पीयूष पांडे का ब्लॉग: टिकट आगे-आगे विचारधारा पीछे-पीछे

By पीयूष पाण्डेय | Published: February 27, 2021 12:42 PM2021-02-27T12:42:24+5:302021-02-27T12:44:42+5:30

समझदार राजनेता जानते हैं कि आलाकमान की आवाज ही असल आवाज है. क्योंकि टिकट नहीं मिला तो पूरी राजनीति धरी की धरी रह जाएगी और पार्टी के सत्ता में आने के बाद मलाईदार पद नहीं मिला तो राजनेता होने का फायदा ही क्या.

Piyush Pandey's blog: Ticket forward-forward ideology back-and-forth | पीयूष पांडे का ब्लॉग: टिकट आगे-आगे विचारधारा पीछे-पीछे

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो)

पश्चिम बंगाल में नेताओं के बीच भगदड़ मची है. टिकट आतुर नेता एक पार्टी से दूसरी पार्टी में भाग रहे हैं. विचारधारा हांफते हुए उनके पीछे भाग रही है. विचारधारा भी कन्फ्यूज है और कार्यकर्ता भी.

वे रात में जिस विरोधी पार्टी के कार्यकर्ताओं की ठुकाई-पिटाई कर घर लौटते हैं, सुबह-सुबह उनके अपने नेताजी उसी विरोधी पार्टी में शामिल हो चुके होते हैं. जिस तरह बच्चे का नाम मां-बाप तय करते हैं, उसी तरह कार्यकर्ता की पार्टी उसका नेता तय करता है.

नेता के विरोधी पार्टी में शामिल होते ही नेता के समर्थक कार्यकर्ता ऑटोमेटिकली विरोधी पार्टी का हिस्सा बन जाते हैं. एक जमाने में गयाराम नामक एक नेता ने एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदलने का रिकॉर्ड बनाया था. यह रिकॉर्ड अभी टूटा नहीं है. लेकिन राजनेताओं की टिकट लोलुपता के चलते टूटेगा नहीं, इसकी गारंटी कोई नहीं ले सकता.

ये अंतरात्मा की आवाज भी कमाल चीज है साहब. पांच साल भले ये सुनाई न दे, लेकिन टिकट कटने के बाद या टिकट कटने की आशंका से पहले नेताओं को अचानक अंतरात्मा की आवाज सुनाई देती है, जिसके बाद वो पार्टी बदलने का फैसला करते हैं. टिकट झटकने के बाद नेता अंतरात्मा की नहीं सिर्फ आलाकमान की आवाज सुनता है.

आलाकमान वो शख्स होता है, जो बिना कमान के लक्ष्य को भेद देता है. आलाकमान ही टिकट देता है. आलाकमान ही मंत्रीपद देता है. आप कितने ज्ञानी हों, कितने समझदार हों लेकिन आलाकमान की आवाज आपको सही-सही सुनाई नहीं देती तो आपकी सारे ज्ञान-समझदारी और अक्लमंदी का लब्बोलुआब शून्य है.

समझदार राजनेता जानते हैं कि आलाकमान की आवाज ही असल आवाज है. क्योंकि टिकट नहीं मिला तो पूरी राजनीति धरी की धरी रह जाएगी और पार्टी के सत्ता में आने के बाद मलाईदार पद नहीं मिला तो राजनेता होने का फायदा ही क्या. आत्मा का क्या है. वो अजर-अमर है.

भगवत गीता में साफ-साफ भगवान कृष्ण ने समझाया है- आत्मा को शस्त्न काट नहीं सकते. अग्नि जला नहीं सकती. पानी इसे भिगो नहीं सकता. यानी आत्मा तो आत्मा रहनी ही है. आत्मा रहेगी तो उसकी आवाज भी रहेगी. इस जन्म में न सुन पाएंगे तो अगले जन्म में सुन लेंगे.

Web Title: Piyush Pandey's blog: Ticket forward-forward ideology back-and-forth

राजनीति से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे