भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः वैयक्तिक स्वतंत्नता की पश्चिमी सोच की सीमाएं
By भरत झुनझुनवाला | Published: September 11, 2021 03:23 PM2021-09-11T15:23:57+5:302021-09-11T15:25:48+5:30
वैयक्तिक स्वतंत्नता पर अमेरिका के दोहरे विचार का संकेत पेटेंट कानूनों से मिलता है। बीते 5 हजार वर्षो से मनुष्य ने तमाम आविष्कार किए हैं जैसे गाड़ी का गोल पहिया, कांच के बर्तन इत्यादि। बीते 500 वर्षो में मनुष्य ने प्रिंटिंग प्रेस इत्यादि का आविष्कार किया है। इन आविष्कारों पर कोई पेटेंट नहीं था।
अमेरिका समेत अन्य पश्चिमी देशों द्वारा तालिबान की भर्त्सना यह कहकर की जा रही है कि उसके द्वारा वैयक्तिक स्वतंत्नता विशेषकर महिलाओं की स्वतंत्नता का आदर नहीं किया जाता है और वे लोकतंत्न के अंतरराष्ट्रीय मूल्य को नहीं मानते हैं। इसमें कोई संशय नहीं कि तालिबानी कई तरह से अपनी जनता के साथ क्रूर व्यवहार करते हैं। लेकिन दूसरी तरफ यह भी देखने में आता है कि चीन द्वारा वैयक्तिक स्वतंत्नता के इसी मानवीय मूल्य को न मानने के बावजूद वहां की जनता अपनी सरकार के प्रति संतुष्ट दिखती है। वह देश उत्तरोत्तर आर्थिक प्रगति भी कर रहा है। रूस, उत्तर कोरिया और सऊदी अरब जैसे देशों द्वारा भी इन मूल्यों को अमान्य किया जा रहा है। अत: हमें इन मूल्यों की तह में जाकर विचार करना चाहिए कि क्या जनहित हासिल करने के लिए वैयक्तिक स्वतंत्नता की पश्चिमी परिभाषा ही एकमात्न रास्ता है अथवा इसके विकल्प भी हैं? लोकतंत्न के पीछे मान्यता है कि इससे जनता का हित हासिल होता है। अत: जनता के हित हासिल करने के दूसरे रास्तों को नकारा नहीं जा सकता है।
वैयक्तिक स्वतंत्नता पर अमेरिका के दोहरे विचार का संकेत पेटेंट कानूनों से मिलता है। बीते 5 हजार वर्षो से मनुष्य ने तमाम आविष्कार किए हैं जैसे गाड़ी का गोल पहिया, कांच के बर्तन इत्यादि। बीते 500 वर्षो में मनुष्य ने प्रिंटिंग प्रेस इत्यादि का आविष्कार किया है। इन आविष्कारों पर कोई पेटेंट नहीं था। दूसरे मनुष्य इन आविष्कारों की नकल कर इन्हें बनाने को स्वतंत्न थे। नकल करने से आविष्कारों का सिलसिला भी थमा नहीं बल्कि नए आविष्कार होते ही रहे हैं। लेकिन अमेरिका की अगुआई में 1995 में विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत नकल करने की इस वैयक्तिक स्वतंत्नता पर रोक लगा दी गई। साथ-साथ आविष्कारक की वैयक्तिक स्वतंत्नता को और सुदृढ़ कर दिया गया। अपने आविष्कार को मनचाहे मूल्य पर बेचने की उसकी वैयक्तिक स्वतंत्नता को सुरक्षित कर दिया गया। इस प्रकार वैयक्तिक स्वतंत्नता की अंतर्विरोधी परिभाषा बनाई गई। सिद्धांत था कि इससे व्यक्ति स्वतंत्नतापूर्वक अपना हित हासिल कर सकेगा। लेकिन व्यक्ति के अपना हित हासिल करने की वैयक्तिक स्वतंत्नता की आविष्कारक की वैयक्तिक स्वतंत्नता की वेदी पर बलि चढ़ा दी गई। वैयक्तिक स्वतंत्नता की इस परिभाषा के परिणाम का प्रत्यक्ष उदाहरण हमें कोविड वैक्सीन में देखने को मिल रहा है। वैक्सीन को महंगे मूल्यों पर बेचकर फाइजर आदि कंपनियों ने भारी लाभ कमाए हैं