विश्व शांति को सही परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत, आचार्य डॉ. लोकेशमुनि का ब्लॉग

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 22, 2021 01:57 PM2021-09-22T13:57:20+5:302021-09-22T14:01:29+5:30

प्रेम चाहिए, करुणा चाहिए, शांति-सौहार्द चाहिए, अहिंसा चाहिए और चाहिए एक-दूसरे को समझने की वृत्ति.

World Peace Day celebrated every year 21 September establish peace and non-violence earth right perspective | विश्व शांति को सही परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत, आचार्य डॉ. लोकेशमुनि का ब्लॉग

आपसी मेल-मिलाप कम होने पर द्वेष-विद्वेष में वृद्धि होती है और स्वार्थ उभरता है तो परमार्थ की भावना लुप्त हो जाती है.

Highlightsभगवान महावीर ने ‘जियो और जीने दो’ का मंत्न देकर मानव-मानव के बीच की दीवार को तोड़ने की प्रेरणा दी थी. ‘सर्वोदय’ की बुनियाद बनाकर गांधीजी ने सबके उदय अर्थात सबके सुख का रास्ता बनाया था.मानव के भीतर असुर के तेजस्वी होने पर देव का अस्तित्व धुंधला पड़ जाता है.

विश्व शांति दिवस प्रत्येक वर्ष 21 सितंबर को मनाया जाता है. मुख्य रूप से पूरी पृथ्वी पर शांति और अहिंसा स्थापित करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है.

 

आज जबकि दुनिया में अशांति, युद्ध एवं हिंसा की स्थितियां परिव्याप्त हैं, इंसान दिन-प्रतिदिन शांति से दूर होता जा रहा है. आज चारों तरफ फैले बाजारवाद ने शांति को व्यक्ति से और भी दूर कर दिया है. पृथ्वी, आकाश व सागर सभी अशांत हैं. राजनीतिक वर्चस्व, आर्थिक स्वार्थ और इंसानी घृणा ने मानव समाज को विखंडित कर दिया है.

यूं तो ‘विश्व शांति’ का संदेश हर युग और हर दौर में दिया गया है, लेकिन इसको अमल में लाने वालों की संख्या बेहद कम रही है. आज इंसान को इंसान से जोड़ने वाले तत्व कम हैं, तोड़ने वाले अधिक हैं. इसी से आदमी आदमी से दूर हटता जा रहा है. उन्हें जोड़ने के लिए प्रेम चाहिए, करुणा चाहिए, शांति-सौहार्द चाहिए, अहिंसा चाहिए और चाहिए एक-दूसरे को समझने की वृत्ति.

ये सब मानवीय गुण आज तिरोहित हो गए हैं और इसी से आदमी आदमी के बीच चौड़ी खाई पैदा हो गई है. भगवान महावीर ने ‘जियो और जीने दो’ का मंत्न देकर मानव-मानव के बीच की दीवार को तोड़ने की प्रेरणा दी थी. उसी मंत्न को ‘सर्वोदय’ की बुनियाद बनाकर गांधीजी ने सबके उदय अर्थात सबके सुख का रास्ता बनाया था. लेकिन आसुरी शक्तियां हर घड़ी अपना दांव देखती रहती हैं.

उन्हें विग्रह में आनंद आता है और आपसी द्वेष-विद्वेष से उनका मन तृप्त होता है. जिस प्रकार अहिंसा का स्वर मंद पड़ जाने पर हिंसा उभरती है, घृणा के बलवती होने पर प्रेम निस्तेज होता है, उसी प्रकार मानव के भीतर असुर के तेजस्वी होने पर देव का अस्तित्व धुंधला पड़ जाता है. यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि आपसी प्रेम घटने पर दुख बढ़ता है, आपसी मेल-मिलाप कम होने पर द्वेष-विद्वेष में वृद्धि होती है और स्वार्थ उभरता है तो परमार्थ की भावना लुप्त हो जाती है.

