विजय दर्डा का ब्लॉग: गरीबी अभिशाप नहीं, पुरुषार्थ से मिलती है अमीरी
By विजय दर्डा | Published: November 22, 2020 06:09 PM2020-11-22T18:09:34+5:302020-11-22T18:24:05+5:30
गरीबी अभिशाप बिल्कुल नहीं है. अपने कर्म और पुरुषार्थ से गरीबी को अमीरी में बदला जा सकता है. मैं ऐसे सैकड़ों प्रशासनिक अधिकारियों को जानता हूं जिन्होंने गरीब कुल में जन्म लिया लेकिन आज बड़े पदों पर बैठे हैं.
मुकेश अंबानी की दूरदृष्टि की मैं एक कहानी आपको सुनाता हूं. गुजरात के जामनगर में रिलायंस समूह की विशाल पेट्रोलियम रिफाइनरी है. उसके आसपास एक बड़ा भूभाग बंजर पड़ा था. मुकेश अंबानी को लगा कि इस भूमि पर यदि पेड़-पौधे लगा दिए जाएं तो रिफाइनरी के प्रदूषण को सोखा जा सकता है.
बहुत सोच-विचार कर जब उन्होंने करीब 600 एकड़ अनुपजाऊ जमीन पर आम का बगीचा लगाने का निर्णय लिया तो लोग उनसे असहमत थे.
जामनगर की मिट्टी और वहां की नमी में खारापन है और हवाएं भी बहुत तेज चलती हैं. ऐसे में क्या आम का बगीचा लगाना सही रहेगा? सबके मन में यही सवाल था लेकिन मुकेश अंबानी ने तय कर लिया था कि बगीचा आम का ही लगेगा. यह 1997 की बात है.
Here are the mangoes from Dhirubhai Ambani Lakhi Bagh! Local farmers are invited to learn innovative farming practices at Jamnagar's Green Belt. #GrowthisLife
Posted by Reliance Industries Limited on Friday, 6 May 2016
जामनगर के इस बगीचे का नाम है ‘धीरूभाई अंबानी लखीबाग अमराई’
आज 23 साल बाद मिट्टी के खारेपन पर काबू पाया जा चुका है. हवाओं को संभाल लिया गया है और वहां करीब 200 प्रजातियों के डेढ़ लाख से ज्यादा आम के पेड़ खूब फल रहे हैं. यहां से दुनिया भर में आम एक्सपोर्ट हो रहा है क्योंकि इसकी गुणवत्ता बेजोड़ है. जामनगर के इस बगीचे का नाम है ‘धीरूभाई अंबानी लखीबाग अमराई’.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ‘लखीबाग’ शब्द मुगल बादशाह अकबर द्वारा बिहार के दरभंगा के पास स्थापित आम के बगीचे का नाम था. ये कहानी मैंने आपको इसलिए सुनाई ताकि आप यह समझ सकें कि अमीर बनने के लिए दूरदृष्टि, लगन और अपने काम के प्रति समर्पण कितना जरूरी है.
आखिर धीरूभाई अंबानी ने शून्य से अपना सफर शुरू किया और एक बड़ा साम्राज्य उन्होंने अपने बलबूते खड़ा किया. उसके बाद उनके साम्राज्य को एक बेटे ने बुलंदी दी तो दूसरा जमीन पर आ गिरा. इससे यह बात स्पष्ट होती है कि सौभाग्य से यदि आपको धन का भंडार मिल भी जाए तो जरूरी नहीं कि आप सफलता की सीढ़ियां चढ़ते ही जाएं.
चढ़ने के लिए ताकत लगती है, एकाग्रता लगती है, लेकिन गिरने के लिए बस एक गलती काफी है-
चढ़ने के लिए ताकत लगती है, एकाग्रता लगती है और संतुलन बनाना पड़ता है. गिरने के लिए तो बस एक गलती की जरूरत होती है! आप टाटा-बिड़ला, अंबानी-अडाणी, हिंदुजा, एल.एन. मित्तल, सज्जन जिंदल, सिंहानिया, आनंद महिंद्रा या और किसी को भी देख लीजिए तो महसूस करेंगे कि इनका घराना शून्य से शुरू हुआ था.
नए जमाने का उदाहरण इन्फोसिस है. नारायणमूर्ति ने केवल 10 हजार रुपए की पूंजी से इन्फोसिस की नींव डाली थी. अडाणी ने बिल्कुल नीचे से काम शुरू किया था. आज सफलता की कहानी आपके सामने है. जाहिर सी बात है कि यह सब भाग्य से नहीं होता. इसके लिए कर्म भी चाहिए और दूरदृष्टि भी.
