क्रांतिकारी विचारों के थे संत तरुण सागरजी महाराज, कड़वे प्रवचन के लिए हमेशा रहते थे विवादों में 

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: September 1, 2018 05:35 PM2018-09-01T17:35:46+5:302018-09-01T17:35:46+5:30

मुनिजी ने देश में व्याप्त विसंगतियों पर चोट करते हुए कहा था, ‘‘लोग कहते हैं भारत गरीब देश है, जबकि मेरा मानना है कि देश में गरीबी नहीं गैर-बराबरी है।’’ उन्होंने अपने कड़वे प्रवचनों के सवाल पर कहा था कि कड़वाहट उनके प्रवचनों में नहीं, समाज और लोगों के आपसी संबंधों में घुल गई है।

Tarun Sagar Ji Maharaj of revolutionary thoughts Jain Monk who was known for his 'kadve pravachan' | क्रांतिकारी विचारों के थे संत तरुण सागरजी महाराज, कड़वे प्रवचन के लिए हमेशा रहते थे विवादों में 

क्रांतिकारी विचारों के थे संत तरुण सागरजी महाराज, कड़वे प्रवचन के लिए हमेशा रहते थे विवादों में 

पूज्य तरुण सागरजी महाराज का जन्म 26 जून 1967 को मध्य प्रदेश के दमोह के गुहंची गांव में हुआ और तब उनका नाम पवन कुमार था। उनके पिता का नाम प्रतापचन्द्र जैन और मां का नाम शांतिबाई जैन है। राजस्थान के बागीडोरा के आचार्य पुष्पदंतसागर ने उन्हें 20 जुलाई 1988 को दिगंबर मुनि बना दिया। तब वे केवल 20 साल के थे। जीटीवी पर उनके ‘महावीर वाणी’ कार्यक्रम की वजह से वे बहुत ही प्रसिद्ध हुए। 

सन 2000 में उन्होंने दिल्ली के लाल किले से अपना प्रवचन दिया। उन्होंने हरियाणा (2000), राजस्थान (2001), मध्य प्रदेश (2002), गुजरात (2003), महाराष्ट्र (2004) में भ्रमण किया। इसके बाद में साल 2006 में ‘महामस्तकाभिषेक’ के अवसर पर वे कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में रु के थे।

वे पूरे 65 दिन अपने पैरों पर चलकर बेलगांव से सीधे कर्नाटक पहुंचे थे। वहां पहुंचने पर उन्होंने अपने प्रवचन के माध्यम से हिंसा, भ्रष्टाचार, रूढ़िवाद की कड़ी आलोचना की, जिसकी वजह से उनके प्रवचनों को ‘कटु प्रवचन’ कहा जाने लगा। उन्होंने बेंगलुरु  में चातुर्मास का भी अनुसरण किया था। उन्होंने सन 2010 में मध्य प्रदेश विधानसभा और 26 अगस्त 2016 को हरियाणा विधानसभा में प्रवचन दिया था। 2015 में फरीदाबाद के सेक्टर 16 में स्थित ‘श्री 1008 पाश्र्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर’ में तरुणसागर मुनि ने चातुर्मास का अनुसरण किया था। 108 श्रवक के जोड़ों ने उनका स्वागत किया था। 108 थाली के 108 कलश की मदद से उनके चरणों को धोया गया था, तब तरु णसागर मुनि 200 फीट रैंप पर खड़े थे।

तरुणसागर मुनि को मध्य प्रदेश (2002), गुजरात (2003), महाराष्ट्र और कर्नाटक में राज्य अतिथि के रूप में घोषित किया गया था। कर्नाटक में उन्हें क्रांतिकारी का शीर्षक दिया गया और सन 2003 में मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में उन्हें राष्ट्रसंत घोषित कर दिया गया। तरुणसागर मुनि के सारे प्रवचन ‘कड़वे प्रवचन’ नाम से प्रकाशित किए गए हैं। उनके सभी प्रवचन आठ हिस्सों में संकलित किए गए हैं। तरु णसागर मुनि की एक खास किताब भी प्रकाशित की गई है। वह किताब इसीलिए खास है क्योंकि उस किताब का वजन 2000 किलो है। उस किताब की लंबाई 30 फुट है और उसकी चौड़ाई 24 फुट है। ऐसी बड़ी किताब बहुत ही कम बार देखने को मिलती है।

उन्होंने पूरे देश का भ्रमण किया था। बचपन से ही उनका अध्यात्म की ओर बड़ा झुकाव था। उनके प्रवचनों में हमेशा सामाजिक मुद्दों पर चर्चा की जाती थी। उन्हें सुनने के लिए जैन धर्म के लोग तो आते ही थे, लेकिन अन्य धर्म के लोग भी बड़ी संख्या में उनके प्रवचन सुनते रहे हैं। तरु णसागर मुनि प्रवचन के माध्यम से रूढ़िवाद, हिंसा और भ्रष्टाचार का काफी विरोध करते थे और इसीलिए उनके प्रवचनों को ‘कड़वे प्रवचन’ कहा जाता है।
 
जितने पाक में आतंकी नहीं, उससे ज्यादा देश में गद्दार

30 जून, 2017 को सीकर (राजस्थान) में पत्रकारों से चर्चा करते हुए तरुण सागरजी ने कहा था कि पाकिस्तान में जितने आतंकवादी नहीं हैं, उससे ज्यादा हमारे देश में गद्दार हैं। उन्होंने पिपराली के वैदिक आश्रम में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा था कि देश में रहता है, देश का खाता है और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाता है, वो गद्दार नहीं तो और क्या है। आतंकवादी शेर की तरह सामने से वार नहीं करता, बल्किवह भेड़िये की तरह पीछे से हमला करता है।

प्रवचन क्यों कड़वे लगते हैं?

मुनिजी ने देश में व्याप्त विसंगतियों पर चोट करते हुए कहा था, ‘‘लोग कहते हैं भारत गरीब देश है, जबकि मेरा मानना है कि देश में गरीबी नहीं गैर-बराबरी है।’’ उन्होंने अपने कड़वे प्रवचनों के सवाल पर कहा था कि कड़वाहट उनके प्रवचनों में नहीं, समाज और लोगों के आपसी संबंधों में घुल गई है। इसलिए लोगों को उनके प्रवचन कड़वे लगते हैं।

1. नेता व महिलाओं में एक समानता है प्रसव की। महिला के लिए नौ माह व नेताओं के लिए पांच साल का प्रसव वर्ष होता है। कोई गर्भवती महिला आठ माह अपने परिवार का ख्याल रखती है और नौवें महीने परिवार महिला का ख्याल रखता है।

2. नेता ठीक इसके विपरीत होते हैं। जनता चार साल तक नेताओं का ख्याल रखती है और नेता चुनाव आते समय एक साल जनता का ख्याल रखता है। महिला जिसे जनती है, उसे अपनी गोद में बिठाती है। इसके विपरीत नेता कुर्सी में बैठकर बड़ा बनता है।

3. तुम्हारे जीवन के पांच खोट चाहिए। ऐसी बुरी आदत मुङो दे दीजिए, जिससे पत्नी को शर्मिदगी उठानी पड़ती है। बच्चों को स्कूल में दूसरों के सामने नीचे देखना पड़ता है। आप पांच खोट मुङो दे देंगे, तो मेरा और आपका कथा में साथ बैठना सार्थक हो जाएगा।

4. मैं आपकी गलत धारणाओं पर बुलडोजर चलाऊंगा। आज का आदमी बच्चों को कम, गलत धारणाओं को ज्यादा पालता है। इसलिए वह खुश नहीं है। इसलिए मुङो आपके नोट नहीं, आपके खोट चाहिए।

5. इस मतलबी दुनिया को ध्यान से नहीं, धन से मतलब है। भजन से नहीं, भोजन से व सत्संग से नहीं, राग-रंग से मतलब है। सभी पूछते हैं कि घर, परिवार व व्यापार कितना है। कोई नहीं पूछता कि भगवान से कितना प्यार है।

6. जीवन में अपने संकल्प, साधना व लक्ष्य से कभी भी मत गिरो। गिरना ही है तो प्रभु के चरणों में गिरो। जहां उठाने वाला हो, वहां गिरना चाहिए।

7. जो स्वयं गिरे हुए हों, वहां गिरना अंधों की बस्ती में ऐनक बेचने के समान है। उठने के लिए गिरना आवश्यक है। उसी तरह सोने के लिए बिछौना व पाने के लिए खोना जरूरी है।

8. वैसा मजाक किसी के साथ मत कीजिए जैसा मजाक आप सह नहीं सकते!

9. भले ही लड़ लेना, झगड़ लेना, पिट जाना या फिर पीट देना मगर कभी बोलचाल बंद मत करना क्योंकि बोलचाल के बंद होते ही सुलह के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं!

10. दूसरों के भरोसे जिंदगी जीने वाले लोग हमेशा दुखी रहते हैं, इसलिए अगर हम जीवन में सुखी होना चाहते हैं तो हमें आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करनी चाहिए!

11. माता-पिता होने के नाते आप अपने बच्चों को खूब पढ़ाना-लिखाना और पढ़ा-लिखा कर खूब लायक बनाना, मगर ये ध्यान रहे कि इतना लायक भी मत बनाना की वह कल तुम्हें नालायक समझने लगे!

12. संघर्ष के बिना मिली सफलता को संभालना बड़ा मुश्किल होता है!

13. परंपराओं और कुप्रथाओं में बारीक फर्क होता है!

14.  कभी तुम्हारे माता-पिता तुम्हें डांट दें तो बुरा मत मानना, बल्कि यह सोचना की गलती होने पर मां-बाप नहीं डाटेंगे तो कौन डाटेगा, और कभी छोटों से कोई गलती हो जाए तो ये सोचकर उन्हें माफ कर देना कि गलतियां छोटे नहीं करेंगे तो और कौन करेगा!

