तालिबान की रहमदिली का 'चेहरा' बनी गर्भवती पत्रकार शार्लट बेलस और उनसे जुड़े चंद सवाल

By रंगनाथ सिंह | Published: January 31, 2022 12:13 PM2022-01-31T12:13:59+5:302022-01-31T17:46:19+5:30

शार्लेट बेलस अल-जजीरा की पत्रकार थीं। तालिबान ने जब अफगानिस्तान पर कब्जा किया उसके बाद उनकी पहली प्रेसवार्ता में शार्लट भी मौजूद थीं।

curious case of new Zealand journalist Charlotte Bellis and her career in kabul afghanistan | तालिबान की रहमदिली का 'चेहरा' बनी गर्भवती पत्रकार शार्लट बेलस और उनसे जुड़े चंद सवाल

अफगानिस्तान के तहरीके-तालिबान ने अमेरिकी सेना के वहाँ से जाने के बाद अगस्त 2021 में अशरफ गनी सरकार का तख्तापलट कर दिया था।

Highlightsशार्लट बैलस न्यूजीलैण्ड की नागरिक और पत्रकार हैं। शार्लट पिछले साल नवम्बर तक अल-जजीरा की अफगानिस्तान संवाददाता थीं।शार्लट अफगानिस्तान में काम करने के दौरान ही अगस्त 2021 में गर्भवती हो गयी थीं।

तस्वीर में हिजाब में तालिबान लड़ाकों के बीच दिख रही महिला शार्लट बेलस हैं। वो कतर के चैनल अल-जजीरा में काबुल संवाददाता थीं। उन्होंने 29 जनवरी को न्यूजीलैण्ड के एक अखबार में ब्लॉग लिखकर बताया कि वो गर्भवती हैं और न्यूजीलैण्ड सरकार ने उनका देश वापसी का आवेदन ठुकरा दिया है। उन्होंने यह भी बताया कि तालिबान ने उनकी स्थिति समझते हुए उन्हें 'शरण' दी है। दुनिया भर की मीडिया ने यह खबर चलायी कि किस तरह न्यूजीलैण्ड की गर्भवती पत्रकार को तालिबान ने शरण दी। जर्मन संस्थान डायचे वैले ने तो हेडिंग दी कि ' न्यूजीलैण्ड की गर्भवती महिला पत्रकार अफगानिस्तान जाने को हुई मजबूर' ! 29 जनवरी से आज 31 जनवरी तक सभी यह खबर दुनिया भर के प्रमुख मीडिया में छप चुकी है। आइए अब थोड़ा 29 जनवरी से पीछे चलते हैं।

शार्लट ने 01 दिसम्बर को ट्वीट किया कि अल-जजीरा में शानदार पाँच साल बिताने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया है। उसी दिन उन्होंने यह भी बताया कि अब वो कुछ विशेष परियोजनाओं पर काम शुरू करते हुए जीवन का नया अध्याय शुरू करेंगी। 13 जनवरी को शार्लट ने ट्वीट किया कि वो काबुल पहुँच चुकी हैं। एक शानदार अंग्रेजी बोलने वाले तालिबान ने मुस्कराते हुए उन्हें सड़क पर सुरक्षा जाँच के लिए रोका और बताया कि वो GDI से है। शार्लट ने ट्वीट में स्पष्ट किया कि GDI वैसा ही हुआ जैसे अमेरिका में CIA है! शार्लट ने यह भी साफ किया कि उस तालिबान ने इतनी शानदार अंग्रेजी बगराम जेल में (अमेरिकी नियंत्रण के दौरान) सीखी! शार्लट ने उस तालिबान को बताया कि वो पत्रकार हैं तो वो मुस्कराता हुआ उन्हें शुभकामना देता हुआ अपनी टीम के साथ चला गया।

न्यूजीलैण्ड सरकार के अनुसार 24 जनवरी को शार्लट ने न्यूजीलैण्ड वापस जाने के लिए मेडिकल-इमरजेंसी श्रेणी में आवेदन भेजा। आवेदन में उन्होंने यात्रा की तारीख 27 फरवरी बतायी। उन्हें जवाब मिला कि इस श्रेणी में आवेदन भेजने के लिए यात्रा की तारीख आवेदन के 14 दिन के अन्दर की होनी चाहिए और उसके साथ इस बात का प्रमाणपत्र लगाना होगा कि आपको मेडिकल-इमरजेंसी है। शार्लेट को यह भी बताया गया कि वो यात्रा की तारीख आगे करके दोबारा आवेदन कर सकती हैं या यात्रा की तारीख के हिसाब से बाद में आवेदन भेज सकती हैं।

