Happy Father's Day: मुझे गर्व है कि मैं आपके ही नाम से जाना जाता हूँ "पापा"
By मोहित सिंह | Published: June 14, 2018 10:32 AM2018-06-14T10:32:52+5:302018-06-14T14:19:58+5:30
हैप्पी फादर्स डे (Happy Father's Day): आज भी हमारे पापा हम दोनों भाइयों के लिए ही करते रहते हैं, तुम्हारा पीपीएफ जमा कर दिया, बेटी की पॉलिसी जमा हो गयी, तुम्हारा फ़ोन ख़राब हो गया है मेरा फ़ोन ले लो, पैसे हैं तुम्हारे पास, कुछ पैसे रख लो. कभी भी उन्होंने हमसे कोई उम्मीद नहीं की. हम कुछ छोटा सा भी उनके लिए कर देते हैं तो उनके चहरे इतनी ज्यादा ख़ुशी दिखती है कि हमने क्या चांद - तारे तोड़ कर दे दिया हो. ऐसे हैं मेरे पापा.
आपके ही नाम से जाना जाता हूँ "पापा".
भला इस से बड़ी शोहरत मेरे लिए क्या होगी
जब से होश संभाला है अपने मम्मी - पापा को बस मेहनत करते ही देखा। कभी भी उन्होंने अपने बारे में नहीं सोचा. जहां मेरी मम्मी के पास कुछ अच्छी साड़ियां ही थी जो वो रोज अपने कॉलेज पहन कर जाती थी और जब भी किसी के घर कोई फ़ंक्शन होता था तो बगल वाली आंटी से उनकी सिल्क की साड़ी मांग लिया करती थीं. मेरे पापा शायद चार सेट कपड़े थे उनके पास - तीन पैंट - शर्ट और एक सफारी सूट. कॉलेज और फंक्शन में वहीं चला करते थे. और वो अपने किसी फ्रेंड से कपड़े उधार भी नहीं लेते थे.
हम दोनों भाई थोड़ा बड़े हुए, चीज़ों को समझना शुरू किया तो लगा कि उन्होंने अपना सारा जीवन अपने परिवार के नाम ही तो कर दिया था. ना - ना, परिवार में सिर्फ हमें मत गिनियेगा, मेरे पापा एक अच्छे बेटे और भाई भी हैं. उनके लिए परिवार सिर्फ हम चार नहीं, हम सब थे - मेरे बाबू जी, मेरी अम्मा, मेरे चाचा - चाची उनके 5 बच्चे मेरी बुआ और उनका परिवार. सबके लिए सामान भाव से पापा अपना कर्म करते चले आ रहे थे.
तो मैं बात कर रहा था कपड़ों की, भईया मेरे से 6 साल बड़े हैं तो वो पहले ही समझदार हो गए थे मैं थोड़ी देर से हुआ, घर में छोटा था और सबका दुलारा था ना इसलिए. हम दोनों भाइयों ने पैसा सेव करना शुरू किया - जो भी पैसे हमें जेब खर्च या रिश्तेदारों से मिलते थे वो हम दोनों बचा लेते थे.साल भर सेविंग के बाद हमारे लिए एक बहुत बड़ा दिन आया करता था जिस दिन हम उन बचाये पैसों का सदुपयोग किया करते थे - 27 जून, मेरे पापा - मम्मी की शादी की सालगिरह. जी हाँ , कुछ दिनों में आने ही वाली है. लेकिन अब सिर्फ हम फ़ोन पर विश करके फॉर्मेलिटी पूरी कर देते हैं. पापा मम्मी दूर रहते हैं ना. उनके पास हमारे लिए टाइम हैं, वो कभी भी हमारे पास आ जाते हैं, हमारे पास नहीं है. बिजी लाइफ, जॉब और ना जाने क्या - क्या? हाँ तो हम उस साल की बचत से दोनों के लिए कपड़े खरीदते थे, मम्मी के लिए साड़ी और पापा के लिए पैंट - शर्ट या कुर्ता - पजामा, नया कपड़ा - कम से कम अगली सालगिरह तक के लिए तो नया ही.
एक वाकया याद आ रहा है, मम्मी के पास पार्टी में पहनने के लिए अच्छी साड़ी नहीं थी तो हम भाइयों ने सोचा इस बार मम्मी को पार्टी के लिए थोड़ी महँगी साड़ी देते हैं. बस फिर क्या था बजट बिगड़ गया और पापा को एक लुंगी और बनियान से संतोष करना पड़ा. लेकिन मेरे पापा उनके चेहरे की खुशी वैसी ही थी जैसा कि एक अनमोल तोहफा पाने के बाद होती है.
