Election 2024: लंदन और एम्सटर्डम से सबक लेंगे हमारे नेता?, ऋषि सुनक और मार्क रूट को दुनिया कर रही सलाम!
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 12, 2024 11:37 AM2024-07-12T11:37:43+5:302024-07-12T11:40:26+5:30
Election 2024: प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और कंजरवेटिव पार्टी चुनावों में बुरी तरह हार गई और प्रधानमंत्री को लंदन के प्रसिद्ध पते 10, डाउनिंग स्ट्रीट को छोड़ना पड़ा.
Election 2024: राजनीतिक नेताओं की दो हालिया अंतरराष्ट्रीय छवियां भारत में बड़ी संख्या में लोगों के जेहन में जगह बना गई हैं, जहां राजनेता जनता के पैसे की कीमत पर हर प्रकार की हरकतें करते हैं. एक तस्वीर लंदन से आई है, जहां प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और उनकी कंजरवेटिव पार्टी चुनावों में बुरी तरह हार गई और प्रधानमंत्री को लंदन के प्रसिद्ध पते 10, डाउनिंग स्ट्रीट को छोड़ना पड़ा.
वे अपनी भारतीय पत्नी अक्षता मूर्ति के साथ शांति से हाथ में हाथ डाले इस प्रतिष्ठित घर से निकल गए. दूसरी तस्वीर एक छोटे देश नीदरलैंड से थी, जहां 14 साल सत्ता में रहने के बाद, 57 वर्षीय प्रधानमंत्री मार्क रूट बिना किसी खास शोर-शराबे के लेकिन मुस्कुराते हुए साइकिल पर पीएम कार्यालय से बाहर निकले व अपने घर चल पड़े.
वे भी चुनाव में हार गए हैं. सूट और टाई पहने हुए रूट ने पीएमओ में अपने पूर्व सहयोगियों से हाथ मिलाया और ढोल-नगाड़ों की भीड़ या फोटोग्राफरों के झुंड या सायरन बजाने वाली गाड़ियों के बिना अकेले साइकिल पर घर चले गए. भारत पर कई वर्षों तक अंग्रेजों का शासन रहा. हालांकि पिछले कुछ वर्षों से, भाजपा सरकार द्वारा उस राज की सभी संभावित यादों को मिटाने के लिए गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं.
कुछ लोग इसका समर्थन करते हैं जबकि अन्य औपनिवेशिक शासन की निशानियों को मिटाने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की आलोचना कर रहे हैं. निस्संदेह, यह व्यापक बहस का विषय है कि क्या भारत वास्तव में उन सभी चीजों को पूर्ववत कर सकता है जो अंग्रेजों ने भारत के साथ की थीं. बेशक, विदेशी शासन को तब उखाड़ फेंका गया जब बड़ी संख्या में ज्ञात और अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों से संघर्ष किया.
उन्हें 1947 में देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया. अनेक लोगों ने इस संघर्ष में अपनी कुर्बानियां दीं. बहरहाल, अंग्रेजों ने हमें जो प्रशासनिक व्यवस्थाएं दीं या फिर तकनीक, शिक्षा, क्रिकेट, वास्तुकला, शहरी नियोजन पद्धतियां, रेलवे लाइन, पुल, चिकित्सा सेवाएं और ऐसी तमाम चीजें आसानी से भुलाई नहीं जा सकतीं, भले ही हमारे नेतागण इन्हें खत्म करना चाहते हो.
औपनिवेशिक आदतों और योगदान को जनता की यादों से मिटाने के लिए लगातार किए जा रहे प्रयासों के आलोक में, मैं ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की सादगी को देखता हूं. हार के बाद भी वे शालीन रहे; उन्होंने अपने विरोधियों पर दोषारोपण करने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की या उन पर धांधली का आरोप नहीं लगाया.
हमारे यहां राजनीतिक नेताओं में-हार और जीत में-जो दिखावटीपन नजर आता है, उससे हाल ही में लंदन और एम्सटर्डम में हमने जो देखा, वह बिलकुल अलग है. क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि वर्तमान भारतीय व्यवस्था में एक स्थानीय पार्षद भी ऐसी सादगी दिखा सकता है जिसकी प्रशंसा पूरी दुनिया में हो?
हम संभवतः उन सभी चीजों को मिटा सकते हैं जो अंग्रेज हमारे लिए छोड़ गए हैं, लेकिन क्या हम इस तथ्य से भी इनकार कर सकते हैं कि कुछ मायनों में अंग्रेज कई भारतीय राजनेताओं से बेहतर थे? दुर्भाग्य से, हाल ही में सत्तारूढ़ या विपक्षी राजनेताओं द्वारा बढ़ता दिखावा व आडंबर एक आदर्श-सा बन गया है.
मैं कई बार ब्रिटेन गया हूं और वहां की संसद में भी गया हूं, ताकि देख सकूं कि सांसद किस तरह का व्यवहार करते हैं. मैंने उनकी वीआईपी सुरक्षा व्यवस्था भी देखी है, जिससे आम लोगों को सड़कों पर किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता. उनके यातायात नियम बहुत बढ़िया हैं और उनका क्रियान्वयन कहीं ज्यादा सख्त है.
यह सिर्फ ब्रिटेन या नीदरलैंड के चुनावों की बात नहीं है, जहां से ये दो शानदार तस्वीरें सामने आईं. इनमें से एक तस्वीर सोशल मीडिया पर पूर्व राज्यपाल और पुलिस अधिकारी किरण बेदी ने वायरल की थी. अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया समेत दूसरे विकसित देशों से भारत को शायद बहुत कुछ सीखना है कि करदाताओं के पैसों से उन्हें कैसे व्यवहार करना चाहिए; कितनी मितव्ययिता बरतनी चाहिए.
जरा याद कीजिए कि बराक ओबामा और जर्मनी की पहली महिला चांसलर एंजेला मार्केल कहां चले गए? रिटायरमेंट के बाद वे अपनी सादगी भरी जिंदगी कैसे जीते हैं? ओबामा को बीच-बीच में अपने दोस्तों के साथ अमेरिका के किसी पब या रेस्टोरेंट में निजी जिंदगी का लुत्फ उठाते देखा जाता है. क्या हम अपने राजनेताओं से ऐसे व्यवहार की उम्मीद कर सकते हैं?
सादगी, बृजभूषण शरण सिंह जैसे अहंकार या भ्रष्ट आचरण से दूर रहना, ये कुछ ऐसी चीजें हैं जो हमारे राजनेताओं को वैश्विक नेताओं से सीखनी चाहिए. बेशक, वे सभी ईमानदार और सभ्य नहीं हैं. बिल क्लिंटन जैसा घिनौना व्यवहार अभी भी सबको याद है. निश्चित रूप से भारत की अपनी कई चुनौतियां हैं जो इस देश के आकार, जनसंख्या, निरक्षरता और संस्कृति को देखते हुए अनन्य हैं.
आज के भारतीय प्रधानमंत्री से किसी अन्य नेता की तरह बेफिक्र रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती. उनके लिए खतरा बहुत ज्यादा है. फिर भी, जब हम मंत्रियों के काफिले, पायलट कारों और उनके पीछे चलने वाली गाड़ियों को सायरन बजाते हुए, ट्रैफिक जाम और अन्य समस्याएं पैदा करते हुए देखते हैं तो हमें आश्चर्य होता है कि क्या इसी व्यक्ति को हमने सत्ता में लाने के लिए वोट दिया था?
तो क्या हमारे नेता लंदन या एम्सटर्डम से कोई सबक लें सकेंगे?