29 जनवरी को शार्लट ने न्यूजीलैण्ड के एक अखबार में लेख लिखकर बताया कि वो लड़की की माँ बनने वाली हैं और न्यूजीलैण्ड प्रशासन ने उनके इमरजेंसी आगमन का आवेदन ठुकरा दिया है। शार्लट ने भी बताया कि उन्होंने अल-जजीरा से नवम्बर में इस्तीफा दिया था। कतर में बिना शादी माँ बनना अपराध है इसलिए वो और उनके पार्टनर जिम जो उस समय काबुल में थे, ने यह बात गोपनीय रखी। दोनों जिम के मूल वतन बेल्जियम लौट गये। शार्लट ने बताया कि बेल्जियम में विदेशी नागरिक शेंजेन वीजा पर छह महीने के वक्फे में तीन महीने ही रह सकते हैं और जनवरी के अंत तक उनका 'आधा समय' (डेढ़ महीना) पूरा हो जाता। शार्लट के अनुसार उनका बच्चा मई में पैदा होने वाला है। उन्होंने न्यूजीलैंड जाने के लिए 'प्रयास किया' लेकिन कोविड प्रतिबन्ध की वजह से नहीं जा सकीं। उन्होंने तालिबान के एक अधिकारी से बात करके बताया कि वो बिना शादी के माँ बनने वाली हैं तो उसने कहा कोई बात नहीं, काबुल आ जाएँ लोग पूछे तो कह दीजिएगा कि आप शादीशुदा हैं, कहीं ज्यादा दिक्कत हो तो हमें बताइएगा।

शार्लट और जिम बेल्जियम कब गये यह साफ नहीं है लेकिन शार्लट ने 13 जनवरी को ट्वीट किया कि वो काबुल वापस आ चुकी हैं। 29 जनवरी को लिखे ब्लॉग में शार्लट ने बताया कि उन्हें न्यूजीलैंड प्रशासन से 24 जनवरी को जवाब मिला कि उनका आवेदन स्वीकार नहीं हुआ है और नियमों के तहत वो दोबारा अप्लाई करें। शार्लट के लेख पर जवाब देते हुए इमरजेंसी आवेदन विभाग MIQ के प्रमुख क्रिस ने बताया कि शार्लट ने 24 जनवरी को ही आवेदन भेजा था। यानी जिस दिन उन्होंने आवेदन भेजा उसी दिन उन्हें जवाब मिल गया।

शार्लट ने अपने ब्लॉग में बताया कि 24 को जब उनका आवेदन अस्वीकार हो गया तो उन्होंने वकील और अपने एक परिचित राजनेता से बात की जिसने विभाग के मंत्री तक उनकी समस्या पहुँचायी। 26 जनवरी को उनके बेल्जियम नागरिक पार्टनर को ईमेल आया जिसमें उनके वीजा आवेदन के बारे में पूछा गया था। शार्लट ने जवाब दिया कि उन्होंने भी वीजा और न्यूजीलैण्ड यात्रा के लिए आवेदन किया हुआ है। 27 जनवरी को शार्लट के पार्टनर को ईमेल मिला कि उनका न्यूजीलैण्ड का वीजा स्वीकार हो गया और अब वो MIQ में मेडिकल-इमरजेंसी के तहत आवेदन भेज सकते हैं। शार्लट को यह बात बुरी लगी कि उनका सामान्य आवेदन नियमों के तहत खारिज करने के बाद राजनेता की पैरवी से उनके लिए जुगाड़ किया जा रहा है! तब उन्होंने आत्मा की आवाज सुनकर वह ब्लॉग लिखा जिसपर दुनिया भर में खबर चली।

