मैंने कभी कहा नहीं - 'तुम ही तो मेरी ताकत हो; तुम्हें खो देने का डर मुझे रुला देता है माँ'

By मोहित सिंह | Published: May 13, 2018 06:20 AM2018-05-13T06:20:26+5:302018-05-14T12:26:56+5:30

Happy Mother's Day 2018: मैं - एक भाग्यशाली बेटा, सभी माँओं को दिल से धन्यवाद देना चाहता हूँ कि अगर आप हमारे जीवन में रक्त की तरह ना बह रही होतीं तो हम, हम ना होते। आपके अस्तित्व से ही तो हम संतानों का अस्तित्व है, आप हैं तो हम हैं.

Mother's Day: I never said - 'You are my strength; The fear of losing you makes me cry. Mother' | मैंने कभी कहा नहीं - 'तुम ही तो मेरी ताकत हो; तुम्हें खो देने का डर मुझे रुला देता है माँ'

Happy Mother's Day 2018| हैपी मदर्स डे 2018

मेरी माँ जो मेरे से बहुत दूर एक छोटे से शहर में पापा के साथ अकेली रहती हैं, कई बार मुझे ऐसे समय फ़ोन कर देती हैं जब मैं बिज़ी होता हूँ और उनका फ़ोन लेने के बाद मैं बिना उनकी पूरी बात सुने बोल देता हूँ कि बाद में बात करता हूँ, तब मुझे यह एहसास नहीं होता की उनकी ख़ामोशी भी बोल रही थी - बेटा बस तेरी आवाज़ सुनने का मन था. कई बार मैं पलट कर कॉल करता हूँ एक जिम्मेदारी की तरह और कई बार भूल जाता हूँ, यह सोचकर कि कोई खास बात नहीं रही होगी नहीं तो फिर से कॉल करतीं। 

मेरी माँ, जो मेरी आवाज़ से ही भाँप जाती हैं कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है और मुझे कॉल ना करके मेरी बीवी से दिन भर मेरा हाल चाल लेती हैं उन माँ को मैं सिर्फ एक दिन सम्मान देकर कैसे गिर सकता हूँ. 

मेरी माँ जॉब करती थीं. सप्ताह में उनके पास एक ही दिन होता था आराम करने का क्यूंकि कामकाजी महिलाओं की जिम्मेदारी एक मर्द की तरह सिर्फ नौकरी ही नहीं होती, उनको घर भी संभालना पड़ता है. बचपन में हमारी हर चटोरी ख़्वाहिशों को पूरा करने का एक दिन रविवार होता था, जिस दिन माँ बिना आराम किये हमारी हर ख़्वाहिश पूरा करती थीं. डोसा खाना है तो बाहर नहीं जायेंगे, लो जी डोसे का तवा घर में ही आ गया अब जितना खाना है उतना खाओ. गोलगप्पे, हमारे यहाँ पानी पूरी को इसी नाम से जाना जाता है, अगर बहुत मन है तो लो जी माँ जुट गयी रविवार की सुबह से ही गोलगप्पे तलने, छोले और पानी बनाने। ऐसी हैं मेरी माँ. 

अब तो माँ सत्तर साल की हो गयी हैं लेकिन दौड़ भाग वैसे ही जैसे सालों पहले हमारे लिए किया करती थीं, अब हमारे बच्चों के लिए करती हैं. मैं और भईया आज भी उनके सामने बच्चे ही बन जाते हैं - वैसे ही लड़ना - झगड़ना, वैसा ही प्यार दुलार, जैसा कि बचपन में था. समय बदल गया लेकिन माँ का प्यार वैसा ही है - न एक बूंद कम न एक बूंद ज्यादा, हाँ  बंट तो गया है लेकिन है उतना ही जितना बचपन में था तब दो थे अब सात. अजी मैंने उनकी बहुओं को भी गिन  रखा है - विश्वास ना हो तो मिल लीजिये।

मेरे जीवन में स्त्रीशक्ति का जीता जागता उदाहरण हैं मेरी माँ - अक़सर हम उनसे उनके बचपन की बातें पूछा करते थे. पूछा करते थे कि राजपूत परिवार की होकर कैसे वो इतनी पढ़ाई कर पायीं, हमारे खानदान में बेटियों का पढ़ना ही मना था. तो उन्होंने अपने संघर्ष की जो कहानी बतायी उसके बाद मेरे लिए कोई और रोल मॉडल हो ही नहीं सकता। अपने सभी भाई - बहनों में सबसे तेज़ थीं माँ और यह बात उनके किसी भी भाई को पसंद नहीं थी. उनकी किताबें तक जला दी गयी थीं एक बार. उन्होंने पूरी किताब लिख कर दोबारा से तैयार किया और बोर्ड के इम्तेहान में पूरे जिले में टॉप किया था और भाग्य देखिये उनके सारे भाई फेल थे. 12वीं का परिणाम आ गया था और नाना जी ने नानी जी के साथ सभी बच्चों को गांव भेज दिया था गर्मियों की छुट्टी के लिए. जैसा कि मैंने पहले ही लिखा कि हमारे घरों की बेटियों पढ़ाई ही नहीं करती, माँ ने तो फिर भी लड़कर 12वीं पास कर ली थी. लेकिन अब नाना जी का मन उनको और पढ़ाने का नहीं था, यह बात जब माँ को पता लगी तो उन्होंने गांव से वापस घर आने के लिए बिल्कुल मना कर दिया और एक चिट्ठी लिखकर नाना जी को एक सन्देश दे दिया कि अब वो घर लौट कर नहीं आयेंगी, शादी के बाद उनको जो भी काम करना है वो यहाँ सीख रही हैं - गाय -भैस को चारा देने से लेकर गेहूं की चक्की चलाना, गोबर के कण्डे बनाने से लेकर कुएं से पानी काढ़ना - पानी से भरी बाल्टी को कुंए से बाहर खींचने को हमारे यहाँ काढ़ना कहते हैं. 

नाना को माँ की ज़िद समझ में आ गयी और उन्होंने उनका एडमिशन ग्रेजुएशन में करवा कर उनको रेल के टिकट के साथ एडमिशन की रसीद भेजी और तब जाकर माँ अपने घर वापस गयीं। ग्रेजुएशन के अंतिम साल में उनकी शादी हो गयी और पापा ने उनको आगे की पढ़ाई बीएचयू से करवायी। 

बीएड के बाद माँ की जॉब गवर्नमेंट कॉलेज में लग गयी लेकिन उनका संघर्ष यहाँ ख़त्म नहीं हुआ. बड़ी कुशलता से माँ घर और कॉलेज दोनों की जिम्मेदारी निभाती रहीं लेकिन छोटे शहर में लोगों की मानसिकता भी छोटी ही होती है. घर से रोज़ कॉलेज आने - जाने को लेकर पूरी कॉलोनी में उनको लेकर बाते बननी शुरू हो गयी. किसी ने उनको रंगीली चाची नाम दिया तो किसी ने आशु की मम्मी आई लव यू लिखकर लव लेटर भेज दिया। उनके नौकरी करने को उनके चरित्र से जोड़ना शुरू कर दिया गया. लेकिन इन बातों की नकारात्मकता को अपने ऊपर बिना हावी हुए उन्होंने पापा का हर कदम पर साथ दिया - घर बनाने से लेकर हम भाइयों का करियर बनाने तक. एक दिन थक कर कॉलोनी वाले खुद ही शांत हो गए. अब तो वहां पर और भी कई घरों से बेटियां और बहुएं नौकरी के लिए घर की दहलीज लांघ चुकी हैं. लेकिन इस संकीर्ण विचारधारा को तोड़ने का श्रेय मेरी माँ को ही जाता है. 

माँ की सहनशीलता और हिम्मत से जुड़ी एक घटना याद आ रही है - भैया की शादी हो चुकी थी और मेरी भतीजी का जन्म हो चुका था. भैया के फेफड़ों में पस भर गया था कर उनको AIIMS के ICU में भर्ती कराया गया. हालत बहुत सीरियस थी और डॉक्टर मरीजों को ज्यादा टाइम नहीं दे रहे थे. उस दौरान माँ पूरे एक महीने अस्पताल में भैया के साथ ही बिना नहाये रही थीं. जब हम उनको घर जाने के लिए बोलते थे तो उनका सिर्फ एक ही कहना होता था - मोनू को साथ लेकर ही घर जायेंगे। और उनकी जिद के आगे समय को भी झुकना पड़ा. अंत में वो भैया को ठीक करा कर अपने साथ ही लेकर घर आयीं। इस दौरान, उन्होंने डॉक्टर्स को भी उनके गैरजिम्मेदाराना व्यवहार के लिए सुना दिया था और उनके डांटने के बाद से सभी डॉक्टर्स सही समय पर और सही तरीके से सभी मरीजो का मुआवना करने लगे थे. आज इस बात को कितने ही साल बीत चुके हैं, भईया बिल्कुल स्वस्थ हैं. माँ शरीर से भले ही ढल गयी हो लेकिन हिम्मत अब भी उनमें पहले जैसी ही है.

जब मेरी पत्नी दोबारा प्रेग्नेंट हुईं तो उस समय हम मुंबई में थे. इस खबर को सुनकर माँ सीधे हमारे पास आ गयीं और छोटे साहब के हो जाने के महीनों बाद तक जच्चा बच्चा की सेवा मैं ऐसे लगी रही जैसे वो 70 की नहीं 27 साल की हों.

मेरी तो प्रेरणा हैं मेरी माँ. शायद उनका ही अंश होने की वजह से मैं अपनी जिम्मेदारियों को लेकर ज्यादा ही गंभीर रहता हूँ. लेकिन मैंने कभी कहा नहीं - 'तुम्हें और पापा को खो देने का डर मुझे हमेशा रुला देता है माँ. भैया को बोलता हूँ तो बात टाल जाते हैं, हम दोनों ही आप दोनों के बिना भविष्य के बारे में सोचना ही नहीं चाहते। पर हर दिन यह एक डर मेरे अंदर से मुझे सताता रहता है कि कैसा होगा हमारा जीवन जब आप दोनों नहीं होंगे हमें सँभालने के लिए. किससे कहेंगे हम अपनी बातें, कौन बिना सुने ही भांप जायेगा हमारा दर्द। फिर दिल बोलता है उस दिन को लेकर निराश होने से अच्छा है आप के साथ बीत रहे इन दिनों को लेकर खुश रहूँ।

देखिये, इतनी बातों में मैं माँ का आप लोगों से परिचय कराना ही भूल गया - मेरी माँ 'कृष्णा' एक क्षत्राणी जिसने जीवन भर लड़ी अपने अस्तित्व को बनाये रखने की लड़ाई। 

Web Title: Mother's Day: I never said - 'You are my strength; The fear of losing you makes me cry. Mother'

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