर कहा गया कि कोविड का जन्म कहां हुआ इसकी खोज की जाएगी. यह चीन को कठघरे में खड़ा करने की जी-7 की कोशिश है.

जी-7 ने नहीं कहा कि वह कोविड के मद्देनजर वैक्सीनों पर से अपना एकाधिकार छोड़ता है और उसे सर्वसुलभ बनाता है. उसने यह भी नहीं कहा कि वैक्सीन बनाने के कच्चे माल की आपूर्ति पर उसकी तरफ से कोई प्रतिबंध नहीं रहेगा. उसने यह जरूर कहा कि सभी देश अपना कॉर्पोरेट टैक्स 15 प्रतिशत करेंगे.

हर देश को यह अधिकार होगा कि वह अपने यहां से की गई वैश्विक कंपनियों की कमाई पर टैक्स लगा सके. कोविड की मार खाई दुनिया में यह सुनिश्चित करने की तत्काल जरूरत है कि किसी भी देश की कुल कमाई का कितना फीसदी स्वास्थ्य-सेवा पर और कितना फीसदी शिक्षा के प्रसार पर खर्च किया ही जाना चाहिए और यह भी कि शासन-प्रशासन के खर्च की उच्चतम सीमा क्या होगी.

ऐसे सवालों का जी-7 के पास कोई जवाब है, ऐसा नहीं लगा. चीन के बारे में बाइडेन को जी-7 का वैसा समर्थन नहीं मिला जैसा वे चाहते थे. वह संभव नहीं था क्योंकि यूरोपियन यूनियन चीन के साथ आर्थिक साङोदारी की संभावनाएं तलाशने में जुटी है. ब्रेक्जिट के बाद का इंग्लैंड भी चीन के साथ आर्थिक व्यवहार बढ़ाना चाहता है.

चीन भी यूरोपियन यूनियन के साथ संभावित साझेदारी का आर्थिक व राजनीतिक पहलू खूब समझता है. इसलिए उसने काफी रचनात्मक, लचीला रुख बना रखा है. इससे लगता नहीं है कि चीन का डर दिखा कर दुनिया का नेतृत्व हथियाने की बाइडेन की कोशिश सफल हो सकेगी. आज हालात अमेरिका के नहीं, चीन की तरफ झुके हुए हैं.

चीन के पास भी दुनिया को देने के लिए वह सब है जो कभी अमेरिका के पास हुआ करता था. चीन के पास जो नहीं है वह है साङोदारी में जीने की मानसिकता. इसमें कोई शक नहीं कि चीन तथाकथित आधुनिकता से लैस साम्राज्यवादी मानसिकता का देश है. वह निश्चित ही दुनिया के लिए एक अलग प्रकार का खतरा है और वह खतरा गहराता जा रहा है.

लेकिन उस एक चीन का मुकाबला, कई चीन बनाकर नहीं किया जा सकता है. चीन को दुनिया से अलग-थलग करके या जी-7 क्लब के भीतर बैठ कर उसे काबू में करने की रणनीति व्यर्थ जाएगी. फिर चीन के साथ क्या किया जाना चाहिए? हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसे जगह देकर, अंतराष्ट्रीय समाधानों के प्रति वचनबद्ध करके ही उसे साधा जा सकता है. रचनात्मक नैतिकता व समता पर आधारित आर्थिक दबाव ही चीन के खिलाफ सबसे कारगर हथियार हो सकता है. सवाल है कि क्या जी-7 के पास ऐसी रचनात्मक नैतिकता है?

Web Title: G-7 countries summit 10 percent people occupy 40 percent resources kumar prashant blog

विश्व से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे