वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: भाजपा के हाथ से फिसलते राज्य
By वेद प्रताप वैदिक | Updated: December 26, 2019 07:32 IST2019-12-26T07:32:04+5:302019-12-26T07:32:04+5:30
हरियाणा में यदि चौटाला-पार्टी का टेका नहीं मिलता तो वहां से भी भाजपा गई थी. सिर्फ उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे बड़े प्रांतों में भाजपा अपने दम पर टिकी हुई है. कर्नाटक में भी किसी तरह गाड़ी चल रही है. यदि इन प्रांतों में भी आज चुनाव हो जाएं तो क्या होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता.

लेकिन मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र और अब झारखंड में भाजपा का क्षरण किस बात का सूचक है?
झारखंड में अपनी हार से यदि भाजपा कोई सबक नहीं लेगी तो अब उसे पछताने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा. हिंदी इलाके में जन्मी, पली-बढ़ी भाजपा का अब हिंदी इलाके से ही सूपड़ा साफ होने लगा है. 2019 के संसदीय चुनाव में भाजपा को प्रचंड विजय मिली. लेकिन मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र और अब झारखंड में भाजपा का क्षरण किस बात का सूचक है?
हरियाणा में यदि चौटाला-पार्टी का टेका नहीं मिलता तो वहां से भी भाजपा गई थी. सिर्फ उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे बड़े प्रांतों में भाजपा अपने दम पर टिकी हुई है. कर्नाटक में भी किसी तरह गाड़ी चल रही है. यदि इन प्रांतों में भी आज चुनाव हो जाएं तो क्या होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता.
अकेले झारखंड में भाजपा की हार के जो छह-सात कारण हैं, वे सब आप सुन चुके हैं और पढ़ चुके हैं. उनके बारे में मुझे यहां कुछ नहीं कहना है. मैं तो इससे भी ज्यादा बुनियादी सवाल कर रहा हूं. सारे देश में भाजपा से हो रहे इस मोहभंग का कारण क्या है? देश की जनता कई फैसलों से तंग आ चुकी है. वह नोटबंदी का हो, जीएसटी का हो, नागरिकता कानून का हो या स्वच्छ भारत का हो. उस पर भीड़ की अंधी हिंसा, बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, नेताओं की प्रचारप्रियता भारी पड़ रही है.
ऐसा नहीं है कि भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को इन सबका पता नहीं चल रहा है. उन्हें सब पता है. उन्हें पता है कि उनके बड़े नेता जनता से नहीं, सिर्फ नौकरशाहों से संवाद करते हैं. अब पालकी के नीचे लगे कंधे एक के बाद एक खिसकते जा रहे हैं. इन खिसकते हुए कंधों का विकल्प ‘हिंदू वोट बैंक’ तो कतई नहीं बन सकता. हिंदू, हिंदू जरूर है लेकिन वह आंख मूंदकर नहीं बैठा हुआ है.