मेरे पापा, हमेशा हंसते रहते हैं उन जैसा सज्जन इंसान आपको ढूंढे नहीं मिलेगा। मेरे सारे रिश्तेदार सबसे ज्यादा तारीफ मेरे पापा की ही करते हैं. मेरी नानी के फ़ेवरिट दामाद थे मेरे पापा. नानी बताती थीं कि जब मम्मी कि शादी पापा से तय हुई थी तो नानी ने पापा को नहीं देखा था जब बारात घर के दरवाजे पर आयी तो पापा को देख कर नानी बेहोश हो गयी थीं कि मेरी इतनी खूबसूरत बेटी के लिए ये कैसा लड़का खोजा नाना जी ने. वही नानी अपने मरते समय तक मेरे पापा के ही सबसे करीब रहीं. उनके बीच ऐसा रिश्ता बन गया जैसा एक माँ - बेटे के बीच होता है.
मम्मी एक जमींदार परिवार से ताल्लुक रखती हैं लेकिन मेरे पापा एक गरीब किसान परिवार से हैं. नाना ने पापा को देखकर उनकी प्रतिभा को पहचाना था और उनसे मम्मी की शादी तय की थी जबकि उस समय लोग लड़के को नहीं उसकी जमीन जायदाद को देख कर शादी तय करते थे. मम्मी बताती थीं कि जब वो विदा होकर पापा के घर आयी थीं तो खाना भी दूसरे घरों से अनाज मांग कर बना था - एक घर से आलू उधार लिया गया सब्जी बनाने के लिए और एक घर से तेल. तब जाकर घर में दाल, चावल, रोटी और सब्जी - पूरा खाना बना था.
मेरे रोलमॉडल हैं मेरे पापा - उनके जीवन से आप भी शिक्षा ले सकते हैं. जैसा मैंने बताया कि पापा एक गरीब किसान परिवार से थे, बचपन से ही पूरा परिवार दो वक़्त की रोटी के लिए काम करता था, पापा भी प्राइमरी स्कूल से घर वापस लौट कर जंगल में महुआ बीना करते थे और शाम को इकठ्ठा करके घर आते थे, मेरी दादी उन सभी महुआ को कूट कर रखती थीं और बाजार में उन्हें बेचा जाता था. पूरा परिवार एक समय सत्तू घोल कर पीता था क्यूकी खाना सिर्फ एक समय ही बन पता था. बाबू जी पर बड़े परिवार की जिम्मेदारी थी और उनपर बहुत कर्ज चढ़ गया था.
पापा को आठवीं की स्कॉलरशिप मिलने लगी तो बाबू जी कि कुछ हेल्प होने लगी. पापा उम्र से पहले ही समझदार हो गए थे. गाँव में हाईस्कूल नहीं था तो उन्होंने शहर में दाखिला ले लिया और बाबू जी पर पढ़ाई का बोझ ना आये इसलिए उस छोटी उम्र में ही दूसरों के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. बारहवीं पास करने के बाद बाबूजी ने उनपर नौकरी करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया था, उस समय 12 पास करके लोग बाबू की नौकरी करने लगते थे. पापा का आगे पढ़ने का मन था तो उन्होंने बड़ी मुश्किल से अपने पिताजी को मनाया. पापा ने खुद अपनी पढ़ाई पूरी की और मम्मी को भी पढ़ाया. मम्मी को स्वावलम्बी बनाने का पूरा श्रेय पापा को जाता है.
घर पर भी मैंने हमेशा पापा को मम्मी की हर काम में हेल्प करते देखा है शायद यही कारण है कि मुझे घर का सारा काम करना आता है - खाना बनाना भी. पढ़ाई पूरी होने के बाद पापा की नौकरी अध्यापक के पद पर लग गयी तो उन्होंने अपने घर का सारा कर्ज उतारा, सगी और चचेरी बहनों की शादी कराई, मेरे चाचा की पोस्ट ऑफिस में नौकरी लगवाई. घर टूट गया था तो पक्का घर बनवाया और खेत के लिए पम्पिंग सेट लगवाया. यह सब मैं उनके अहसान के तौर पर नहीं गिनवा रहा हूँ, इसलिए लिख रहा हूँ ताकि बता सकूं कि उनको अपने परिवार की कितनी चिंता थी. मेरे चाचा मेरे पापा से 15 साल छोटे थे उनका अभी कुछ दिनों पहले ही देहांत हो गया और मैंने पापा को पहली बार इस तरह बिलख - बिलख कर रोते देखा. दिल भर गया था पापा को ऐसे देखकर. पापा के बारे में लिखने बैठूंगा तो ना जाने कितने पन्ने भर जायेंगे लेकिन उनके बारे में मेरी बातें पूरी नहीं होंगी। बस आखिर में इतना कहना चाहूंगा कि हमारे परिवार की नींव हैं पापा.
बस भगवान से इतना ही चाहता हूँ कि मेरे पापा - मम्मी को हमेशा सलामत रखें.