और इनकी नकल करने की स्वतंत्नता बाधित होने से आम आदमी को यह महंगे मूल्य पर उपलब्ध हो रही है। बताते चलें कि पूर्व में अपने देश में दवा की नकल कर बनाने की छूट थी। इससे भारतीय कंपनियों ने उन्हीं दवाओं को बहुत कम मूल्य पर बनाया जिन्हें पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कंपनियां महंगे मूल्य पर बना रही थीं। यदि कोविड के टीके की नकल करने की भारतीय कंपनियों को छूट दे दी जाए तो यह टीका सस्ते मूल्य पर उपलब्ध हो सकता है।
दूसरा उदाहरण श्रम बाजार का लें। वैयक्तिक स्वतंत्नता में एक स्वतंत्नता एक देश से दूसरे देश को पलायन करने की भी है। लेकिन अमेरिका द्वारा प्रसारित स्वतंत्नता के मॉडल में किसी भी देश के अंदर व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पलायन करने का अधिकार होता है परंतु किसी व्यक्ति को एक देश से दूसरे देश को पलायन करने का अधिकार नहीं होता है। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार की सार्वभौमिक उद्घोषणा की धारा 13।1 में कहा गया है कि हर व्यक्ति को अपने देश कीसरहद में यात्ना करने की छूट होगी। लेकिन दूसरे देश में यात्ना करने की छूट उपलब्ध नहीं है। यानी यात्ना अथवा पलायन करने का कथित रूप से ‘अंतरराष्ट्रीय’ मूल्य ही अंतरराष्ट्रीय नहीं रह गया है। इस ‘अंतरराष्ट्रीय’ मूल्य को ‘राष्ट्रीय’ सीमा में बांध दिया गया है। जबकि माल को एक देश से दूसरे देश में ले जाने की पूर्ण स्वतंत्नता है। इन दोनों उदाहरणों से स्पष्ट है कि अमेरिका द्वारा प्रतिपादित वैयक्तिक स्वतंत्नता का अंतरराष्ट्रीय मूल्य वास्तव में पश्चिमी देशों के आर्थिक हितों को सुरक्षित करने का एक रास्ता मात्न है। इसमें ‘अंतरराष्ट्रीय’ कुछ भी नहीं है।
दूसरा कथित अंतरराष्ट्रीय मूल्य लोकतंत्न का कहा जाता है। यहां भी अंदर और बाहर का भेद है। आज से लगभग एक दशक पूर्व सैमुअल हंटिंग्टन ने कहा था कि इस्लामिक देशों के लोग अमेरिका के प्रति नकारात्मक हैं क्योंकि पश्चिमी देशों ने मुस्लिम देशों का 20वीं सदी में घोर शोषण किया है। इसी क्रम में क्रिस्टोफर डिकी ने एक दूसरे लेख में लिखा कि ‘अरब देश के वे तानाशाह और अमीर जो अमेरिका के प्रति नर्म हैं, वे अपने ही देश के लोगों के लोकतंत्न के अधिकारों का खुलकर हनन करते हैं।’ उन्होंने सऊदी राजशाही परिवार के एक सदस्य के हवाले से बताया कि ‘आप लोकतंत्न की इच्छा न करें। क्योंकि यदि अरब देशों में लोकतंत्न स्थापित हो जाएगा तो हर देश आपके विरुद्ध खड़ा हो जाएगा।’ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 5 सदस्यों को वीटो दिए जाना भी लोकतंत्न के अंतरराष्ट्रीय मूल्य के पूर्णत: विपरीत है। इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि अमेरिका द्वारा वैयक्तिक स्वतंत्नता और लोकतंत्न के मूल्यों को उतना ही प्रसारित किया जाता है जितना कि अमेरिका के अपने आर्थिक हितों को साधने में सहायक होता है।
इसका अर्थ यह नहीं कि वैयक्तिक स्वतंत्नता अनुचित है। हमें खुले दिमाग से विचार करना चाहिए और जनहित हासिल करने के विभिन्न तरीकों का अन्वेषण करना चाहिए।