Kabir jayanti 2025: कबीर को किसी शाखा या पंथ में बांधा ही नहीं जा सकता

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: June 11, 2025 18:36 IST2025-06-11T18:35:42+5:302025-06-11T18:36:51+5:30

Kabir jayanti 2025: कबीर सूरज का नाम है, जिससे प्रकाश आच्छादित होता है, कबीर चंद्रमा हैं, जिनसे शीतलता मिलती है,

Kabir jayanti 2025 Special Kabir cannot be tied any sect or creed blog Dr Dharmaraj | Kabir jayanti 2025: कबीर को किसी शाखा या पंथ में बांधा ही नहीं जा सकता

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Highlights जल प्रवाह से जमीन को ही नहीं अपितु पूरे जीवन को ऊर्जस्वित करते हैं।जीवन की धारा अगाध रूप से प्रगाढ़ हो अग्रसारित होने लगती है।

डॉ. धर्मराज

आज का बड़ा सवाल है कि कबीर को कैसे पढ़ें... क्या जरूरत है कबीर की...?  यह प्रश्न कल भी था आज भी है और आगे भी रहेंगे किंतु कबीर की प्रासंगिकता हमेशा बनी रहेगी। क्या कबीर केवल समाज सुधारक ही थे सबसे बड़ा प्रश्न...? क्या हम कबीर को भक्ति काल की निर्गुनिया शाखा से पृथक देखना नहीं चाहते..? क्यों...दरअसल कबीर को किसी शाखा या पंथ में बांधा ही नहीं जा सकता। सच यह है कि कबीर सूरज का नाम है, जिससे प्रकाश आच्छादित होता है, कबीर चंद्रमा हैं, जिनसे शीतलता मिलती है,

कबीर सागर नहीं हैं, अपितु कल-कल बहती नदी का नाम हैं, जो समस्त संसार में अपनी जल प्रवाह से जमीन को ही नहीं अपितु पूरे जीवन को ऊर्जस्वित करते हैं। ...कबीर...कबीर हैं। साढ़े तीन अक्षर का कबीर का नाम जब ढाई आखर के प्रेम की बात करता है, तो जीवन में प्राण आ जाते हैं ,जीवन सांस लेने लगता है। जीवन की धारा अगाध रूप से प्रगाढ़ हो अग्रसारित होने लगती है।

आज आवश्यकता है कि हमें कबीर को उस सांचे से निकालना होगा, जिसमें हमने उन्हें डाल रखा है। कबीर सामाजिक तथा आध्यात्मिक के साथ वैज्ञानिक भी हैं... शुद्ध वैज्ञानिक, जो जीवन की उत्कृष्टता की तलाश में आजीवन भटकते रहे। वो लिखते हैं- 

"बकरी पाती खात है, ताकी काढ़ी खाल, जो नर बकरी खात हैं ताको कौन हवाल"

यानी कि पत्तों में जीवन की बात कबीर चौदहवीं शताब्दी में करते हैं, जिसे जगदीश चंद्र बसु ने 1902 में खोजा। कबीर जान-मानस, जो अंधेरे को अपना जीवन मान चुका था, उसके हाथों में शब्दों की लालटेन थमा दी ताकि वो टोने-टोटके, आडंबर, सामाजिक विषंगतियों आदि से निजात पा नव-जीवन की तलाश में निकलें, इसीलिए वो कहते हैं-

बेद कितेब छाड़ि देऊ पांडे

ई सब मन के भरमा

एक बूँद एकै मल मुतर, एक चाम एक गुदा।
एक जोती से सब उतपना, कौन बामन कौन सूदा ॥

कबीर का करघा क्या है...? शुद्ध तकनीक है, जिसे आधुनिकरण के नाम पर आज हम सब देखते हैं। ये करघा प्रगति, वैज्ञानिकता, स्वाबलंबन, रोजगार का प्रतीक है।  कबीर का आधार प्रेम है, हर बच्चा प्रेम लेकर ही जन्म लेता है किंतु बड़े होने की प्रक्रिया में प्रेम खो जाता है, वो प्रेम से सब कुछ पाना चाहते हैं, पा वहीं सकता है, जो देना जानता हो।

कबीर इसलिए कहते हैं- "ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय"। इस प्रेम को देखे कौन...? असल प्रश्न आँख का है, सूरज तो रोज निकलता है लेकिन अंधा सूरज को कैसे खोजें...? वो सूरज को खोजे या आँख को..! और सूरज मिल भी जाए तो क्या करें..! फिर कबीर कहते हैं-  "प्रेम न बारी ऊपजे, प्रेम न हाट बिकाय" इसलिए प्रेम से बड़ा कोई धर्म नहीं है, प्रेम के लिए किसी गुरु की जरूरत नहीं है....

बस केवल देने का भाव आ जाए, वही प्रेम है...और वही सच्चा प्रेमी..। कबीर पूरे जीवन एक खुमारी में जिए, जिसमें न होश और न ही बेहोश। मीरा का नृत्य, गौतम बुद्ध का मौन, सब खुमारी ही तो है, जैसे सहजा, सरमत, उमर खय्याम इसी खुमारी में ही तो जिए। ये जागरण की परम अवस्था है,  यही शुद्ध पागलपन है।

आज हमें  कबीर की प्रासंगिकता को समझना होगा। इसलिए आज आवश्यकता है कि हमारे परिवारों में कबीर द्वारा लिखित बीजक और कबीर ग्रंथावली हर घर में होनी चाहिए, दीपक या अगरबत्तियां दिखाने को नहीं बल्कि उन्हें पढ़ने, समझने को ताकि पढ़कर समाज में आवश्यक परिवर्तन किए जा सकें।

लेखक- डीन, केएम विश्वविद्यालय, मथुरा

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