अभी तक यह साफ नहीं है कि कानून की बेहद इज्जत करने वाली शार्लट ने गर्भवती होने के बाद अपने चैनल अल-जजीरा में इस बाबत बात की थी या नहीं। शार्लट के अनुसार बेल्जियम में कानूनन करीब 15 मार्च तक रुक सकती थीं और उसके आगे रुकने के लिए उन्होंने या उनके बेल्जियम नागरिक पार्टनर प्रशासन से कोई दरख्वास्त की थी या नहीं! यह भी साफ नहीं है कि उन्होंने बेल्जियम में रहकर आवेदन भेजने के बजाय काबुल लौटकर 12 दिन बाद आवेदन भेजने का क्यों फैसला किया! शार्लट के ट्वीट से साफ है कि उन्हें कोविड यात्रा नियमों के 15 दिन के विण्डो के बारे में पता था फिर भी उन्होंने काबुल से 27 फरवरी की फ्लाइट बुक कराकर आवेदन भेजा! मेडिकल-इमरजेंसी मामले में उन देशों में मौजूद किवी नागरिकों को 15 दिन विण्डो में छूट देने का प्रावधान है जिनसे महीने में केवल एक हवाईजहाज न्यूजीलैण्ड जाता हो। अपने आवेदन में शार्लट ने इस विशेष प्रावधान के तहत छूट माँगी है लेकिन अपने समर्थन में अस्पष्ट कारण दिए हैं कि यहाँ से जाने वाली फ्लाइट कभी भी कैंसल हो सकती हैं यानी यह साफ नहीं किया है कि 'एक महीन में एक फ्लाइट' की शर्त के तहत उन्हें छूट मिलनी चाहिए। अपने उस पत्र में शार्लट ने तालिबान द्वारा तख्तापलट को 'सत्ता का हस्तांतरण' कहा है।

अपने ब्लॉग में शार्लट ने तर्क दिया है कि क्योंकि उनके पास अफगानिस्तान का वीजा था इसलिए वो वहाँ वापस लौटीं। हालाँकि न्यूजीलैण्ड के नागरिकों के पास दुनिया के 170 से ज्यादा देशों में बिना वीजा या वीजा ऑन अराइवल (पहुँचकर वीजा लेने) की सुविधा है तो क्या उन्होंने किसी और देश जैसे ऑस्ट्रेलिया इत्यादि जाने के विकल्प पर सोचा था? शार्लट ने ब्लॉग में लिखा है कि अफगानिस्तान में बच्चा पैदा करने मौत की सजा जैसा होगा! फिर भी वो बेल्जियम से अफगानिस्तान ही लौटीं।

दुनिया भर के मीडिया में यह खबर चली कि शार्लेट को अफगानिस्तान जाने के लिए मजबूर किया गया जबकि न्यूजीलैण्ड सरकार के जवाब और उनके ट्वीट से जाहिर है कि न्यूजीलैण्ड यात्रा के लिए आवेदन भेजने से पहले ही वो काबुल पहुँच चुकी थीं।

सभी जानते हैं कि अफगानिस्तान में पिछले कई महीनों से विभिन्न महिलाएँ तालिबान-विरोधी प्रदर्शन कर रही हैं। 13 जनवरी को 25 वर्षीय जैनब अब्दुल्लाही एक समारोह से जब घर वापस आ रही थीं तब एक तालिबान ने उन्हें गोली मार दी। वो हाजरा समुदाय से थीं। महिला अधिकारों को लेकर आंदोलनरत अफगान महिलाएँ जैनब की हत्या का भी मुद्दा उठा रही थीं। शार्लट के ट्वीटर टाइमलाइन पर पिछले एक दो महीने में इस प्रदर्शन से जुड़ा एक ट्वीट है जो 15 जनवरी को उन्होंने किया है- "अभी रास्ते में ये महिलाएँ टकरा गयीं, उम्मीद करती हूँ इन्हें न्याय मिलेगा खासतौर पर जैनब अब्दुल्लाही को..."। 19 जनवरी को तालिबान ने घोषणा की कि उन्होंने जैनब को 'गलती से' गोली मारने वाले तालिबान लड़ाके को गिरफ्तार कर लिया है और उसे कानूनन सजा दी जाएगी।