शांति लोगों के पारस्परिक व्यवहार पर निर्भर रहती है. शांति-सम्मेलन, शांति आंदोलन या इस प्रकार के जो उपक्र म चलते हैं, उनका अपना एक मूल्य होता है और वे उपक्रम सदा से चलते रहे हैं. सच्चाई यह है कि जनता हमेशा शांति के पक्ष में होती है. अशांति को चाहने वाले कुछ लोग ही होते हैं. ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ जैसे अनेक सूत्न भारतीय संस्कृति ने दिए हैं.

कितना महान और कितना उदारचेता रहा होगा हमारा वह ऋषि, जिसके मन में विशद् परिवार की भावना का जन्म हुआ होगा. उस पर आकाश से फूल बरसे होंगे और जब उस भावना से आकर्षित होकर कुछ लोग जुड़े होंगे तो वह कितने आनंद का दिन रहा होगा. लेकिन दुर्भाग्य से मनुष्य के भीतर देवत्व है तो पशुत्व भी है. देव है तो दानव भी तो है.

आज हम दानव का वही करतब चारों ओर देख रहे हैं. इस सनातन सत्य को भूल गए हैं कि जहां प्रेम है वहां ईश्वर का वास है. जहां घृणा है वहां शैतान का निवास है. इसी शैतान ने आज दुनिया को ओछा बना दिया है और आदमी के अंतर में अमृत से भरे घट का मुंह बंद कर दिया है. आज के विश्व की स्थिति देखिए. जो वैभवशाली हैं, उनके मन में भी शांति नहीं है, बल्कि उनमें उन्माद अधिक है.

इसका कारण क्या है? मानवता के प्रति जो एकत्व की अनुभूति होनी चाहिए, उस दृष्टिकोण का विकास नहीं हुआ. यदि आज का मानव इतना दिग्भ्रांत नहीं होता तो शांति का प्रश्न इतना बलवान नहीं होता किंतु आज का मनुष्य भटक गया है. प्राचीनकाल में छिटपुट लड़ाइयां होती थीं. एक राजा दूसरे राजा पर आक्रमण करता था, परंतु उसका असर सारे देश पर नहीं होता था.

दक्षिण में होने वाले उपद्रवों का असर उत्तर में रहने वालों पर नहीं होता था क्योंकि यातायात, संचार के साधन अल्प थे. किंतु आज दुनिया सिमट गई है. सारा विश्व एक परिवार की तरह हो गया है. विश्व के किसी भी कोने में जो घटना घटित होती है, उसका असर सारे विश्व पर होता है. अफगानिस्तान में जो हो रहा है, उसका असर दूर-दूर के देशों पर हो रहा है.

मनुष्य बाहरी आकार से इतना निकट आ गया है कि शायद पहले कभी इतना निकट नहीं रहा. इस निकटता का ही यह परिणाम है कि वह शांति पर बल दे रहा है. दूसरी बात यह है कि आज संहारक-शस्त्नों के निर्माण की होड़ चल रही है, परिणामस्वरूप सारा वातावरण भय से आक्रांत है. ऐसी स्थिति में सभी व्यक्ति शांति की मांग करने लगे हैं.

विश्व शांति दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों और नागरिकों के बीच शांति व्यवस्था कायम करना और अंतरराष्ट्रीय संघर्षो व झगड़ों पर विराम लगाना है. आधुनिक जगत का एक बड़ा सच है कि वही आदमी शांति का जीवन जी सकता है, जिसमें शक्ति होती है.

शक्ति से तात्पर्य है अपनी बात पर मजबूत बने रहना. शांति और शक्ति के साथ जीने का पहला सूत्न है- आत्मविश्वास. अपने पर भरोसा होना चाहिए. ऐसे आत्मविश्वासी लोग ही संघर्ष, आतंक और अशांति के इस दौर में शांति एवं अहिंसा की अहमियत का प्रचार-प्रसार करने के पात्न हैं, अहिंसा विश्व भारती ऐसे ही पात्न लोगों को संगठित करने में जुटा है.

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