विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल पेश करता राजनपुर गांव
By विश्वनाथ सचदेव | Published: May 13, 2021 08:57 PM2021-05-13T20:57:23+5:302021-05-13T20:57:23+5:30
यह पहली बार नहीं है जब इस इकलौते परिवार का कोई सदस्य गांव का प्रधान बना है. बरसों पहले अजीमुद्दीन के पिता भी गांव के प्रधान चुने गए थे.
उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले में एक छोटा-सा गांव है राजनपुर. कुल 1600 की आबादी वाले इस गांव में सिर्फ एक मुस्लिम परिवार है. बाकी गांव वालों की तरह ही खेती ही इस परिवार का आधार है, और यह परिवार हिंदू-बहुल पूरे गांव को अपना परिवार मानता है. हाल ही में हुए ग्राम-पंचायत के चुनाव में राजनपुर के लोगों ने एक शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया है- गांव ने इस इकलौते मुस्लिम परिवार के मुखिया को अपना मुखिया चुना है. कुल 600 मतदाताओं में से 200 ने हाफिज अजीमुद्दीन के पक्ष में वोट देकर कौमी एकता की एक ऐसी मिसाल पेश की है जो बाकियों के लिए भी प्रेरणा बन सकती है.
अजीमुद्दीन इस जीत को ‘अपनी ईदी’ मानते हैं, जो उनके ग्राम-परिवार ने उन्हें दी है. छह उम्मीदवार और थे मैदान में. सब हिंदू. पर गांव ने एक मुसलमान को अपना मुखिया चुना. ज्ञातव्य है कि गांव के कई हिंदू परिवारों ने अजीमुद्दीन के लिए व्रत भी रखा था.वैसे एक पंथ-निरपेक्ष देश में यह एक सामान्य बात होनी चाहिए. इसका एक उदाहरण के रूप में सामने रखा जाना कुल मिलाकर उस वातावरण पर एक सार्थक टिप्पणी है, जो हमारे देश की राजनीति ने बना दिया है.
भले ही हमारा संविधान समता और बंधुता की दुहाई देता हो, पर राजनीतिक स्वार्थों के चलते धर्म और जाति आज भी हमारी राजनीति के हथियार बने हुए हैं. वैसे, भगवान राम की नगरी अयोध्या में पहले भी चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवार जीते हैं, पर पिछले एक अर्से में धर्म के आधार पर समाज के बंटवारे के ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जो देश को शर्मसार करने वाले हैं.
पर सवाल इन उदाहरणों का नहीं है, सवाल उस राजनीतिक माहौल का है जो पिछले एक अरसे से देश-समाज में गहराता जा रहा है. धार्मिक आधार पर हुए देश के बंटवारे के बावजूद हमारे संविधान-निर्माताओं ने किसी भी धर्म को राजधर्म स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. यह उनके विवेक का ही परिणाम है कि हमने एक ऐसे देश की परिकल्पना को साकार किया जहां धर्म के आधार पर किसी के साथ भेद-भाव स्वीकार्य नहीं है. हमने सर्व धर्म समभाव के दर्शन को स्वीकारा.
हमारा संविधान इस बात की गारंटी देता है कि यहां हर नागरिक को अपने धार्मिक विश्वास के साथ जीने की आजादी है. लेकिन धर्म को हथियार बनाने की प्रवृत्ति चुनावों के समय अक्सर अपना सिर उठा लेती है. हाल ही में हुए बंगाल के चुनाव में धर्म के आधार पर वोटों का बंटवारा किसी से छिपा नहीं है. मुख्य मुकाबला भाजपा और तृणमूल कांग्रेस में था- और दोनों एक-दूसरे पर धर्म के आधार पर वोट जुटाने का आरोप लगा रहे थे.
राजनीतिक स्वार्थों के लिए जिस तरह समाज को धर्म के आधार पर बांटा जा रहा है, वह किसी भी दृष्टि से देश के हित में नहीं है. हमारा भारत महान है तो इसलिए नहीं कि यहां किसी धर्म-विशेष का बोल-बाला है. भारत की महानता इसमें है कि यहां हर धर्म के व्यक्ति को अपने विश्वासों के आधार पर जीने का अधिकार है. बहुधर्मिता हमारी कमजोरी नहीं, हमारी ताकत है.
अयोध्या जिले के राजनपुर गांव के मुट्ठी भर लोगों ने धर्म के नाम पर समाज के बंटवारे को अस्वीकार करते हुए सारे देश को एक चुनौती दी है- यह चुनौती धार्मिक आधार पर बंटवारे को अंगूठा दिखाने की है. उस पूरे गांव में सिर्फ एक मुस्लिम परिवार होने के बावजूद हाफिज अजीमुद्दीन का प्रधान चुना जाना सांप्रदायिकता की राजनीति करने वालों के गाल पर एक तमाचा है. अजीमुद्दीन के घर ईद पर सेवइयां बनती है, और होली पर गुजिया भी. यह परंपरा बनी रहे, फले-फूले, इसी में देश का भला है.
आवश्यकता धार्मिक सद्भाव के मर्म को समझने की है. इस देश के नागरिक किसी भी धर्म को मानने वाले हो सकते हैं, पर इस बात को कभी नहीं भुलाया जाना चाहिए कि मूलत: हम सब भारतीय है. मैं कहना चाहूंगा कि मूलत: हम इंसान हैं. राजनपुर ने इस इंसानियत का एक उदाहरण प्रस्तुत किया है. हर धर्म हमें इंसान बनने की शिक्षा देता है. सवाल उठता है, हम इस शिक्षा की बात को अनसुना करके सांप्रदायिकता की आंच पर अपनी रोटियां सेंकने वालों की बात क्यों सुनें? हम उन्हें क्यों न कहें कि उनकी चालों में नहीं आएंगे हम? आइए, राजनपुर से कुछ सीखें. उम्मीद करें कि हमारे नेता भी कुछ सीखेंगे.