वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: उत्तर प्रदेश में दो बच्चों की राजनीति
By वेद प्रताप वैदिक | Updated: July 13, 2021 09:22 IST2021-07-13T09:20:02+5:302021-07-13T09:22:29+5:30
उत्तर प्रदेश में जनसंख्या को नियंत्रित करने वाला प्रस्तावित विधेयक अगर सचमुच मुस्लिम-विरोधी होता तो वह सिर्फ मुसलमानों पर ही लागू होता लेकिन इस विधेयक में ऐसा कुछ नहीं है. यह सबके लिए समान है.

उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण के प्रस्तावित विधेयक पर राजनीति
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए जो विधेयक प्रस्तावित किया है, उसकी आलोचना विपक्षी दल इस आधार पर कर रहे हैं कि यह मुस्लिम-विरोधी है.
यदि वह सचमुच मुस्लिम-विरोधी होता तो वह सिर्फ मुसलमानों पर ही लागू होता यानी जिस मुसलमान के दो से ज्यादा बच्चे होते, उसे तरह-तरह के सरकारी फायदों से वंचित रहना पड़ता, लेकिन इस विधेयक में ऐसा कुछ नहीं है. यह सबके लिए समान है.
क्या हिंदू, क्या मुसलमान, क्या सिख, क्या ईसाई और क्या यहूदी. यह ठीक है कि मुसलमानों में जनसंख्या के बढ़ने का अनुपात ज्यादा है लेकिन उसका मुख्य कारण उनकी गरीबी और अशिक्षा है.
हिंदुओं में भी उन्हीं समुदायों में बच्चे ज्यादा होते हैं, जो गरीब हैं, अशिक्षित हैं और मेहनतकश हैं. जो शिक्षित और संपन्न मुसलमान हैं, उनके भी परिवार आजकल प्राय: सीमित ही होते हैं लेकिन भारत में जो लोग सांप्रदायिक राजनीति करते हैं, वे अपने-अपने संप्रदाय का संख्या-बल बढ़ाने के लिए लोगों को उकसाते हैं.
ऐसे लोगों को हतोत्साहित करने के लिए उत्तरप्रदेश का यह कानून बहुत कारगर सिद्ध हो सकता है. इस विधेयक में एक धारा यह भी जोड़ी जानी चाहिए कि इस तरह से उकसानेवालों को सख्त सजा दी जाएगी.
इस विधेयक में फिलहाल जो प्रावधान किए गए हैं, वे ऐसे हैं, जो आम लोगों को छोटा परिवार रखने के लिए प्रोत्साहित करेंगे, जैसे जिसके भी दो बच्चों से ज्यादा होंगे, उसे सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी, उसकी सरकारी सुविधाएं वापस ले ली जाएंगी, उसे स्थानीय चुनावों में उम्मीदवारी नहीं मिलेगी. जिसका सिर्फ एक बच्चा है, उसे कई विशेष सुविधाएं मिलेंगी.
नसबंदी करानेवाले स्त्री-पुरु षों को एक लाख और 80 हजार रु . तक मिलेंगे. ये सभी प्रावधान ऐसे हैं, जिनका फायदा पढ़े-लिखे, शहरी और मध्यम वर्ग के लोग तो जरूर उठाना चाहेंगे लेकिन जिन लोगों की वजह से जनसंख्या बहुत बढ़ रही है, उन लोगों को न तो सरकारी नौकरियों से कुछ मतलब है और न ही चुनावों से.
इस कानून से वे अगर नाराज हो गए तो भाजपा सरकार को मुसलमानों के वोट तो मिलने से रहे, गरीब और अशिक्षित हिंदुओं के वोटों में भी सेंध लग सकती है. दो बच्चों की यह राजनीति मंहगी पड़ सकती है. लेकिन भाजपा यदि इस मुद्दे पर चतुराई से काम करे तो उत्तरप्रदेश में ही नहीं, सारे देश में थोक वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है और लोकसभा में उसकी सीटें काफी ज्यादा बढ़ सकती हैं.
जनसंख्या-नियंत्रण का बेहतर तरीका तो यह है कि शादी की उम्र बढ़ाई जाए, स्त्री शिक्षा बढ़े, परिवार-नियंत्रण के साधन मुफ्त बांटे जाएं, शारीरिक श्रम की कीमत ऊंची हो, जाति और मजहब के वोटों की राजनीति का खात्मा हो