शोभना जैन का ब्लॉग: चीनी विदेश मंत्री की यात्रा से बनेगी कुछ बात?
By शोभना जैन | Published: March 25, 2022 02:42 PM2022-03-25T14:42:23+5:302022-03-25T15:14:40+5:30
पाकिस्तान में वांग यी ने कहा, ‘कश्मीर पर, हमने आज फिर से अपने इस्लामिक मित्नों की बातें सुनीं। चीन भी यही उम्मीद साझा करता है।’
चीन के विदेश मंत्नी वांग यी ने अपनी भारत यात्ना की शुरुआत से पहले ही जिस तरह से पाकिस्तान में इस्लामिक सहयोग संगठन ओआईसी की बैठक में कश्मीर को लेकर विवादास्पद टिप्पणी की, उससे पहले से ही तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे भारत-चीन रिश्ते सवालों के घेरे में आ गए. दोनों देशों के 20-20 हजार से अधिक सैनिक बेहद तनावपूर्ण माहौल में आमने-सामने डटे हैं.
हालांकि भारत ने वांग की टिप्पणी पर कड़ी प्रतिक्रिया करते हुए दो-टूक शब्दों में कहा कि उसके आंतरिक मामले में चीन सहित किसी भी देश को टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है. विदेश मंत्नालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि उन्हें समझना चाहिए भारत उनके आंतरिक मामलों पर सार्वजनिक रूप से विचार व्यक्त करने से परहेज करता है.
निश्चय ही भारत चीन सीमा पर तनावपूर्ण स्थिति और यूक्रे न संकट में उलझते विश्व समीकरणों, अमेरिका सहित कुछ ताकतवर नाटो देशों के भारत द्वारा उनका साथ देने पर जोर दिए जाने और चीन के रूस की तरफ झुकाव के चलते जो परिस्थितियां बनी हैं, उनके चलते वांग की भारत यात्ना अहम मानी जा रही है.
गौरतलब है कि चीन की आंख की किरकिरी बने क्वाड समूह की इसी सप्ताह हुई भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की वर्चुअल शिखर बैठक के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारत की भूमिका को कुछ अस्थिर सा बताया.
हालांकि बाइडेन की इस टिप्पणी के कुछ देर बाद ही अमेरिकी प्रवक्ता ने डैमेज कंट्रोल करते हुए भारत को अमेरिका का जरूरी भागीदार बता दिया. यानी कुल मिलाकर अमेरिका चाहता है कि भारत नाटो गठबंधन की लाइन का साथ दे, जबकि भारत तटस्थता या यूं कहें गुट निरपेक्षता की पुरानी नीति पर चल रहा है.
चीन में इस वर्ष पांच देशों की ब्रिक्स शिखर बैठक प्रस्तावित है. चीन चाहता है कि उसकी अध्यक्षता में होने वाली ब्रिक्स शिखर बैठक में भारत हिस्सा ले, और प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी इस बैठक में हिस्सा लेने चीन जाएं. पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत का भी विचार है कि निश्चित तौर पर चीन चाहेगा कि भारत इस शिखर बैठक में हिस्सा ले लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सीमा पर चीन तनाव कम करे और जिन भारतीय हिस्सों में उसने अपनी फौजें तैनात कर रखी हैं, वहां से वह आपसी समझौते के अनुरूप पीछे हटे.
ब्रिक्स में भारत और चीन के अलावा रूस, दक्षिण अफ्रीका व ब्राजील सदस्य देश हैं. रूस भारत का भरोसेमंद सामरिक सहयोगी रहा है और वह उस से 60 प्रतिशत रक्षा सामग्री लेता रहा है. लेकिन इसके बावजूद भारत संतुलन की डिप्लोमेसी की राह लेते हुए फिलहाल अभी तक यूक्रे न संकट में नाटो और रूस के बीच संघर्ष में तटस्थ भूमिका निभाने की कोशिश कर रहा है जबकि चीन एक हद तक रूस के पक्षधर के रूप में सामने आ रहा है.
चीन अंदर ही अंदर इसे अपनी सुविधा से अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बदलने के अवसर के रूप में देख रहा है. बहरहाल, इन तमाम हालात में वांग की भारत यात्ना खासी अहम है. देखना होगा कि क्या चीन की सीमा पर तनाव कम करने की वाकई मंशा है. अगर बात कुछ आगे बढ़ती है तो पीएम मोदी की ब्रिक्स शिखर बैठक में चीन जाने की संभावना बन सकती है.
चीनी विदेश मंत्नी की 2019 के बाद पहली भारत यात्ना होगी. गौरतलब है कि दिनोंदिन भीषण होते जा रहे रूस-यूक्रे न संकट के बीच वांग इन दिनों भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, भूटान और नेपाल की संक्षिप्त यात्ना पर हैं.
पाकिस्तान में हुई इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) की बैठक में चीन के विदेश मंत्नी वांग यी ने कहा, ‘कश्मीर पर, हमने आज फिर से अपने इस्लामिक मित्नों की बातें सुनीं. चीन भी यही उम्मीद साझा करता है.’
बहरहाल, इस तरह की प्रतिकूल टिप्पणी के पीछे की मंशा साफ समझी जा सकती है. चीन जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने पर पाकिस्तान के रुख का समर्थन करता रहा है और संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान के रुख का पक्ष लेता रहा है.
दरअसल यूक्रेन संकट के चलते वैश्विक समीकरण और उलझ गए हैं. रूस भारत का भरोसेमंद साथी है लेकिन फिलहाल रूस के साथ चीन के खड़े होने से नए समीकरण बनेंगे. भारत के लिए यह समीकरण अच्छे नहीं होंगे.
भारत के रूस से अच्छे संबंध हैं और भारत ने अभी तक यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस की सार्वजनिक रूप से आलोचना भी नहीं की है व तटस्थ है. लेकिन अगर रूस पर लगे प्रतिबंधों पर उसे चीन से मदद मिलती है तो भारत के लिए यह असुविधाजनक स्थिति होगी.