विजय दर्डा का ब्लॉग: सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर सियासत ठीक नहीं

By विजय दर्डा | Published: June 14, 2021 01:35 PM2021-06-14T13:35:57+5:302021-06-14T13:43:28+5:30

इस प्रोजेक्ट पर होने वाले खर्च को लेकर एक वर्ग सवाल खड़ा कर रहा है कि इस महामारी के दौर में इतनी राशि खर्च करने की जरूरत क्या है जब काम चल ही रहा है. लोग इस प्रोजेक्ट के उद्देश्य और लाभ को लेकर भी सवाल कर रहे हैं.

Vijay Darda blog about Politics is not right on Central Vista project | विजय दर्डा का ब्लॉग: सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर सियासत ठीक नहीं

(फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)

हर बात पर हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गलत साबित करने की चेष्टा करते रहे तो विपक्ष का वजूद कमजोर हो जाएगा. केवल विरोध के लिए विरोध नहीं करते हुए यदि रचनात्मक विरोध करें तभी विपक्ष की आवाज का वजूद रहेगा. आज सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर कुछ लोग विरोध कर रहे हैं लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि सबसे पहले नया संसद भवन बनाने के लिए 2012 में कांग्रेस के शासन के दौरान तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने पहल की थी. अटल बिहारी वाजपेयी समेत दूसरे दलों के नेताओं ने इसका समर्थन किया था.

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के कार्यालय और आवास के साथ ही सभी 51 मंत्रलय एक ही जगह होंगे. सांसदों के कार्यालय होंगे. सभी भवन अंदर ही अंदर एक दूसरे से जुड़े होंगे. इससे भौतिक सुरक्षा की दृष्टि से भी फायदा होगा, लोगों को होने वाली परेशानियां भी दूर होंगी क्योंकि वीआईपी मूवमेंट के समय सामान्य लोगों को परेशानी होती है. इस प्रोजेक्ट पर करीब 20 हजार करोड़ रु. का खर्च आने वाला है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2024 में अपने दूसरे कार्यकाल की समाप्ति के पहले इस प्रोजेक्ट का ज्यादातर महत्वपूर्ण काम पूरा कर लेना चाहते हैं. बचा-खुचा काम बाद में हो जाएगा.

सामान्य तौर पर यह तर्क सही लग सकता है लेकिन आप गहराई से चीजों को समङों तो आपको समझ में आ जाएगा कि प्रशासनिक दृष्टि से भविष्य को ध्यान में रखते हुए सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का पूरा होना कितना जरूरी है. मैं 18 साल तक संसद का हिस्सा रहा हूं इसलिए मैंने जरूरतों को करीब से देखा और समझा है. इनमें से बहुत सी इमारतें जर्जर हैं. वहां बैठ कर काम करना मुश्किल होता है. भारत का विधायिका यानी लेजिस्लेटिव सेक्शन संसद भवन में बैठता है. 

जबकि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और 51 मंत्रलयों के कर्ताधर्ता अलग-अलग जगह बैठते हैं. राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, नॉर्थ एवं साउथ ब्लॉक तथा राष्ट्रीय संग्रहालय भवन 1931 में बना था. उसके बाद जरूरत के अनुसार 1956 से 1968 के बीच निर्माण भवन, शास्त्री भवन, उद्योग भवन, रेल भवन और कृषि भवन का निर्माण किया गया. आज 39 मंत्रलय सेंट्रल विस्टा क्षेत्र के विभिन्न भवनों में हैं जबकि 12 मंत्रलय इससे बाहर के इलाके में किराए पर चल रहे हैं. 

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इनका सालाना किराया करीब 1000 करोड़ रुपए है और पीएमओ तथा दूसरे मंत्रलयों से इनकी दूरी भी बहुत है. जाहिर है कि प्रशासनिक कामकाज में बाधा आती है और क्या किराए पर इतनी ज्यादा राशि खर्च करना उचित है? जरा हिसाब लगाइए कि अभी तक सरकार कितना किराया दे चुकी होगी. मैं जितने समय संसद में रहा उतने समय में ही 20 हजार करोड़ का भुगतान हो गया होगा.