बहुत से लोग धड़ल्ले से आलोचना करते रहते हैं. अंबानी समूह हो या अडाणी समूह या फिर कोई और. लोग यह कहते नहीं चूकते कि उन पर तो हमेशा सरकार की कृपा रही है. मेरी नजर में यह सब बेकार की बातें हैं. केवल आशीर्वाद से कोई कुबेर नहीं बन सकता. उसके लिए क्षमता को विलक्षणता में परिवर्तित करने की जरूरत होती है.
मुकेश अंबानी पर एक पैसे का भी कर्ज नहीं है
इस बात की चर्चा मत कीजिए कि अंबानी कैसे घर में रहते हैं, कौन से विमान में घूम रहे हैं, उनके पास कितनी गाड़ियां और उनके घर में शादी कैसी हुई. चर्चा इस बात की कीजिए कि अंबानी ने लाखों हाथों को काम दिया है. तकनीक की दुनिया में भारत को आगे बढ़ाया है. क्या आपको पता है कि जहां कुछ लोगों ने बैंकों के 15-15 लाख करोड़ रुपए डकार लिए वहीं मुकेश अंबानी पर एक पैसे का भी कर्ज नहीं है.
विचार इस बात पर कीजिए कि मुकेश अंबानी जिस क्षेत्र में भी हाथ डालते हैं वह क्यों फलता-फूलता है? इन सभी उद्योगपतियों का शुक्रगुजार बनिए कि इन्होंने देश को आगे बढ़ाने में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और निभा रहे हैं. जब मैं न्यूयॉर्क में ताज समूह के होटल ‘द पियरे’ पर तिरंगा लहराता देखता हूं तो सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. क्या यह गर्व की बात नहीं है कि टाटा ने लैंड रोवर जैसी बेहतरीन ब्रांड वाली कंपनी को खरीद लिया?
मैं जिन उद्योगपतियों का यहां जिक्र कर रहा हूं उनमें से करीब-करीब सभी से मेरी निकटता है और बड़े करीब से उनकी जीवनशैली को मैं जानता हूं. विनम्रता, सहजता और एकाग्रता उनकी सबसे बड़ी खासियत है. वे एक दिन में अमीर नहीं बन गए हैं. उन्होंने मेहनत से यह मुकाम हासिल किया है. इसलिए गरीबी को मत कोसिए.
अपने कर्म और पुरुषार्थ से गरीबी को अमीरी में बदला जा सकता है
गरीबी अभिशाप बिल्कुल नहीं है. अपने कर्म और पुरुषार्थ से गरीबी को अमीरी में बदला जा सकता है. मैं ऐसे सैकड़ों प्रशासनिक अधिकारियों को जानता हूं जिन्होंने गरीब कुल में जन्म लिया लेकिन आज बड़े पदों पर बैठे हैं. बाबासाहब आंबेडकर भी गरीब थे लेकिन अपनी प्रतिभा की बदौलत आज दुनिया भर में श्रद्धा के साथ याद किए जाते हैं. हमारे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम तो इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं. उनके पिता मछुआरे थे और कलाम बचपन में बीड़ी बेचा करते थे.
वे दुनिया के श्रेष्ठतम वैज्ञानिक बने और देश की सबसे बड़ी कुर्सी को भी सुशोभित किया. लालबहादुर शास्त्री गरीबी से उठकर देश के प्रधानमंत्री बने. कभी अखबार बेचने वाले एम.एस. कन्नमवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने. दुनिया में जेफ बेजोस, बिल गेट्स, एलन मस्क, मार्क जुकरबर्ग जैसे लोग भी अत्यंत गरीबी की हालत से उठकर शिखर पर पहुंचे हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति रहे बिल क्लिंटन या बराक ओबामा बहुत ही सामान्य घरों के लोग थे.
दुनिया में और भी ऐसे कई प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उद्योगपति, महान लेखक और वैज्ञानिक हुए हैं जो पैदाइशी गरीब थे लेकिन उन्होंने अपनी क्षमता से अपनी गरीबी को दूर भगाया और शीर्ष पर पहुंचे. ..तो गरीबी को अभिशाप बिल्कुल मत मानिए, अपने कदम बढ़ाइए, अपनी क्षमता का विकास करिए. सफलता आपकी राह देख रही है. जरूरत समर्पण, अलग सोच और लगन की है. ..तो इंतजार किस बात का?