Bangladesh national anthem: टैगोर के राष्ट्रगान से दूर जाता बांग्लादेश?
By आरके सिन्हा | Published: October 11, 2024 05:18 AM2024-10-11T05:18:21+5:302024-10-11T05:18:21+5:30
Bangladesh national anthem: बांग्लादेश में शेख हसीना वाजेद सरकार का तख्ता पलटने के बाद कट्टरपंथी चाहते हैं कि गुरुदेव टैगोर के लिखे राष्ट्रगीत को बदल कर किसी अन्य गीत को देश का राष्ट्रगान बना दिया जाए.
Bangladesh national anthem: गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के लिखे अपने ही राष्ट्रगान को बांग्लादेश का वर्तमान शासन अब बदलना चाहता है. यानी अब बांग्लादेश उसी राष्ट्रगान से दूर हो रहा है, जिसे उसने 1972 में अपनी स्थापना के वक्त धूमधाम से अपनाया था. इसकी वजह सिर्फ यही है कि टैगोर हिंदू थे. अब आप समझ सकते हैं कि भारत के पड़ोसी देश में कट्टरपंथियों का असर कितना अधिक होता जा रहा है. बांग्लादेश में शेख हसीना वाजेद सरकार का तख्ता पलटने के बाद कट्टरपंथी चाहते हैं कि गुरुदेव टैगोर के लिखे राष्ट्रगीत को बदल कर किसी अन्य गीत को देश का राष्ट्रगान बना दिया जाए.
वैसे तो बांग्लादेश में नई सरकार के धार्मिक मामलों के सलाहकार ए.एफ.एम. खालिद हुसैन कह रहे हैं कि बांग्लादेश के राष्ट्रगान को बदलने की ‘कोई योजना नहीं’ है. सरकार ‘ऐसा कुछ नहीं करेगी जिससे विवाद पैदा हो.’ लेकिन हकीकत यह है कि बांग्लादेश में मौजूदा राष्ट्रगान को बदलने की मांग जोर पकड़ रही है.
बांग्लादेश के राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ (मेरा स्वर्णिम बंगाल) की धुन बाउल गायक गगन हरकारा के ‘‘अमी कोथाय पाबो तारे’’ से ली गई है, जो दादरा ताल पर आधारित है. इसकी आधुनिक वाद्य प्रस्तुति की व्यवस्था बांग्लादेशी संगीतकार समर दास ने की थी. दरअसल बांग्लादेश में अब बहुत कुछ अप्रत्याशित सा ही हो रहा है.
देश के राष्ट्रगान को बदलने की मांग अब्दुल्लाहिल अमान आजमी भी कर रहे हैं. उनके पिता बांग्लादेश की जमात-ए-इस्लामी पार्टी के शिखर नेता थे. उन्हें स्वाधीनता आंदोलन के समय पाकिस्तान सेना का साथ देने के कारण फांसी दे दी गई थी. उनके अलावा भी बांग्लादेश में बहुत से असरदार लोगों का कहना है कि उनके देश में एक हिंदू के लिखे गीत को राष्ट्रगीत के रूप में थोपा गया.
इसे बदला जाना ही चाहिए. इस तरह की मांग करने वालों में कर्नल ओ. अहमद और कर्नल राशिद चौधरी भी शामिल हैं, जो देश के संस्थापक मुजीबुर्रहमान की 1975 में हुई हत्या की साजिश में दोषी ठहराए गए थे. यह दोनों अब कनाडा में रह रहे हैं. गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर को हिंदू कवि कहने वाले अज्ञानी भूल रहे हैं कि वे मूल रूप से पूर्वी बंगाल से ही थे जो अब बांग्लादेश बन गया है.
उनके परिवार की वहां प्रचुर संपत्तियां थीं. बांग्लादेश में काजी नजरुल इस्लाम जैसे महान बांग्ला कवि को भी खारिज किया जा रहा है क्योंकि उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं की स्तुति में लिखा है. बांग्लादेश में ऐसे गीत की मांग हो रही है जिसमें ‘दूसरी स्वतंत्रता’ का उल्लेख हो.