क्या है दशहरे का आध्यात्मिक संदेश?
By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Published: October 8, 2019 08:00 AM2019-10-08T08:00:21+5:302019-10-08T08:00:21+5:30
दशहरा या विजयादशमी के त्यौहार में दस शब्द पर ही विशेष बल दिया गया है. प्राय: पौराणिक कथाओं को पढ़कर लोग यह समझते हैं कि रावण दस सिरों वाला था और उसके हारने के कारण इस त्यौहार का नाम दशहरा रखा गया है.
हमारे देश में जितने भी त्यौहार मनाए जाते हैं, उन सबके पीछे गहरा आध्यात्मिक संदेश होता है, जो हमारे जीवन को सशक्त बनाने में बहुत मदद करता है. दुर्भाग्य से आज हम वे संदेश भूलकर केवल बाहरी रस्मो-रिवाजों तक ही सीमित रह गए हैं.
दशहरा या विजयादशमी के त्यौहार में दस शब्द पर ही विशेष बल दिया गया है. प्राय: पौराणिक कथाओं को पढ़कर लोग यह समझते हैं कि रावण दस सिरों वाला था और उसके हारने के कारण इस त्यौहार का नाम दशहरा रखा गया है. प्रश्न यह उठता है कि रावण के दस सिर दिखाने के पीछे रहस्य क्या है? इसके लिए पहले रावण शब्द के अर्थ को जानना आवश्यक है. वाल्मीकि ने स्वयं लिखा है - रावणो लोकरावण: अर्थात् लोक को रुलाने वाले को रावण कहते हैं. रावण के दस सिर दिखाए जाते हैं. विद्वान इतना कि चारों वेद, छह उपनिषद का प्रकांड पंडित. जाति का ब्राrाण, शिवभक्त, ऋषि पुत्र होते हुए भी मूर्खता के प्रतीक गधे का सिर उसके शीश पर लगाया जाता है. इन सबके पीछे कौन-सा आध्यात्मिक रहस्य समाया हुआ है, जानते हैं.
दस सिर अर्थात् दस इंसानों के बराबर दिमागी शक्ति. लेकिन अपना कल्याण नहीं कर सका. जाति का ब्राrाण और कर्म का राक्षस. वह आज के समाज का प्रतीक है. आज समाज में कुल-गोत्र के नाम पर स्पर्धा जबर्दस्त हो रही है. हर एक अपने कुल को ऊंचा और दूसरे को नीचा समझता है. इसके बावजूद कर्म निम्न हैं. क्रोध, लालच, मोह, वासना, शराब, व्यसन का आदी बनकर परिवारों में कलह, क्लेश का वातावरण आज हर जगह बन रहा है.
एक तरफ भगवान का भक्त और दूसरी ओर भगवान से सामना हुआ तो उन्हें न पहचानने के कारण उनको ही मारने को तैयार हो गया. आज धार्मिक स्थलों पर अत्यंत भीड़ होती है, पर परमात्मा द्वारा दिए ज्ञान को धारण करने को कोई तैयार नहीं, जिसमें वे कहते हैं- अपने भीतर के विकारों, असुरों अर्थात् बुरी प्रवृत्तियों को खत्म करके पावन बनो.
जिस तरह रावण की नाभि में तीर मारकर उसे खत्म किया गया था, आज उस पर विचार करना होगा. नाभि अर्थात् विचारधारा (अंदर की) को योग अग्नि का अर्थात् परमशक्ति परमात्मा के योग का तीर मारने की आवश्यकता है. जब उस परमशक्ति से जुड़ते हैं तो अंदर के राक्षस काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार दूर होने लगते हैं. उनका स्थान संतोष, प्रेम, दया, सुख, सेवा लेने लगते हैं. इन्हें प्राप्त करके ही दशहरे की सच्ची खुशी मनाई जा सकती है.