ब्लॉग: राजनीति में प्रतिस्पर्धी मानें, दुश्मन नहीं
By अवधेश कुमार | Updated: July 17, 2024 09:55 IST2024-07-17T09:55:42+5:302024-07-17T09:55:44+5:30
बड़ी संख्या में अवैध अप्रवासियों को लगता है कि उन्हें देश से जाना पड़ सकता है या फिर उन्हें यहां कैंपों और जेलों में रहने को विवश होना पड़ सकता है।

ब्लॉग: राजनीति में प्रतिस्पर्धी मानें, दुश्मन नहीं
13 जुलाई का दिन अमेरिका ही नहीं विश्व इतिहास के लिए अत्यंत भयावह और सबक लेने वाले दिन के रूप में दर्ज हो गया है। अमेरिका जैसे पुराने लोकतांत्रिक देश में रिपब्लिकन राष्ट्रपति उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प पर सार्वजनिक सभा में गोली चलाकर हत्या का प्रयास अचंभित करने वाली घटना है। पेनसिल्वेनिया के बटलर में डोनाल्ड ट्रम्प चुनावी रैली कर रहे थे। अचानक से गोली आई और ट्रम्प के कान को छूते हुए निकल गई।
हालांकि अमेरिकी इतिहास में इसके पूर्व दो बार राष्ट्रपति उम्मीदवारों पर हमले के रिकॉर्ड हैं। 1912 में राष्ट्रपति थियोडोर रुजवेल्ट दोबारा राष्ट्रपति बनने के लिए चुनावी अभियान में लगे थे तब मिल्वौकी में एक भाषण के लिए जाते समय एक सैलून संचालक ने उन्हें गोली मार दी थी. वे बच गए थे। गोलीबारी के बावजूद उन्होंने भाषण दिया। 1972 में अल्बामा के गवर्नर जॉर्ज वालेस को तीसरी बार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव प्रचार के दौरान वाशिंगटन डीसी के बाहर गोली मार दी गई थी।
हमले के कारण उनकी कमर से नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था। लेकिन वर्तमान हमले के कारण, परिस्थितियां और इसके पीछे की विचारधारा अलग है। अमेरिका का संघीय जांच ब्यूरो और अन्य एजेंसियां मिलकर जांच कर रही हैं और हत्या के प्रयास के कारणों का पता आने वाले समय में चलेगा। जांच रिपोर्ट जो भी कहे, आम अमेरिकी और इस समय अमेरिका सहित विश्वभर में राजनीति, एक्टिविज्म और नैरेटिव की प्रवृत्तियों पर दृष्टि रखने वाले समझ सकते हैं कि इसके कारण क्या होंगे।
डोनाल्ड ट्रम्प पर हमले की सूचना आते ही पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसकी निंदा करते हुए अमेरिकी समाज में हिंसा के लिए कोई स्थान न होने का बयान दिया तथा अपील की कि हमें सभ्य तरीके से व्यवहार करना चाहिए। राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी टेलीविजन प्रसारण में इसकी निंदा करते हुए यही कहा। समाचार के अनुसार बाइडेन ने डोनाल्ड ट्रम्प से फोन पर बातचीत भी की।
किंतु सच यह भी है कि डेमोक्रेटिक सहित अमेरिका के बुद्धिजीवियों, मीडिया, एक्टिविस्ट, यहां तक कि प्रशासन के एक बहुत बड़े वर्ग ने डोनाल्ड ट्रम्प और उनकी विचारधारा के सामान्य विरोध की जगह उसके प्रति जिस ढंग से घृणा पैदा किया है, उसका असर अमेरिकी समाज पर है. ट्रम्प को डेमोनाइज करते हुए उन्हें हिटलर से लेकर न जाने क्या-क्या उपाधि दी गई है।
उन्हें लोकतंत्र ही नहीं, अमेरिकी समाज और एकता अखंडता के लिए सबसे बड़ा खतरा बता दिया गया है। अमेरिका में ऐसे निहित स्वार्थी समुदाय हैं जिनके अंदर यह भाव गहरा हुआ है कि अगर ट्रम्प दोबारा राष्ट्रपति बने तो उनके लिए समस्याएं पैदा होंगी। बड़ी संख्या में अवैध अप्रवासियों को लगता है कि उन्हें देश से जाना पड़ सकता है या फिर उन्हें यहां कैंपों और जेलों में रहने को विवश होना पड़ सकता है। संयोग देखिए कि ट्रम्प पर गोली उस समय चली जब वह एक चार्ट पढ़ते हुए बता रहे थे कि अमेरिकी सीमा पार करने वाले अवैध प्रवासियों की संख्या कितनी है।
ट्रम्प एवं उनके समर्थकों ने अमेरिका में अवैध रूप से आने और रहने को एक बड़ा मुद्दा बनाया है। इसका व्यापक समर्थन भी है। यह अनायास नहीं है कि ट्रम्प को किसी तरह राष्ट्रपति की दौड़ से बाहर करने के हर प्रयास अमेरिका में हुए हैं, हो रहे हैं। न्यायालय द्वारा उन्हें सजा दिलाकर राष्ट्रपति चुनाव लड़ने से वंचित करने की लगातार कोशिशें जारी हैं। चूंकि अभी तक इसमें सफलता नहीं मिली है इसलिए संभव है कुछ व्यक्तियों या समूहों ने उन्हें रास्ते से ही हटा देने का निर्णय किया हो। इसलिए यह हमला अंतिम नहीं हो सकता।
आप देखेंगे कि इस समय विश्व भर में इस तरह की प्रवृत्ति चिंताजनक रूप से उभरी है। पूर्व में क्रांति कर सत्ता बदलने के विचार-व्यवहार वाले कम्युनिस्टों की जगह एक ऐसी नव वाममार्गी विचारधारा पूरी दुनिया में दिख रही है जो राष्ट्रवाद, रिलीजन, मजहब और अपने देश की सभ्यता संस्कृति पर गर्व करने वाले संगठनों को लेकर घृणा-विरोध नैरेटिव और अन्य संसाधनों से पैदा कर रहा है। राजनीतिक पार्टियों के नाम या नेताओं की पृष्ठभूमि पर मत जाइए, आपको अलग-अलग देशों में ऐसी प्रवृत्तियां दिखाई देंगी और उनके परिणाम भी सामने आए हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प की हत्या की कोशिश हम सबके लिए सबक होना चाहिए। राजनीति और सार्वजनिक जीवन में असहमति और मतभेद होना, विचारधाराओं पर एक-दूसरे से संघर्ष भी स्वाभाविक है। किंतु राजनीति और सार्वजनिक जीवन में घृणा और दुश्मनी का कोई स्थान नहीं। हम एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी होंगे, राजनीतिक और वैचारिक विरोधी होंगे किंतु दुश्मन नहीं, जिसके विरुद्ध इतनी घृणा पैदा की जाए कि लोग हिंसा की सीमा तक पहुंच जाएं। यह सभी पक्षों पर लागू होता है।
हालांकि जैसा वातावरण अमेरिका सहित कई देशों में बन चुका है उसमें कोई तत्काल इससे सबक लेगा, इसकी संभावना कम है। अगर सबक लेकर हम संभालने या संभालने की कोशिश करें तो उसमें भी सफलता की संभावना कमजोर हो गई है क्योंकि वातावरण काफी विषाक्त बन चुका है इसलिए सबके सामने यही प्रश्न है कि स्थिति को हम कैसे संभालें।