विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: देशद्रोही को सजा होनी चाहिए पर इसके लिए ठोस आधार भी हो

By विश्वनाथ सचदेव | Published: July 17, 2021 04:24 PM2021-07-17T16:24:41+5:302021-07-17T16:25:53+5:30

झारखंड के जंगलों में आदिवासियों-वंचितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले फादर स्टेन ने उनके अधिकारों की रक्षा की लड़ाई लड़ी. उन्हें और उन जैसे व्यक्तियों को ‘अपराधी’ कहकर लांछित करने की हर कोशिश जनतांत्रिक अधिकारों पर हमला है.

Vishwanath Sachdev blog: Stan Swamy death traitor should be punished but only on solid basis | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: देशद्रोही को सजा होनी चाहिए पर इसके लिए ठोस आधार भी हो

विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: देशद्रोही को सजा होनी चाहिए पर इसके लिए ठोस आधार भी हो

‘‘कानूनी प्रक्रिया के अनुसार राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने फादर स्टेन स्वामी को गिरफ्तार किया था. ऐसी सारी कार्रवाई कानून के अनुसार होती है. उन पर लगाए गए आरोपों के कारण ही अदालतों ने उनकी जमानत की अर्जियों को स्वीकार नहीं किया था. 

भारत में कानून का उल्लंघन करने के कारण कार्रवाई होती है, अधिकारों के उचित उपयोग के खिलाफ नहीं. भारत अपने सभी नागरिकों के मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.’’

कुछ इन्हीं शब्दों में हमारे विदेश मंत्रालय ने दुनिया भर के देशों में फादर स्टेन स्वामी की मृत्यु पर प्रकट किए गए रोष के संदर्भ में अपनी सफाई पेश की थी. देश के प्रबुद्ध समाज ने इस प्रतिक्रिया को प्रकट करने की बाध्यता कहते हुए एक रक्षात्मक कार्रवाई माना था. 

सच तो यह है कि अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार किए जाने से लेकर उनकी मृत्यु तक यानी जुलाई 2021 तक फादर स्टेन स्वामी के साथ जो कुछ हुआ, उसे देखते हुए इस तरह की कोई भी सफाई कुछ मायने नहीं रखती. स्वस्थ तो वे तब भी नहीं थे, जब 84 वर्षीय फादर को गिरफ्तार किया गया. 

तब कुछ अन्य बीमारियों के साथ वे पार्किंसन से भी पीड़ित थे, हाथ से गिलास पकड़ कर पानी पीना भी उनके लिए एक यातना थी.  इसके बाद उन्हें कई बार जेल से अस्पताल और अस्पताल से जेल आना-जाना पड़ा और अंतत: न्यायालय के हस्तक्षेप पर ही उन्हें इलाज के लिए निजी अस्पताल में भर्ती होने की अनुमति मिल पायी. पर जमानत तब भी नहीं मिली. जिस दिन स्वास्थ्य-कारणों से जमानत की मांग करने वाली उनकी आखिरी याचिका पर अदालत को निर्णय सुनाना था, उनकी मृत्यु हो गई. 

जब न्यायालय को इसकी सूचना दी गई तो न्यायधीश ने कहा था, ‘‘हम स्तब्ध हैं, हमारे पास शोक प्रकट करने के लिए शब्द नहीं हैं.’’

बहरहाल, फादर स्टेन स्वामी की मृत्यु के बाद देश और दुनिया में बौद्धिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ सत्ता के व्यवहार को लेकर एक बार फिर से संवाद उठने लगे हैं. जनतंत्र में असहमति के अधिकार की रक्षा की बात फिर से होने लगी है. 

फिर से यह पूछा जा रहा है कि जनतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास करने का दावा करने वाली कोई सत्ता नागरिकों के असहमति प्रकट करने के मूल अधिकार पर कुठाराघात कैसे कर सकती है? सिर्फ आरोप लगाकर किसी को भी अपराधी घोषित कर देना न्याय की किस परिभाषा में आता है?  

सवाल यह है कि जनतांत्रिक देश में सत्ता असहमति प्रकट करने के नागरिक के अधिकार को कैसे नकार सकती है? और सवाल यह भी है कि सत्ता या सरकार का विरोध करने वाले को देश का दुश्मन कैसे कहा जा सकता है? इस दृष्टि से देखें तो फादर स्टेन स्वामी के साथ जो कुछ हुआ है, वह उन सबके लिए एक चेतावनी है जो असहमति के अपने जनतांत्रिक अधिकार का उपयोग करने में विश्वास रखते हैं. 

इस चेतावनी को, इसके निहितार्थ को समझना जरूरी है. सत्ता तो अपने अधिकारों के माध्यम से ऐसी ‘चेतावनी’ देना अपना ‘कर्तव्य’ समझती है, सत्ता के समर्थक भी यह मानकर चल रहे हैं कि उन्हें किसी को भी देशद्रोही घोषित करने की आजादी है.

देशद्रोही को सजा होनी ही चाहिए पर किसी को देशद्रोही घोषित करने का कोई ठोस आधार तो हो. हमारे राजनेताओं को तनिक भी हिचक नहीं होती किसी को ‘नक्सल’ अथवा ‘अर्बन नक्सल’ घोषित करने में. अब तो एक और शब्द ‘साहित्यिक नक्सल’  भी काम में लिया जा रहा है. 

शोमा सेन, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज जैसे अनेक लोग हैं जो किसी न किसी प्रकार के नक्सली मान लिए गए हैं. मान लिया गया है कि ऐसे लोग देशद्रोही होते हैं. मैं फिर कहना चाहता हूं कि यदि किसी ने देशद्रोह का अपराध किया है तो उसे माफ नहीं किया जाना चाहिए. किसी को अपराधी घोषित करने का अधिकार अदालत को है और यह अदालत का दायित्व बनता है कि न्याय उचित समय-अवधि में हो. 

कोई तरीका खोजा ही जाना चाहिए कि किसी भी नागरिक को न्याय मिलने में बरसों बरस न लगे.उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश वी.गोपाल गोवड़ा ने फादर स्टेन स्वामी की मृत्यु पर अपनी राय देते हुए कहा है  ‘उनकी (फादर स्टेन स्वामी की) जमानत की अर्जी का विरोध करने वाली एजेंसी की कार्रवाई में बदले का संकेत मिलता है.’ सही कहा है न्यायमूर्ति ने. 

सवाल देश के नागरिकों के मानवीय अधिकारों का है. झारखंड के जंगलों में आदिवासियों-वंचितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले फादर स्टेन ने उनके अधिकारों की रक्षा की लड़ाई लड़ी. उन्हें और उन जैसे व्यक्तियों को ‘अपराधी’ कहकर लांछित करने की हर कोशिश जनतांत्रिक अधिकारों पर हमला है. आवश्यकता ऐसी कोशिशों को विफल बनाने की है. यह न्याय की लड़ाई है, यह लड़ाई लड़ने वाले को खतरों से भी लड़ना होगा.

Web Title: Vishwanath Sachdev blog: Stan Swamy death traitor should be punished but only on solid basis

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