विजय दर्डा का ब्लॉग: पीएम की सुरक्षा में सेंध एसपीजी की अक्षम्य चूक
By विजय दर्डा | Published: January 10, 2022 08:35 AM2022-01-10T08:35:11+5:302022-01-10T08:36:01+5:30
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पंजाब में सुरक्षा व्यवस्था में हुई अत्यंत गंभीर गलती को राजनीतिक चश्मे से बिल्कुल मत देखिए।
पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा व्यवस्था में चूक से पूरा देश हैरत में है और यह जानना चाहता है कि इस चूक के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? पंजाब पुलिस इस वक्त कठघरे में खड़ी है. सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि एसपीजी यानी स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप और इंटेलिजेंस ब्यूरो क्या कर रहा था? पीएम की सुरक्षा के लिए ये सुरक्षा एजेंसियां ही जिम्मेदार हैं.
पहले इस बात को समझिए कि एसपीजी है क्या और किस तरह से काम करता है. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पीएम और उनके परिवार की अचूक सुरक्षा के लिए ऐसे प्रशिक्षित सैन्य सुरक्षा बल की स्थापना के बारे में सोचा गया जो विश्वस्तरीय हो. जून 1988 में संसद के एक विशेष अधिनियम के तहत स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप की स्थापना हुई. एसपीजी पर प्रधानमंत्री तथा उनके परिवार के सदस्यों की सुरक्षा का जिम्मा है.
एसपीजी में पुलिस और अर्धसैनिक बलों से चयनित अति योग्य जवानों और अधिकारियों को शामिल किया जाता है. इन्हें उसी तरह की ट्रेनिंग से गुजरना होता है जो ट्रेनिंग अमेरिकी राष्ट्रपति की सुरक्षा में तैनात ‘यूनाइटेड स्टेट सीक्रेट सर्विस एजेंट्स’ को दी जाती है. एसपीजी मारक हथियारों और अत्याधुनिक संचार साधनों से लैस रहता है. 1991 में तमिलनाडु के श्रीपेरुंबुदूर में राजीव गांधी की हत्या के बाद सरकार ने नियम में संशोधन कर पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवार के सदस्यों को भी एसपीजी की सुरक्षा मुहैया करवा दी थी.
2019 में एसपीजी कानून में संशोधन हुआ जिसके तहत पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवार के सदस्यों को पद से हटने के पांच वर्ष बाद तक एसपीजी सुरक्षा देने का प्रावधान किया गया. इसके बाद अगस्त 2019 में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और उसी वर्ष नवंबर में कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी, उनके पुत्र राहुल गांधी एवं पुत्री प्रियंका वाड्रा की एसपीजी सुरक्षा हटा ली गई थी. बता दें कि राष्ट्रपति को भी एसपीजी की सुरक्षा नहीं मिलती है.
प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए एसपीजी की अपनी अलग आचार संहिता है जिसे ‘ब्लू बुक’ कहा जाता है. एसपीजी का काम प्रधानमंत्री को न केवल सुरक्षा देना है बल्कि सुरक्षा के हर खतरे को भांपना भी है. खुफिया सूचनाओं का विश्लेषण करके उसके अनुरूप निर्णय लेना है. जब भी प्रधानमंत्री कहीं जाने वाले होते हैं तो उसके पहले एसपीजी न केवल उस स्थान पर सुरक्षा का जायजा लेता है बल्कि यात्र के समय उस स्थान को अपने अधिकार में ले लेता है. प्रधानमंत्री को किस रास्ते से जाना है, यदि उस रास्ते में कोई व्यवधान पैदा होने की आशंका हो तो फिर दूसरा या तीसरा रास्ता क्या होगा, इस बात की भी तैयारी होती है.
एसपीजी के साथ ही इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारी भी हर तरह के विश्लेषण और खुफिया जानकारी जुटाने में शामिल होते हैं. यदि किसी अनहोनी की आशंका हो तो एसपीजी के पास यात्र की अनुमति न देने का विशेष अधिकार भी होता है. मेरे मन में यह सवाल आता है कि देश के प्रधानमंत्री की यात्र में मार्ग अचानक कैसे बदल गया? करीब 122 किलोमीटर की सड़क यात्र की अनुमति देने से पहले एसपीजी और इंटेलिजेंस ब्यूरो ने क्या सुरक्षा को पुख्ता कर लिया था?
कहा जा रहा है कि पंजाब के डीजीपी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि उन्हें प्रधानमंत्री की सड़क यात्र के रास्ते को सैनिटाइज करने के लिए कम से कम एक घंटा चाहिए. सवाल यह है कि एसपीजी ने इंटेलिजेंस ब्यूरो से चर्चा कर क्या यह सुनिश्चित किया था कि पीएम का सड़क मार्ग सुरक्षित है? किसानों ने पहले से ही आंदोलन की घोषणा कर दी थी. इसके बावजूद उनकी सड़क यात्र को सुरक्षित कैसे बता दिया गया. इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी तो एसपीजी की बनती है.