इसके साथ ही एक महत्वपूर्ण बात यह है कि सेंट्रल विस्टा और उसके बाहर के इलाकों में भी जब इमारतें बनी थीं तो आज की तरह डिजिटल का जमाना नहीं था. अब संसद भवन और मंत्रलयों की सुरक्षा के साथ ही डिजिटल फाइलों की सुरक्षा का भी बड़ा सवाल हमेशा बना रहता है. नए संकुल के निर्माण से दोनों तरह की सुरक्षा बेहतर तरीके से सुनिश्चित हो पाएगी. भारत आज दुनिया में उभरती हुई शक्ति है. प्राथमिकताएं बदल रही हैं इसलिए यह बहुत जरूरी है कि पूरी केंद्र सरकार आधुनिक तकनीक से सुसज्जित भवनों के एक संकुल में रहे ताकि मंत्रीगण सहजता से एक-दूसरे तक पहुंच सकें, मिल सकें, बातचीत कर सकें. सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में बन रही इमारतों में स्थित 51 मंत्रलय एक दूसरे के पास रहेंगे तो प्रशासनिक दृष्टि से निश्चित ही इसका लाभ मिलेगा.

हमें इस बात का भी खयाल रखना होगा कि हमारी आबादी बढ़ रही है तो निश्चित ही भविष्य में सांसदों की संख्या भी बढ़ानी होगी. इसी बात को ध्यान में रखते हुए संसद भवन कीनई इमारत करीब 65,400 स्क्वायर मीटर में बनेगी जिसमें एक बड़ा संविधान हॉल, सांसदों के लिए एक लाउंज, एक लाइब्रेरी, कई कमेटियों के दफ्तर होंगे. लोकसभा चेंबर में 888 सदस्यों और राज्यसभा में 384 सदस्यों के बैठने की जगह होगी. इसके साथ ही राष्ट्रीय संग्रहालय, राष्ट्रीय अभिलेखागार तथा इंदिरा गांधी कला संग्रहालय के लिए भी अच्छी जगह उपलब्ध होगी और हमारी धरोहर का शानदार तरीके से डिस्प्ले भी हो पाएगा.

जो लोग इस परियोजना के आलोचक हैं, उनका कहना है कि 20 हजार करोड़ की राशि महामारी के दौर में गरीबों पर खर्च की जानी चाहिए. स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च होना चाहिए. लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार गरीबों पर खर्च की जाने वाली या जरूरत की राशि में कटौती करके इस प्रोजेक्ट का काम आगे बढ़ा रही है? बिल्कुल नहीं. सरकार गरीबों के लिए कोई योजना बंद नहीं कर रही है. सारी योजनाएं यथावत हैं. मैं यह मानता हूं कि गरीबों की सहायता निश्चित ही की जानी चाहिए और हर सरकार यह करती भी रही है. मुद्दे की बात है कि हमें भविष्य भी तो देखना है.

आजादी के बाद के इतिहास को देखें तो पंडित जवाहरलाल नेहरू हों, लालबहादुर शास्त्री हों, इंदिरा गांधी हों, राजीव गांधी हों, अटल बिहारी वाजपेयी हों या फिर और कोई भी व्यक्ति सत्ता में रहा हो. सबने भविष्य की योजनाओं पर काम किया इसलिए आज भारत इस मुकाम पर खड़ा है. यदि राजीव गांधी ने तकनीक से समृद्ध भारत का सपना नहीं देखा होता तो क्या आज हम वहां होते जहां हैं? 

वर्तमान की चिंता हमें जरूर करनी चाहिए. समस्याओं का निदान भी करना चाहिए लेकिन सुनहरे भविष्य का सपना भी हमें देखना चाहिए. हमारे प्रधानमंत्री का कार्यालय भी अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और दूसरे विकसित देशों के संसद और राष्ट्रपति भवनों की तरह अत्याधुनिक, सुसज्जित और सुरक्षित होना चाहिए. इसलिए मैं कहना चाहता हूं कि कम से कम सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के मामले में तो कोई सियासत मत कीजिए. सियासत करने के लिए और भी बहुत सारे विषय मौजूद हैं.

Web Title: Vijay Darda blog about Politics is not right on Central Vista project

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