विजय दर्डा का ब्लॉग: खुशियों का ऐसा रंग चढ़े कि जिंदगी जश्न बन जाए

By विजय दर्डा | Published: March 9, 2020 06:16 AM2020-03-09T06:16:20+5:302020-03-09T06:16:20+5:30

होली मनाने की परंपरा को लेकर कई किस्से हैं लेकिन मुझे लगता है कि इस पर्व की रचना प्यार और मोहब्बत के रंग से समाज को सराबोर कर देने के लिए ही की गई होगी. बहुत पुराना है यह पर्व लेकिन आज भी हम इसे उल्लास से मनाते हैं तो इसका कारण रंगों के प्रति प्यार ही है.

Vijay Darda's Blog: May colour of happiness be such that life becomes a celebration | विजय दर्डा का ब्लॉग: खुशियों का ऐसा रंग चढ़े कि जिंदगी जश्न बन जाए

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

कोरोना के कहर ने हम सबके माथे पर चिंता की लकीरें खींच रखी हैं. इसी चिंता के बीच कल हम सब सबसे प्यारा त्यौहार होली मनाएंगे!  ये रंगों का त्यौहार है. एक दूसरे से मिलने का त्यौहार है. गालों पर गुलाल मलने का त्यौहार है. तो कोरोना के संदर्भ में यह सवाल लाजिमी है कि क्या करें? मुङो लगता है कि हम सभी को बस सतर्क रहने की जरूरत है. और हां, जश्न तो हमारे भीतर से उपजने वाला भाव है. यह जरूरी तो नहीं कि हम जश्न मनाने के लिए रासायनिक रंगों में पुत जाएं या दूसरे को पोत दें? सूखी होली से बेहतर होली और क्या हो सकती है?

और हां, होली ऐसे समय आई है  जब दिल्ली दंगे का दंश हम सबको परेशान किए हुए है. जहर अभी उतरा नहीं है इसलिए जरूरी है कि इस होली का उपयोग हम सब प्यार और मोहब्बत के रंगों से सबको सराबोर कर देने में करें. होली महज रंगों का एक त्यौहार नहीं बल्कि हमारे सामाजिक सद्भाव और भाईचारे तथा गहरी जड़ों वाली संस्कृति का प्रतिनिधि पर्व भी है. यह हमारी सांस्कृतिक विरासत है. यह सामाजिक भेदभाव मिटाने का त्यौहार है. होली ऐसा दिन होता है जब जाति और धर्म की बेड़ियां टूट जाती हैं. नए दौर के कवि संजय वर्मा ‘दृष्टि’ ठीक कहते हैं..

रंगों की कोई जात नहीं होती
भाईचारे के देश में दुश्मनी की बात नहीं होती
ये खेल है प्रेम की होली का
मिलकर रहते इसलिए टकराव की बात नहीं होती.

भारत की पुरानी परंपरा है कि होली के दिन दुश्मन भी गले मिलते हैं और सारे गिले-शिकवे भुलाकर दोस्त बन जाते हैं. तो मतलब यह है कि दोस्ती के रंग को आप जितना गहरा करेंगे वैमनस्य उतना ही नष्ट होता चला जाएगा. होली मनाने की परंपरा को लेकर कई किस्से हैं लेकिन मुझे लगता है कि इस पर्व की रचना प्यार और मोहब्बत के रंग से समाज को सराबोर कर देने के लिए ही की गई होगी. बहुत पुराना है यह पर्व लेकिन आज भी हम इसे उल्लास से मनाते हैं तो इसका कारण रंगों के प्रति प्यार ही है.

आर्यो में भी होली का प्रचलन था. नारद पुराण और भविष्य पुराण की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी होली का जिक्र है. सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी के यात्र संस्मरण में भी होली का जिक्र है. यह होली के रंगों का ही कमाल था कि मुगलकाल में भी यह रंगीन बना रहा. जोधाबाई के साथ अकबर की होली और नूरजहां के साथ जहांगीर के होली खेलने का किस्सा भी इतिहास में दर्ज है. शाहजहां के दौर में होली को ईद-ए-गुलाबी और आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) कहा जाता था. अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को होली पर उनके मंत्री रंग लगाते थे. यहां इतिहास की चर्चा मैं इसलिए कर रहा हूं ताकि हम सब यह जान और समझ सकें कि होली ने भाईचारे की स्थापना में कितना बड़ा योगदान दिया है.

यहां तक कि होली को लेकर मुस्लिम रचनाकारों ने भी खूब रचनाएं लिखी हैं. नजीर अकबराबादी की इस रचना से शायद ही कोई  हिंदुस्तानी वाकिफ नहीं होगा.!

जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
और डफ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की
कुछ घुंघरू ताल छनकते हों तब देख बहारें होली की

नजीर अकबराबादी की यह रचना कोई ढाई सौ साल पुरानी है तो कोई अस्सी साल पहले होली पर लिखी गई नजीर बनारसी की नज्म भी कम नहीं है..

कहीं पड़े न मोहब्बत की मार होली में
अदा से प्रेम करो दिल से प्यार होली में
गले में डाल दो बांहों का हार होली में
उतारो एक बरस का खुमार
होली में
मिलो गले से गले बार बार
होली में

ये गले मिलना दरअसल नफरत को दूर भगाने और समाज में दोस्ती का रंग चढ़ाने का प्रतीक है. तो इस होली पर हम दोस्ती के रंग को इतना पक्का करें, प्यार का गुलाल इतनी दूर तक फैलाएं कि नफरत के बीज को पनपने का कोई अवसर ही न मिले! फिर चढ़ेगा खुशियों का असली रंग और जिंदगी जश्न बन जाएगी! ध्यान रखिए कि इंसानियत के रंग से बेहतर इस सृष्टि में दूसरा और कोई रंग नहीं है.
आप सबको होली की ढेर सारी शुभकामनाएं.
स्वस्थ रहिए, सानंद रहिए.!

Web Title: Vijay Darda's Blog: May colour of happiness be such that life becomes a celebration

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