14. अमीर होने के बाद भी यदि लालच और पैसों का मोह है, तो उससे बड़ा गरीब और कोई नहीं हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति ‘लाभ’ की कामना करता है, लेकिन उसका विपरीत शब्द अर्थात ‘भला’ करने से दूर भागता है!

15. पैसों का अहंकार रखने वाले हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि पैसा कुछ भी हो सकता है, बहुत कुछ हो सकता है, लेकिन सब कुछ नहीं हो सकता। हर मनुष्य को पैसों की अहमियत समझना बहुत जरूरी है!

16. जीवन में तीन आशीर्वाद जरूरी हैं- बचपन में मां का, जवानी में महात्मा का और बुढ़ापे में परमात्मा का, क्योंकि मां, महात्मा और परमात्मा से बढ़कर कुछ भी नहीं है! मां बचपन को संभाल देती है, महात्मा जवानी सुधार देता है और बुढ़ापे को परमात्मा संभाल लेता है!

17. सच्ची नींद और सच्चा स्वाद चाहिए तो पसीना बहाना मत भूलिए, बिना पसीना की कमाई पाप की कमाई है!

18. जिस प्रकार पशु को घास तथा इंसान को भोजन की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार भगवान को भावना की जरूरत होती है। प्रार्थना में उपयोग किए जा रहे शब्द महत्वपूर्ण नहीं बल्कि भक्त के भाव महत्वपूर्ण होते हैं!

दान को छपा कर नहीं छिपाकर देना चाहिए

दान को छपा-छपा कर नहीं, बल्कि छिपा-छिपा कर देना चाहिए। दान और स्नान गुप्त होना चाहिए, क्योंकि गुप्त दान पुण्य की वृद्धि और समृद्धि लाता है। दो चीजों को कभी मत भूलना- एक भगवान और दूसरी मौत। भगवान को याद करोगे तो मृत्यु याद आए न आए कोई बात नहीं, लेकिन मृत्यु को याद करोगे तो भगवान जरूर याद आएंगे। दो चीजों को जरूर भूलो, बुरा व्यवहार करने वाले को और दूसरे के साथ परोपकार करके भूल जाओ।
भगवान और डॉक्टर को कभी नाराज नहीं करो, क्योंकि भगवान को नाराज किया तो वह डॉक्टर के पास भेज देगा और डॉक्टर को नाराज किया तो वह भगवान के पास भेज देगा।  घर में शांति चाहिए, तो दिमाग को ठंडा, जेब को गरम, जुबान को नरम, आंखों में शर्म, दिल में रहम रखो। आज के आदमी के दिमाग में आइस फैक्टरी और मुख में शुगर फैक्टरी हो तो जिंदगी के वारे-न्यारे हो जाएंगे।

आदमी को गृहस्थ धर्म के बाद वानप्रस्थ आश्रम को अपनाना चाहिए, क्योंकि वन बनने की प्रयोगशाला है। जो वन गया सो बन गया। जो भवन में अटक गया, वो लटक गया।  जहां प्राण जाएं घट वह है मरघट। जहां आदमी के शव को जलाया जाए, वह श्मशान होता है। दुनिया में एक मरघट ही है, जहां व्यक्ति अपनी मर्जी से नहीं जाता, उसे बांधकर ले जाना पड़ता है। घर में रहो पर श्रद्धा सही बनाओ। आदमी जिंदगीभर तो धन-धन करता रहता है, जबकि मरने के बाद शोक पत्रिका में निधन रह जाता है।

जब संगीतकार विशाल डडलानी ने मांगी माफी

जैन मुनि तरु ण सागरजी महाराज पर अभद्र टिप्पणी करने के बाद 21 सितंबर, 2016 को संगीतकार और आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता विशाल डडलानी ने चंडीगढ़ पहुंचकर जैन मुनि तरुण सागर से मुलाकात की और माफी मांगी थी।  डडलानी ने चंडीगढ़ के सेक्टर 27 स्थित जैन मंदिर में तरुण सागरजी महाराज से मुलाकात कर माफी मांगी थी। मुनिजी ने कहा था, ‘‘गलती का अहसास होने पर माफ कर दिया जाना चाहिए।’’ उल्लेखनीय है कि विशाल डडलानी ने जैन मुनि के हरियाणा विधानसभा में दिए गए प्रवचन पर अपना गुस्सा जाहिर किया था और उनपर अभद्र टिप्पणी की थी। इससे उनकी पार्टी भी नाराज हो गई थी। आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्विटर पर डडलानी के बयान के लिए माफी मांगी थी और कहा था कि पार्टी उनके विचार से सहमत नहीं है। केजरीवाल के ऐसे बयान के बाद डडलानी के खिलाफ पार्टी में भी विरोधी स्वर सुनाई दिए थे।

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