Classical Language Status: प्राकृत भाषा की विपुल विरासत की सुनिश्चित हो सकेगी सुरक्षा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 7, 2024 05:20 AM2024-10-07T05:20:31+5:302024-10-07T05:20:31+5:30

Classical Language Status: छह भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिल चुका था- तमिल, संस्कृत, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ और ओड़िया. अब प्राकृत के साथ ही पालि, असमिया, बांग्ला, मराठी मिलाकर कुल ग्यारह शास्त्रीय भाषाएं हो गई हैं.

Classical Language Status Marathi, Bengali, Assamese, Pali, and Prakrit protection rich heritage Prakrit language will be ensured blog Shraman Dr. Pushpendra | Classical Language Status: प्राकृत भाषा की विपुल विरासत की सुनिश्चित हो सकेगी सुरक्षा

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Highlightsभारतीय भाषाओं की जननी है प्राकृत भाषा, क्योंकि प्राकृत का इतिहास सर्वाधिक प्राचीन रहा है.शास्त्रीय भाषाओं का एक लंबा इतिहास और समृद्ध, अद्वितीय और विशिष्ट साहित्यिक विरासत होती है.प्राकृत के प्रारंभिक ग्रंथ दो हजार से ढाई हजार वर्ष प्राचीन हैं. इनमें भारत की सांस्कृतिक विरासत का खजाना है.

श्रमण डॉ. पुष्पेन्द्र

 

भारत सरकार द्वारा प्राचीन भाषा प्राकृत को शास्त्रीय (क्लासिकल) भाषा का दर्जा प्रदान किया जाना अभिनंदनीय है. जैन समाज और प्राकृत प्रेमी लंबे समय से प्राकृत को शास्त्रीय भाषा की मान्यता की मांग कर रहे थे. प्राकृत में शास्त्रीय भाषा की सारी विशेषताएं पूरी तरह से विद्यमान हैं. जैन समाज में प्राकृत भाषा का शिक्षण और प्राकृत साहित्य का स्वाध्याय आम बात है, इससे जैन धर्म के विपुल साहित्यिक विरासत की सुरक्षा सुनिश्चित होगी क्योंकि प्राकृत भाषा जैन संस्कृति का आधार स्तंभ है, प्राकृत भाषा जैनधर्म-दर्शन और आगम की मूल भाषा है. यही तो महावीर की वाणी है जो लोक भाषा प्राकृत में गुम्फित है. रचित है और प्रवाहित है. भारतीय भाषाओं की जननी है प्राकृत भाषा, क्योंकि प्राकृत का इतिहास सर्वाधिक प्राचीन रहा है.

उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व छह भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिल चुका था- तमिल, संस्कृत, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ और ओड़िया. अब प्राकृत के साथ ही पालि, असमिया, बांग्ला, मराठी मिलाकर कुल ग्यारह शास्त्रीय भाषाएं हो गई हैं. शास्त्रीय भाषाओं का एक लंबा इतिहास और समृद्ध, अद्वितीय और विशिष्ट साहित्यिक विरासत होती है.

प्राकृत के प्रारंभिक ग्रंथ दो हजार से ढाई हजार वर्ष प्राचीन हैं. इनमें भारत की सांस्कृतिक विरासत का खजाना है. 2022 में रोहतक (हरियाणा) में आयोजित प्रथम राष्ट्रीय प्राकृत संगोष्ठी में भी प्राकृत मनीषी डॉ. दिलीप धींग ने प्राकृत को शास्त्रीय भाषा की मान्यता का प्रस्ताव रखा था, जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया था.

उल्लेखनीय है कि माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान द्वारा कला संकाय के अंतर्गत पूर्व में संचालित प्राकृत भाषा वैकल्पिक विषय को शैक्षणिक सत्र 2023-24 से अतिरिक्त विषय के रूप में भी सम्मिलित करने का निर्णय किया गया है. बोर्ड सचिव मेघना चौधरी के आदेश के अनुसार कक्षा 11 एवं 12 में कला संकाय के अंतर्गत लिए जाने वाले तीन वैकल्पिक विषयों के साथ ही विद्यार्थी अब चौथे अतिरिक्त वैकल्पिक विषय के रूप में अध्ययन कर सकेंगे. स्कूली शिक्षा के स्तर पर प्राकृत भाषा को अतिरिक्त विषय के रूप में लागू करने वाला राजस्थान देश का प्रथम राज्य है.

अंतरराष्ट्रीय प्राकृत शोध केंद्र के पूर्व निदेशक डॉ दिलीप धींग के अनुसार शोधकर्ताओं को अब प्राकृत में अध्ययन करने में सुगमता रहेगी क्योंकि देश के किसी भी विश्वविद्यालय में अब प्राकृत भाषा का अध्ययन करवाया जाएगा जिससे प्राकृत जानने वालों की संख्या में इजाफा होगा. लोकतंत्र में सारी योजनाएं संख्या के आधार पर होती हैं और सरकार प्राकृत  के विकास पर और अधिक ध्यान देगी.

हमारी विरासत, आगम  ग्रंथों की ओर लोगों का ध्यान जाएगा. इनके अनुवाद और पठन-पाठन पर शोध-परक काम होगा. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बृहस्पतिवार को मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बांग्ला भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने को मंजूरी दी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में यह निर्णय लिया गया।

मंत्रिमंडल के फैसलों की जानकारी देते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, ‘‘यह एक ऐतिहासिक निर्णय है और यह फैसला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राजग सरकार के हमारी संस्कृति को आगे बढ़ाने, हमारी विरासत पर गर्व करने और सभी भारतीय भाषाओं तथा हमारी समृद्ध विरासत पर गर्व करने के दर्शन के अनुरूप है।’’

सरकार ने कहा कि शास्त्रीय भाषाएं भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की संरक्षक के रूप में काम करती हैं, तथा प्रत्येक समुदाय के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सार को प्रस्तुत करती हैं। भारत सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को ‘‘शास्त्रीय भाषा’’ के रूप में भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का निर्णय लिया।

जिसके तहत तमिल को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया तथा उसके बाद संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और उड़िया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया। एक सरकारी बयान में कहा गया है कि 2013 में महाराष्ट्र सरकार की ओर से एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ था जिसमें मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का अनुरोध किया गया था।

इस प्रस्ताव को भाषा विज्ञान विशेषज्ञ समिति (एलईसी) को भेज दिया गया था। एलईसी ने शास्त्रीय भाषा के लिए मराठी की सिफारिश की। महाराष्ट्र में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं और यह राज्य में एक बड़ा चुनावी मुद्दा था। बयान में कहा गया कि इस बीच, बिहार, असम और पश्चिम बंगाल से भी पाली, प्राकृत, असमिया और बांग्ला को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के प्रस्ताव प्राप्त हुए थे।

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