विजय दर्डा का ब्लॉग: लोकतंत्र का मंदिर कभी बंद नहीं होना चाहिए

By विजय दर्डा | Published: December 20, 2020 05:41 PM2020-12-20T17:41:37+5:302020-12-20T19:31:32+5:30

देश में जब जिंदगी पटरी पर लौट चुकी है और अमूमन सभी तरह के आयोजन हो रहे हैं तो यह सवाल पूछा जाना वाजिब है कि संसद का शीतकालीन सत्र बुलाने में क्या दिक्कत है? जब संकट गहरा है तो संसद सत्र की जरूरत और बढ़ जाती है.

Vijay Darda blog over parliament winter session: why not Parliament session Due to covid? | विजय दर्डा का ब्लॉग: लोकतंत्र का मंदिर कभी बंद नहीं होना चाहिए

परिस्थितियां कितनी भी गंभीर और असाधारण हों, संसद का कोई भी सत्र स्थगित करना उचित नहीं

इस फरमान ने सबको चौंका दिया है कि इस बार संसद का शीतकालीन सत्र आयोजित नहीं होगा. स्वाभाविक तौर पर विपक्षी पार्टियों ने एक स्वर में इसका विरोध किया है लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि सरकार अपने विचार को बदलने के मूड में है! सरकार ने कह दिया कि दिल्ली में कोरोना की स्थिति ठीक नहीं है इसलिए संसद सत्र नहीं होगा.  इसके बाद यह सवाल खड़ा हुआ है कि जब देश में अमूमन सभी तरह के आयोजन को सरकार ने ही मंजूरी दे रखी है और आयोजन हो भी रहे हैं तो संसद सत्र के आयोजन में आखिर दिक्कत क्या है?

विपक्षी पार्टियों ने तो यहां तक आरोप लगा दिया है कि कोरोना का बहाना लेकर सरकार लोकतंत्र की हत्या करना चाह रही है. मैं इतने  कठोर शब्दों का उपयोग तो नहीं करूंगा लेकिन यह तो सच है कि जब आम आदमी के सवाल संसद में नहीं उठेंगे तो लोकतंत्र आहत तो होगा ही! इसके साथ ही मेरे सामने भी यह सवाल तो है ही कि जब नीट/जेईई और यूपीएससी की परीक्षाएं आयोजित हुईं, कई विश्वविद्यालयों ने परीक्षाएं आयोजित कीं, बिहार विधानसभा के चुनाव हुए और सभाओं में हजारों हजार लोग बिना मास्क के एकत्रित हुए तो क्या कोरोना नहीं था? अभी पश्चिम बंगाल में धड़ल्ले से चुनावी सभाएं हो रही हैं तो क्या वहां कोरोना नहीं है? वहां भी कोरोना है लेकिन आयोजन हो रहे हैं! तो मेरा मानना है कि संसद का शीतकालीन सत्र भी होना चाहिए. आप मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और गुरुद्वारा तो बंद कर सकते हैं लेकिन लोकतंत्र का मंदिर तो कोरोना में भी खुला रहना चाहिए. यहां हिंदुस्तान के मन का मंदिर बसता है. यह दिलों को जोड़ने वाला मंदिर है. लोगों की  भावनाओं और इच्छाओं का प्रतीक है हमारी संसद. यह हमारी एकता, समता, न्याय तथा अभिव्यक्ति का मंदिर है जो कभी बंद नहीं हो सकता. जब देश में आपातकाल लगा था तब लोकसभा भले ही भंग हो गई थी लेकिन राज्यसभा बंद नहीं हुई थी.  

होना चाहिए संसद का शीतकालीन सत्र 

संसद का सत्र बुलाया ही इसलिए जाता है ताकि देश के सामने जो ज्वलंत प्रश्न हों, उनका समाधान तलाशा जाए. इस वक्त देश के सामने कोरोना की चुनौती है और संसद के माध्यम से ठोस आश्वासन लोगों तक पहुंचना चाहिए. पिछले तीन सप्ताह से ज्यादा हो गए, दिल्ली की सीमा पर पंजाब और हरियाणा के साथ-साथ पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किसान भी डटे हुए हैं. आखिर उनकी मांगों पर संसद में विचार तो होना ही चाहिए , ताकि कोई समाधान निकल कर आए. किसानों की समस्याएं दूर करना बहुत जरूरी है.  यदि हम संसद के शीत्र सत्र का आयोजन ही नहीं करेंगे तो उस पर चर्चा कैसे होगी?

इधर महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ रखी है. डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस की आसमान छूती कीमतों ने कोहराम मचा रखा है. स्टील और सीमेंट की बेतहाशा बढ़ती कीमतें इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र को बुरी तरह झकझोर रही हैं. इन विषयों पर चर्चा कहां हो? मैं मानता हूं कि दिक्कत कल भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी लेकिन सरकार के पास बहुमत है, लोगों ने विश्वास जताया है या विपक्ष कमजोर है तो क्या महंगाई पर बात भी न हो? संसद का सत्र ही न बुलाया जाए? संसद ही वह स्थान है जहां विपक्ष अपनी बात रख सकता है. सवाल उठा सकता है और सरकार पर अंकुश भी लगा सकता है. इसलिए संसद का हर सत्र होना अत्यंत जरूरी है.

डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस कीमतों ने छुआ आसमान 

अब जरा सितंबर में लौटते हैं जब संसद का मानसून सत्र हुआ था. याद करिए कि उस वक्त प्रश्नकाल को स्थगित कर दिया गया था. सरकार ने कहा कि संसद निर्धारित घंटे का कामकाज तो पूरा करेगी लेकिन प्रश्नकाल नहीं होगा. भारत के संसदीय इतिहास में वह पहला मौका था जब वाकई प्रश्नकाल नहीं हुआ. सरकार ने तर्क दिया था कि सांसद जो सवाल पूछते हैं उसका जवाब देने में मंत्री के सहयोग के लिए बहुत से अधिकारियों को उपस्थित रहना होता है. कोरोना काल में इतने अधिकारियों का एकत्रित होना ठीक नहीं है! अब जरा सोचिए कि जब सांसदों का सबसे बड़ा हथियार प्रश्नकाल ही यदि उनसे छीन लिया गया तो उनकी उपयोगिता क्या रही?

ऐसे में सरकार की मंशा पर संदेह उठना लाजिमी है. शीत सत्र को लेकर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने तो यहां तक कहा कि सांसदों को संसद में एकत्रित करने में दिक्कत थी तो क्या हमारी तकनीकी क्षमता इतनी नहीं है कि हम सांसदों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जोड़कर शीत्र सत्र आयोजित कर लें? मुङो लगता है कि यदि चाह हो तो राह निकल ही आती है. आखिर इसी महामारी के दौरान पिछले नौ महीनों में सौ से ज्यादा देशों में संसदीय सत्र हुए हैं. यहां तक कि इसी दौरान कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित देश अमेरिका में चुनाव भी हो गए. ऐसे में यदि लोग यह कह रहे हैं कि सरकार किसान आंदोलन से बचने के लिए संसद सत्र नहीं बुला रही है तो स्वाभाविक तौर पर लोगों को यह बात जंच रही है. लोकतंत्र का तकाजा है कि सरकार पारदर्शी रहे. हर सत्र लोकतंत्र का अनुष्ठान होता है. इसमें कोई रुकावट ठीक नहीं है.

Web Title: Vijay Darda blog over parliament winter session: why not Parliament session Due to covid?

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