विश्व गौरैया दिवस: तुम्हारी चूं-चूं की आवाज आज भी याद करता है आंगन
By मेघना वर्मा | Published: March 20, 2018 01:57 PM2018-03-20T13:57:17+5:302018-03-20T14:16:42+5:30
गौरैया के अंग्रेजी नाम स्पैरो का मतलब 'लव' यानी प्यार होता है, लेकिन इस जीव पर हम जरा भी प्यार और दुलार नहीं दिखा पाए।
ओ री चिरईया...नन्ही सी चिड़िया अंगना ने में फिर आ जा रे। इंसानों ने अपनी बेवजह की हरकतें जल्द ही नहीं सुधारी तो वो दिन दूर नहीं जब इस गाने को सुनकर ही दिन बिताना होगा और आसमान में या हमारे घर में एक भी गौरैया नजर नहीं आएंगी। वो दिन दूर नहीं जब बेटी बचाओ के विज्ञापन के साथ बहुत जल्द टीवी पर गौरैया बचाओ का भी विज्ञापन देखने को मिलेगा। आज की भाग-दौड़ वाली जिंदगी में भले ही लोग अपने फोन और लैपटॉप में नजरें गढ़ाए रहते हों लेकिन हम इंसानों ने अपनी कुछ गलत आदतें नहीं बदली तो गोरैया भी बहुत जल्द विलुप्त पक्षियों की श्रेणी में आ जाएगी। इसी को ध्यान में रखते हुए नेचर फॉरएवर सोसाइटी ने इस खास दिन 'गौरैया दिवस' के लिए पहल की, जिसे दुनिया भर के देशों ने बाद में अपनाया है। यूरोप, अफ्रीका, एशिया, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के तमाम देशों में पाये जाने वाले गौरैये को लेकर सबने कुछ-न-कुछ करने का वादा किया है।
मुझे आज भी याद है जब घर की छतों पर मां, दादी और चाची मिलकर गेंहूं पछोरा करती थीं। उनका काम तो खत्म हो जाता था लेकिन हम बच्चों को छत पर ही गेंहू के तक्वारी की सजा मिलती थी। गर्मी की छुट्टियों में जब लाइट चली जाती थी तो वो गौरैया की चूं-चूं ही होती थी जिसे सुनकर हम उसे दोहराने की कोशिश करते थे। मगर बदलते माहौल और मौसम में सभी पल कहीं खो से गए हैं। आज शीशे के ऑफिस ने उन सभी आवाजों को कंही दबा सा दिया है। आज ज्यादातर हर घर में पालतू कुत्ते हैं लेकिन घर की छत पर गौरैया के लिए पानी रखना हम जरूरी नहीं समझते। हमने ही ऐसे हालात बनाए कि गौरैये के लिए साल के सारे के सारे 365 दिन मुश्किल भरे हो गए हैं। विशेषज्ञों की मानें तो गौरैया के गायब होने की वजह है मौसम और पर्यावरण। पशु- पक्षियों की जीवन श्रीन्खला एक दुसरे पर निर्भर करती है अगर इनमें से किसी एक को भी हटा दिया जाए तो ये चेन बिगड़ जाती है।
प्यार बाटती हैं गौरैया
गौरैया के अंग्रेजी नाम स्पैरो का मतलब 'लव' यानी प्यार होता है, लेकिन इस जीव पर हम जरा भी प्यार और दुलार नहीं दिखा पाए। इसी का नतीजा हुआ कि 25 से 30 मील प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ने वाली गौरैया हार गई, और आज अपने वजूद को बनाए रखने की लड़ाई लड़ रही है। विज्ञान कहता है कि एक गौरैया अपने घोंसले और बच्चे को लेकर इतना आक्रामक होती है कि दुश्मन अगर उन्हें नुकसान पहुंचाने की सोचे, तो ये अपनी जान पर खेल जाती है। लेकिन हम इंसानों ने उन्हें लड़ने लायक भी नहीं छोड़ा। न उनके घोंसले के लिए जगह रहने दी। न ऐसे हालत छोड़े कि गौरेया वंश वृद्धि कर पाए।
इंसानों ने पर्यावरण को रहने लायक भी नहीं छोड़ा
हम इंसान ये भूल बैठे कि इन्हीं इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक तरंगों के हाई डोज की वजह से इंसानों को भी लंबे समय में कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। हमारे शरीर में मौजूद सेल्स नष्ट हो सकते हैं। रक्त कोशिकाओं को नुकसान हो सकता है। डायजेस्टिव सिस्टम पर बुरा असर हो सकता है। यहां तक कि हमारे शरीर का कोई अंग काम करना तक बंद कर सकता है। फिर भी इंसान कहां मानने के लिए तैयार होगा कि जिस जहर से हमने गौरैये को नष्ट होने की कगार पर पहुंचाया है, वही हमारे लिए भी धीमा जहर बनकर हमारी जिंदगी में घुलमिल रहे हैं। हमने गौरिया क्या खुद के रहने लायक भी ये पर्यावरण भी नहीं छोड़ा है।
अब संभलें और अपने घर में दें छोटी सी जगह
शहरों में लगातार प्रदूषण बढ़ रहा है जिससे ना सिर्फ इंसानों बल्कि गौरिया और सभी जीव-जंतुओं पर असर पड़ रहा है। वन विभाग के मुताबिक गौरैया को बचाने के साथ उनकी संख्या बढ़ाना भी बहुत जरूरी है। इसलिए समय-समय पर उन्हें शांति में प्रजनन के लिए भी जगह देना जरूरी है। लोग चाहें तो अपने घर की बालकनी या आंगन में इन गौरैयों के लिए छोटे-छोटे घर बना सकते हैं, झुलसती गर्मी में अपनी घर की छतों पर इनके लिए पानी रख सकते हैं। अब ना जाने कब वो दिन आएगा जब गौरैया की चचआहट एक बार फिर से मेरे आंगन में सुनने को मिलेंगी, अगर ने अब भी सुध नहीं लिया तो हमारी आने वाली पीढ़ी सिर्फ किताबों और कविताओं में ही गौरैया का जिक्र सुन पाएगी।