ब्लॉग: आत्मा की शुद्धि का महापर्व है पर्यूषण

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: August 31, 2024 10:02 AM2024-08-31T10:02:04+5:302024-08-31T10:04:15+5:30

जैन धर्म का पर्यूषण पर्व मनुष्य को उत्तम गुण अपनाने की प्रेरणा देता है. इन दिनों जैन धर्मावलंबी व्रत, तप, साधना कर आत्मा की शुद्धि का प्रयास करते हैं और स्वयं के पापों की आलोचन करते हुए भविष्य में उनसे बचने की प्रतिज्ञा करते हैं.

Blog Paryushan is the great festival of purification of the soul | ब्लॉग: आत्मा की शुद्धि का महापर्व है पर्यूषण

जैन धर्म का पर्यूषण पर्व मनुष्य को उत्तम गुण अपनाने की प्रेरणा देता है

Highlightsजैन धर्म में सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है पर्यूषण महापर्वश्वेतांबर व दिगंबर समुदाय के धर्मावलंबी भाद्रपद मास में ‘पर्यूषण महापर्व’ की साधना - आराधना करते हैंइस साल 1 सितम्बर से प्रारम्भ होंगे तथा 8 सितम्बर को ‘संवत्सरी महापर्व’ (क्षमापर्व) के साथ पूर्ण होंगे

जैन धर्म का पर्यूषण पर्व मनुष्य को उत्तम गुण अपनाने की प्रेरणा देता है. इन दिनों जैन धर्मावलंबी व्रत, तप, साधना कर आत्मा की शुद्धि का प्रयास करते हैं और स्वयं  के पापों की आलोचन करते हुए भविष्य में उनसे बचने की प्रतिज्ञा करते हैं. इस पर्व का मुख्य उद्देश्य आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए आवश्यक उपक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना होता है.

जैन धर्म में सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है पर्यूषण महापर्व. श्वेतांबर व दिगंबर समुदाय के धर्मावलंबी भाद्रपद मास में ‘पर्यूषण महापर्व’ की साधना - आराधना करते हैं. श्वेतांबर समुदाय के आठ दिवस को ‘पर्यूषण’ के नाम से जाना जाता है जो कि  इस साल 1 सितम्बर से प्रारम्भ होंगे तथा 8 सितम्बर को ‘संवत्सरी महापर्व’ (क्षमापर्व) के साथ पूर्ण होंगे. वहीं दिगम्बर समुदाय के दस दिवसों को ‘दस लक्षण महापर्व’ के नाम से जाना जाता है, जो कि 8 सितंबर से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी 17 सितंबर को समाप्त होंगे.

( चातुर्मास प्रारम्भ के 49 या 50 वें दिवस पर संवत्सरी पर्व की साधना की जाती है. इसी क्रम में देश के विविध अंचलों में चातुर्मासरत श्रमण-श्रमणियों के पावन सान्निध्य में जैन धर्मावलम्बी तप-त्याग-साधना-आराधनापूर्वक इस महापर्व को मनाएंगे. इन दिवसों में जैन अनुयायियों के मुख्यतया पांच प्रमुख अंग हैं- स्वाध्याय, उपवास, प्रतिक्रमण, क्षमायाचना और दान. पर्यूषण पर्व को क्षमा पर्व के नाम से भी जाना जाता है. पर्यूषण का अर्थ दो शब्दों परि (स्वयं को याद करना) और वासन (स्थान) से लिया गया है. इसका मतलब है कि इस उत्सव के दौरान सभी जैन एक साथ आते हैं और अपने मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए एक साथ उपवास और ध्यान करते हैं. जैन धर्म में अहिंसा एवं आत्मा की शुद्धि को सर्वोपरि स्थान दिया गया है. मान्यता है कि प्रत्येक समय हमारे द्वारा किए गए अच्छे या बुरे कार्यों से कर्म बंध होता है, जिनका फल हमें भोगना पड़ता है. शुभ कर्म जीवन व आत्मा को उच्च स्थान तक ले जाते हैं, वहीं अशुभ कर्मों से हमारी आत्मा मलिन होती है, जिसको पवित्र व स्वच्छ करने के लिए पर्यूषण पर्व की आराधना की जाती है.

श्वेतांबर जैन समुदाय में पर्यूषण पर्व का आरंभ भाद्रपद के कृष्ण पक्ष से ही होता है जो भाद्रपद के शुक्ल पक्ष पर संवत्सरी से पूर्ण होता है. यह इस बात का संकेत है कि कृष्ण पक्ष यानी अंधेरे को दूर करते हुए शुक्ल पक्ष यानी उजाले को प्राप्त कर लो. हमारी आत्मा में भी कषायों अर्थात क्रोध-मान-माया-लोभ का अंधेरा छाया हुआ है. इसे पर्यूषण के पवित्र प्रकाश से दूर किया जा सकता है

(श्रमण डॉ. पुष्पेन्द्र)

Web Title: Blog Paryushan is the great festival of purification of the soul

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