हम एसपीजी की यूएस सीक्रेट सर्विस से तुलना करते जरूर हैं लेकिन क्या उनके जैसी सख्ती का पालन होता है? मुझे संसद सदस्य होने के नाते अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में बिल क्लिंटन और बराक ओबामा की भारत यात्र के दौरान उनकी सुरक्षा व्यवस्था को संसद परिसर में बड़े करीब से देखने एवं अध्ययन करने का मौका मिला है. मैंने ये भी देखा कि उन्होंने दिल्ली को कैसे अपने सुरक्षा कवर में ले लिया था. सीक्रेट सर्विस एजेंट्स ने पूरी संसद को अपनी सुरक्षा में ले लिया था.
अमेरिका से सौ से ज्यादा प्रशिक्षित खोजी कुत्ते राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए विशेष विमान से आए थे. इन कुत्तों को उनके पद के हिसाब से फाइव स्टार होटल में कमरे आवंटित किए गए थे. इनमें किसी कुत्ते को जनरल, कर्नल तो किसी को मेजर का दर्जा मिला हुआ था. अमेरिकी राष्ट्रपति जहां भी जाते हैं, यूएस सीक्रेट सर्विस उनकी सुरक्षा व्यवस्था को पुख्ता करती है.
बराक ओबामा की मुंबई यात्र के दौरान मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर संजीव दयाल ने अमेरिकी सुरक्षा अधिकारियों से कहा था कि ओबामा जिस क्षेत्र में जाएंगे, उसकी सुरक्षा व्यवस्था हम संभालेंगे, इस पर विवाद भी खड़ा हुआ था. लेकिन यूएस सीक्रेट एजेंट्स ने मना कर दिया. रूस के राष्ट्रपति पुतिन हों, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग हों या फिर फ्रांस, ब्रिटेन या अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष, उनके सुरक्षाकर्मी कोई कोताही नहीं बरतते. छाया की तरह साथ रहते हैं.
हम सब जानते हैं कि सुरक्षा व्यवस्था में चूक के कारण हमें एक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तथा एक पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को गंवाना पड़ा था. उस वक्त आईबी का एक वरिष्ठ अधिकारी बार-बार कह रहा था कि राजीवजी को श्रीपेरुंबुदूर की यात्र रद्द कर देनी चाहिए, लेकिन राजीवजी नहीं माने. राजीवजी उस वक्त प्रधानमंत्री नहीं थे. उन्हें एसपीजी की सुरक्षा नहीं मिली थी.
खुफिया ब्यूरो आला सरकारी अफसरों से बार-बार राजीवजी की यात्र रद्द करवाने का अनुरोध कर रहा था क्योंकि उसके पास हमला होने की संभावना की पुख्ता जानकारी थी. दुर्भाग्य से केंद्र सरकार के शीर्ष अफसरों ने लाचारी जताते हुए कहा कि उनके पास पूर्व प्रधानमंत्री को एसपीजी की सुरक्षा देने का अधिकार नहीं है. अंतत: श्रीपेरुंबुदूर में श्रीलंका के लिट्टे छापामारों के आत्मघाती हमले में राजीवजी को देश ने खो दिया.
साथ ही आईबी के उस अधिकारी की भी जान चली गई. देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिहाज से पंजाब एक बेहद संवेदनशील राज्य है और प्रधानमंत्री मोदी जिस फ्लाईओवर पर फंसे हुए थे, पाकिस्तान सीमा की हवाई दूरी वहां से महज 10 किलोमीटर है. पीएम पर हाईटेक आतंकी हमले का खतरा भी हो सकता था. ड्रोन के माध्यम से पाकिस्तान उस इलाके में हथियार और ड्रग्स गिराता रहता है. उस इलाके में टिफिन बम लगातार मिलते रहे हैं.
इसलिए इस पूरे मामले को बगैर किसी राजनीतिक चश्मे के देखना चाहिए. भाजपा नेताओं ने पूरे देश में महामृत्युंजय का जाप करके क्या संदेश देने की कोशिश की है? मेरा मानना है कि महामृत्युंजय जाप के बदले इस बात पर मंथन करना चाहिए कि मोदीजी की सुरक्षा व्यवस्था में आखिर चूक कहां और कैसे हुई? यहां जरूरत तो इस बात की है कि भविष्य में पीएम की सुरक्षा व्यवस्था में कोई चूक न हो.
संदर्भवश याद दिलाना चाहूंगा कि 2017 में गौतम बुद्ध नगर में और 2018 में दो बार प्रधानमंत्री ट्रैफिक में फंस गए थे. सवाल यह है कि ऐसा होता क्यों है? प्रधानमंत्री किसी भी दल के हों, वे पूरे राष्ट्र के मुकुट हैं. उनकी सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता.