हम जो चलने लगे हैं, चलने लगे हैं ये रास्ते

By Amitabh Shrivastava | Updated: June 7, 2025 11:38 IST2025-06-07T07:14:18+5:302025-06-07T11:38:12+5:30

यहां तक कि समृद्धि महामार्ग के उद्‌घाटन के साथ ही कांग्रेस ने 15 हजार करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार का आरोप जड़ दिया है.

We who have started walking have started walking these paths | हम जो चलने लगे हैं, चलने लगे हैं ये रास्ते

हम जो चलने लगे हैं, चलने लगे हैं ये रास्ते

गुरुवार 5 जून 2025 को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की महत्वाकांक्षी योजना नागपुर से मुंबई तक 701 किलोमीटर के समृद्धि महामार्ग के उद्‌घाटन के साथ पूरी हो गई. यह वर्ष 2014 से आरंभ और अनेक चरणों में पूरी हुई. इसने फडणवीस सरकार में इतना जोश भर दिया है कि वह ऐसी ही दूसरी योजना 802 किलोमीटर के शक्तिपीठ महामार्ग को आरंभ करने जा रही है. वह भी नागपुर से गोवा तक और विदर्भ, मराठवाड़ा के साथ पश्चिम महाराष्ट्र के 12 जिलों के लिए प्रगति पथ कहलाएगा.

राज्य सरकार ने 61 हजार करोड़ रुपए खर्च कर समृद्धि महामार्ग बनाया और 86 हजार करोड़ रुपए खर्च कर शक्तिपीठ मार्ग बनाने जा रही है. यदि महाराष्ट्र के नक्शे पर दोनों रास्तों को  देखा जाए तो उनका आरंभ एक ही स्थान, लेकिन गुजरना राज्यों के दो अलग-अलग छोर से हो रहा है. बताया यही जा रहा है कि दोनों महामार्गों में अंतर कहीं-कहीं कम होगा, जिससे भीतरी रास्तों से एक से दूसरे पर पहुंचा जा सकेगा. किंतु महाराष्ट्र में सबसे बड़ा संकट अंदरूनी सड़कों का है, जो अच्छी नहीं हैं.

अनेक स्थानों पर जिलों, तहसीलों और गांवों तक पहुंचने वाली सड़कों का हाल दयनीय है. राज्य सरकार एक बड़े कदम में अपने महामार्गों का निर्माण स्वयं कर रही है, लेकिन उसके ही विभाग सार्वजनिक निर्माण विभाग(पीडब्ल्यूडी), जिला परिषद और ग्राम पंचायतों के अंतर्गत आने वाले रास्तों की सुध किसी को नहीं है. नए महामार्गों से अच्छी ऊपरी ‘पैकिंग’ होने के कारण राज्य का खराब सामान छिपा हुआ है.

कुछ उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र में सड़कों का जाल करीब 323115 किलोमीटर का है. प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्ग करीब 18089 किलोमीटर में फैले हैं, जबकि राज्य के राजमार्ग 32288 किलोमीटर में हैं. जिलों की सड़कें 114758 किलोमीटर और ग्रामीण भागों की सड़कें 157980 किलोमीटर की हैं. ये सभी मार्ग अलग-अलग स्तर पर आने-जाने में सहायक हैं. संभागवार अमरावती में राज्य के कुल रास्तों में से सबसे कम 9.05 प्रतिशत सड़कें हैं, जबकि पुणे में सबसे अधिक 22.23 प्रतिशत मार्ग हैं.

कोंकण और नागपुर संभाग भी निचले पायदानों पर हैं, जबकि पुणे के बाद नासिक और छत्रपति संभाजीनगर का स्थान आता है. जिलावार सबसे अधिक सड़कें अहिल्यानगर जिले में हैं, जबकि सबसे कम मुंबई शहर और उपनगर के अलावा हिंगोली, अकोला, वाशिम में हैं. भौगोलिक दृष्टि से सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 105 किलोमीटर और प्रति लाख जनसंख्या पर 248 किलोमीटर की सड़कें हैं.