शार्लट के यात्रा का आवेदन अस्वीकार होने की खबर के साथ यह जानना भी जरूरी है कि न्यूजीलैण्ड में इस समय सख्त कोविड पाबन्दियाँ हैं। पाबन्दी इतनी ज्यादा है कि न्यूजीलैण्ड की प्रधानमंत्री को अपनी शादी कोविड-प्रोटोकाल की वजह से टालनी पड़ी। शार्लट ने न्यूजीलैण्ड वापसी के लिए मेडिकल-इमरजेंसी की श्रेणी में आवेदन भेजा लेकिन उसके लिए जरूरी प्रमाणपत्र नहीं दिया। उनका तर्क है कि उन्होंने गर्भवती होने का प्रमाणपत्र दिया है तो मेडिकल-इमरजेंसी का प्रमाणपत्र वो नहीं देंगी। न्यूजीलैण्ड प्रशासन ने उनका आवेदन तकनीक आधार पर ठुकराते हुए उन्हें नई श्रेणी के तहत आवेदन भेजने के लिए कहा जिसमें किसी अन्य देश में होने और वहाँ सुरक्षित न होने के कारण तत्काल न्यूजीलैण्ड वापसी का प्रावधान है। शार्लट नहीं चाहतीं कि वो यह कहें कि काबुल में उनकी सुरक्षा को खतरा है।

अपने ब्लॉग में शार्लट ने बताया है कि तालिबान ने जब अफगानिस्तान में कब्जे के बाद पहली प्रेसवार्ता की तो उन्होंने ही उनसे पूछा था कि महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की रक्षा के लिए आप क्या करेंगे? यहाँ आपको यह भी याद दिला दें कि तालिबान ने जब काबुल को चारों तरफ से घेरने के बाद शहर में प्रवेश किया तो कार सवार तालिबान लड़ाकों से शार्लट ने पूछा था कि "मैं एक महिला हूँ तो क्या मुझे आपसे डरना चाहिए?" 30 जनवरी 2022 से एक दिसम्बर 2021 के दो महीनों के बीच शार्लट ने अफगानिस्तान महिलाओं के अधिकार, उत्पीड़न और आंदोलन से इत्यादि जुड़े दो ही उल्लेखनीय ट्वीट किए हैं। एक ट्वीट 13 जनवरी को बेल्जियम से लौटने के बाद 15 जनवरी को जिसमें जैनब के हत्यारे की गिरफ्तारी की माँग की गयी थी और हत्यारा चार दिन बाद गिरफ्तार भी हो गया। दूसरे ट्वीट उन्होंने करीब दो महीने पहले तीन दिसम्बर को किया था जिसमें उन्होंने 'तालिबान अमीरात द्वारा महिला अधिकारों की रक्षा के लिए जारी फरमान' को रीट्वीट किया था। शार्लट ने नार्वे वार्ता करने जा रहे तालिबान से जुड़ी खबर शेयर की है लेकिन नार्व के जिस होटल में तालिबान वार्ताकार रुके थे उसके बाहर अफगान महिलाओं एवं अन्य द्वारा किए गये प्रदर्शन का कोई संज्ञान नहीं लिया है।

शार्लट ने अपने ब्लॉग में दावा किया है कि डॉक्टर ने उन्हें कहा था कि वो कभी माँ नहीं बन सकती लेकिन 'तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद 18 अगस्त 2021 को हुई पहली प्रेसवार्ता के एक हफ्ते बाद उनके पेट में एक बच्ची आ गई, काबुल के पतन के दौरान ही चमत्कार हो गया!" जाहिर है कि इस कथित चमत्कार के बाद ही वो दोहा गईं और उसके बाद वह घटनाक्रम खुलना शुरू हुआ जिसकी परिणीति उनके 29 जनवरी के ब्लॉग के रूप में सामने आयी जिसके आधार पर दुनिया भर में खबर चली। यहाँ यह भी याद रखें कि अल-जजीरा कतर सरकार द्वारा वित्त पोषित मीडिया है जिसके ऊपर तालिबान को सकारात्मक कवरेज देने के आरोप लगते रहे हैं। तालिबान ने काबुल पर कब्जे से पहले अपना राजनीतिक मुख्यालय कतर में बनाया था और वहीं तालिबान, अमेरिका इत्यादि के बीच दोहा-वार्ता हुई।

यहाँ तक पढ़ने के बाद आप समझ चुके होंगे कि दुनिया जितनी सतह के ऊपर दिख रही है, जरूरी नहीं कि सतह के नीचे भी उतनी ही हो।

Web Title: curious case of new Zealand journalist Charlotte Bellis and her career in kabul afghanistan

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