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ब्लॉगः ईश्वर के लिए चारों भक्तों में कोई भेद नहीं, ज्ञानी ही सर्वोत्तम है...

By शक्तिनन्दन भारती | Updated: September 19, 2021 16:47 IST

शास्त्रों में ज्ञानी उसे कहा गया है, जो प्राणी मात्र में और कण-कण में ईश्वर को देखता है।

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ठळक मुद्देभक्ति के नौ प्रकार वस्तुतः हमें तात्विक समर्पण सिखाते हैं।हमारे चारों तरफ का दृश्यमान व अदृश्यमान जगत जिसे हम प्रकृति करते हैं, के पूर्ण समर्पण के कारण ही हम जीवित हैं।प्रकृति के प्रति समर्पण ही सगुण उपासना का प्रारंभिक चरण है।

शास्त्रों में 4 तरह के भक्त और 9 तरह की भक्ति बताई गई है। 4 तरह के भक्त हैं आर्त, अर्थाथी, जिज्ञासु और ज्ञानी। ईश्वर के लिए इन चारों भक्तों में कोई भेद नहीं है फिर भी वह ज्ञानी को अपना सबसे बड़ा पुत्र मानते हैं।

 

शास्त्रों में ज्ञानी उसे कहा गया है, जो प्राणी मात्र में और कण-कण में ईश्वर को देखता है। "भक्ति भक्त भगवंत गुरु चारिहूं बपूरा एक।" शास्त्रों में भक्त उसकी भक्ति उसके गुरु और भगवान सभी एक ही शरीर रूप माने जाते हैं। तत्वतः चारों में कोई भेद नहीं है। भक्ति के नौ प्रकार वस्तुतः हमें तात्विक समर्पण सिखाते हैं।

हमारे चारों तरफ का दृश्यमान व अदृश्यमान जगत जिसे हम प्रकृति करते हैं, के पूर्ण समर्पण के कारण ही हम जीवित हैं तथा जीवन की समस्त संभावनाएं भी जीवित हैं। प्रकृति के इस नैसर्गिक समर्पण के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना ही भक्ति का प्रकृष्ट रूप है।

वस्तुतः प्रकृति के प्रति समर्पण ही सगुण उपासना का प्रारंभिक चरण है। भक्ति और ध्यान की गहन अवस्थाओं में अनुभूत विम्बों और नादों का प्रकटीकरण ही कालांतर में सगुण उपासना का आधार बना। जिस प्रेम पूर्ण अवस्था के साथ प्रकृति अपना सर्वस्व हम पर न्योछावर किए हुए है, उसी प्रेम पूर्ण दशा के साथ इस प्रकृति के साथ एकाकारता का अनुभव करते हुए परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण ही परम भक्ति है और यही मुक्ति का आधार भी है।

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