आंकड़ों के अनुसार राज्य में राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्य राजमार्गों का देश में सबसे बड़ा जाल है, जो कुल राष्ट्रीय राजमार्गों का 13.26 प्रतिशत और देश के राज्य राजमार्गों का 18.26 प्रतिशत है. इस स्थिति के बावजूद राज्य में आवागमन सुगम नहीं है. कुछ स्थानों पर सड़कों का नाम शेष है, तो कुछ स्थानों पर गड्‌ढों के बीच से रास्ते खोजे जाते हैं.

वर्ष 2014 में फडणवीस सरकार के गठन के बाद विदर्भ और मराठवाड़ा के विकास के दृष्टिकोण से समृद्धि मार्ग की संकल्पना रखी गई थी. अक्सर दोनों ही क्षेत्रों के औद्योगिक विकास में बंदरगाहों से दूरी बाधा मानी जा रही थी. जिसे दूर करने के लिए नागपुर से मुंबई की 18 घंटे की दूरी को आठ से दस घंटे तक करने के लिए सीधे महामार्ग का निर्माण किया गया. किंतु समृद्धि महामार्ग के लाभार्थी दस जिलों की भीतरी सड़कों पर सवाल अपनी जगह बना रहा. मराठवाड़ा और विदर्भ के अनेक जिलों के कई रास्तों की हालत बहुत खराब है.

सड़कें बनती हैं और बरसात तक टिक नहीं पाती हैं. कुछ निर्माण कार्य में ठेके इतने बदल जाते हैं कि अधूरी सड़कों से आस-पास का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है. दुर्घटनाएं लगातार अपनी जगह होती हैं. अहिल्यानगर जिले में राज्य की सबसे अधिक सड़कें हैं, लेकिन जिले के प्रमुख धार्मिक स्थल शनि शिंगणापुर का शिर्डी से जाने का रास्ता ही बहुत खराब है. अनेक वर्षों से छत्रपति संभाजीनगर से अजंता का रास्ता पूरा नहीं हो रहा है.

मराठवाड़ा से विदर्भ को जोड़ने वाले मार्गों की समस्याएं किसी से छिपी नहीं हैं. नांदेड़, परभणी, हिंगोली, जालना जिलों को जोड़ने वाले मार्ग अच्छे हाल में नहीं हैं. बीड़, उस्मानाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ने के कारण जिला मुख्यालय स्तर पर ठीक हैं, लेकिन अंदरूनी रास्तों पर सवाल अपनी जगह हैं. उधर, मुंबई-गोवा मार्ग हमेशा से चर्चा में है.
यदि कागजों पर उपलब्ध आंकड़े देखे जाएं तो वे राज्य की सड़कों का पूरा हिसाब देते हैं, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही कहती है. सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार की हर जगह खुली किताब है. यहां तक कि समृद्धि महामार्ग के उद्‌घाटन के साथ ही कांग्रेस ने 15 हजार करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार का आरोप जड़ दिया है. मराठवाड़ा क्षेत्र में गुजरने वाले समृद्धि महामार्ग की गुणवत्ता भी प्रश्न उठाती है. विश्व धरोहर अजंता के मार्ग की न खत्म होने वाली बाधाएं गड़बड़ियां रेखांकित करती हैं.

बावजूद इसके नए निर्माण से पुराने कारनामों को ढंकने के प्रयास जारी हैं. सड़क निर्माण की गारंटी न सरकार के बस में है और न  ठेकेदार के लिए संभव है. अधिक हंगामा होने पर कार्रवाई के नाम पर दिखावा होता है और ज्यादातर मामले आसानी से दब जाते हैं. आवश्यक यह है कि वर्तमान सरकार आधारभूत ढांचे को मजबूत बनाने की कोशिश में पुराने आधार को न भूले.

उसे लगता होगा कि ‘हम जो चलने लगे हैं, चलने लगे हैं ये रास्ते...’ किंतु जहां रास्ते थमे या बाधा बने हैं, उन पर सोचा जाए. विकास केवल बड़ी सड़कों के जाल से नहीं, बल्कि उनसे जुड़ने वाली सड़कों के साथ होगा. असल तौर पर मंजिल पर पहुंचाने की शुरुआत तो वही करती हैं. वर्ना गुलजार के शब्दों में कहा यही जाएगा कि ‘इन उम्र से लम्बी सड़कों को मंजिल पे पहुंचते देखा नहीं. बस, दौड़ती-फिरती रहती हैं, हमने तो ठहरते देखा नहीं.’

Web Title: We who have started walking have started walking these paths

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