आम जनजीवन के बीच रचे-बसे गणपति

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: September 18, 2018 05:52 IST2018-09-18T05:52:22+5:302018-09-18T05:52:22+5:30

गणोश या विनायक चतुर्थी का उत्सव बंगाल के दुर्गा पूजा से 26 साल पुराना है और इस बारे में स्पष्ट रिकॉर्ड है कि गणोश चतुर्थी को सामूहिक रूप से पुणो में 1892 में मनाया गया था

Ganesh Chaturthi 2018 history and Why should we celebrate | आम जनजीवन के बीच रचे-बसे गणपति

आम जनजीवन के बीच रचे-बसे गणपति

जवाहर सरकार
 
ऐसे दो बड़े त्यौहार हैं जो करीब दस दिनों तक चलते हैं। वे त्यौहार हैं महाराष्ट्र में गणोश चतुर्थी और बंगाल में दुर्गा पूजा। दोनों को सार्वजनिक योगदान से मनाया जाता है और पूरे इलाके के लोग उसमें शामिल होते हैं। दोनों त्यौहारों में लोग यथासंभव अधिक से अधिक स्थलों पर जाकर दर्शन करने की कोशिश करते हैं। हालांकि गणोश या विनायक चतुर्थी का उत्सव बंगाल के दुर्गा पूजा से 26 साल पुराना है और इस बारे में स्पष्ट रिकॉर्ड है कि गणोश चतुर्थी को सामूहिक रूप से पुणो में 1892 में मनाया गया था। इसके बाद लोकमान्य तिलक ने 1894 से पूरे महाराष्ट्र में गणोशोत्सव का प्रसार शुरू किया।  दोनों ही जगहों - मुंबई-पुणो और कोलकाता के त्यौहारों ने राष्ट्रवाद की मजबूत भावना को अभिव्यक्त करना शुरू किया था।

गणोश या विनायक चतुर्थी हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। गणोशोत्सव ऐसा त्यौहार है, जो पूरे डेक्कन क्षेत्र में - जहां भी मराठा साम्राज्य फैला, और उसके बाहर भी मनाया जाता है। यह न केवल आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और गोवा में मनाया जाता है, बल्कि पिल्लयार के रूप में तमिलनाडु और लम्बोदर पिरानालु के रूप में केरल में भी मनाया जाता है। शिवाजी, जिन्होंने 1680 तक शासन किया, इस उत्सव को विशाल पैमाने पर मनाते थे।

जॉन मडरेक ने, जिन्होंने 19वीं शताब्दी में यूरोपीय पर्यवेक्षकों के हवाले से भारतीय त्यौहारों का विवरण संकलित किया, इसका उल्लेख किया है। गणोश को गणपति, विनायक, पिल्लयार, इत्यादि नामों से पूजा जाता है। हर हिंदू घर में उनकी पूजा होती है और हर स्कूली छात्र अपने अध्ययन की शुरुआत ‘श्री गणोशाय नम:’ से करता है। हर भारतीय किताब इसी के साथ शुरू होती है। हर व्यवसायी कोई भी व्यवसाय शुरू करने से पहले उनकी प्रार्थना करता है। 

विवाह और सभी तरह के धार्मिक अनुष्ठानों में पहले विनायक का आवाहन किया जाता है। गणोश की भूमिका को 19वीं शताब्दी में एच।एच। विल्सन ने भी नोट किया था, जिन्होंने लिखा, एक हिंदू सोचता है कि अगर उसके प्रयास विफल होते हैं तो वह उसकी अक्षमता के कारण नहीं बल्कि भूतबाधा के कारण। इसलिए वह गणों के देवता के रूप में गणोशजी की सहायता मांगता है। गणोश एक नए समग्र भारत के रूपक हैं। उनका उल्लेख शिवपुराण, महाभारत के शांतिपर्व और उसके बाद भी मिलता है। ठीक एक शताब्दी पहले, चाल्र्स एच। बक ने गणपति की सामुदायिक पूजा का वर्णन इस प्रकार किया था : ‘‘अत्यधिक चमकदार छवि वाले, मूषक सवार इस देव प्रतिमा को पहले प्रतिष्ठापित किया जाता है और फिर एक इमारत में कुछ दिनों तक रखने के बाद, जुलूस निकाल कर नदी या तालाब में जयकारे के साथ विदाई दी जाती है।’’ यह विवरण क्या आज के हिसाब से पूरी तरह से मेल नहीं खाता है?

गणोश संभवत: सबसे लोकप्रिय हिंदू देवता हैं और उनकी पूजा पहले होती है; बाधाएं दूर करने व समृद्धि  लाने के लिए। समय है कि भगवान गणोश द्वारा निभाई गई उन सारी भूमिकाओं को हम पहचानें जिन्हें उन्होंने कई युगों में निभाया।
 

Web Title: Ganesh Chaturthi 2018 history and Why should we celebrate

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