डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: विश्वविद्यालयों को अपनाना होगा नवाचार
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 6, 2020 05:37 AM2020-07-06T05:37:17+5:302020-07-06T05:37:17+5:30
विश्वविद्यालयों में हर कौशल प्रदान कर पाना संभव नहीं है इसलिए विश्विद्यालय के बाहर भी सिखाने की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे छात्र आसानी से सीख सकेंगे।
शिक्षा विद्या और ज्ञान के संप्रेषण की पद्धति है. गुरु द्वारा शिष्य को ज्ञान देने की पद्धति में समय-समय पर बदलाव होता रहा है. आठवीं शताब्दी के प्रारम्भ में आदि शंकराचार्य के पद्मपाद, हस्तामलक, त्रोटकाचार्य और सुरेश्वर नामक चार शिष्य थे. गुरु की तरह ही ये शिष्य भी प्रकांड विद्वान थे.
वैदिक काल से चली आ रही गुरुशिष्य परंपरा का पालन करते हुए उन्होंने अद्वैत वेदांत के तत्वज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए भारतवर्ष की चारों दिशाओं में चार मठ स्थापित किए, जो आज तक आध्यात्मिक हिंदू परंपरा के आधारस्तंभ बने हुए हैं.
महाभारत बहुत पहले, 3067 ईसापूर्व में हुआ था और उसने शिक्षण पद्धति को बदलने में बड़ी भूमिका निभाई. निषादपुत्र एकलव्य को जब गुरु द्रोणाचार्य ने उस समय के सामाजिक दबावों के चलते शिष्य के रूप में स्वीकार करने से इंकार कर दिया तब वह आज की डिस्टेंस या ऑनलाइन लर्निग की तरह धनुर्विद्या सीखते हुए इसमें पारंगत हुआ.
कोविड-19 के इस दौर में क्या हमें आधुनिक शिक्षण पद्धति में ऐसा ही आमूलचूल बदलाव देखने को मिलेगा?
विश्वविद्यालय शिक्षकों और विद्वानों का समुदाय होते हैं. वहां ज्ञान की उपासना की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए. समयानुसार शिक्षण पद्धति में बदलाव होने पर भी किसी विश्वविद्यालय के मूल सिद्धांत कायम रहने चाहिए.
उद्योग जगत की यह पुरानी शिकायत है कि विश्वविद्यालयों में रोजगार उन्मुख शिक्षा प्रदान नहीं की जाती. समग्र शिक्षा के बजाय विश्वविद्यालय शोध कार्यो पर जरूरत से ज्यादा जोर देते हैं. जटिल समस्या को हल करने की क्षमता, तीक्ष्ण विचारशक्ति, सृजनात्मकता, मनुष्यबल प्रबंधन, भावनात्मक बुद्धिमत्ता, अचूक निर्णय लेने की क्षमता आदि नए युग के कौशल हैं जो वर्तमान समय में आवश्यक हैं.
विश्वविद्यालयों के दायरे में हर कौशल प्रदान किया जाना संभव नहीं है, इसलिए विश्विद्यालय परिसर के बाहर भी सिखाने की व्यवस्था होनी चाहिए. इसके लिए छात्रों को गुणवत्तापूर्ण ऑनलाइन व ऑफलाइन साधन सहज ही उपलब्ध होने चाहिए.
भविष्य के विश्वविद्यालयों को उद्योगों के साथ निकट सहयोग रखना चाहिए ताकि छात्र वास्तविक समस्याओं को हल करना सीख सकें. विद्यार्थियों को दूसरों के साथ चर्चा करने और पढ़ाई के अलावा व्यक्तिगत अन्वेषण के लिए भी समय दिया जाना चाहिए. तभी वे किताबी ज्ञान के साथ व्यावहारिक ज्ञान भी हासिल कर सकेंगे.