ब्लॉग: शराबबंदी वाले राज्य गुजरात पर इस बार जहरीली शराब का कहर, आखिर क्या है इस समस्या से निपटने का रास्ता?

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: July 27, 2022 03:22 PM2022-07-27T15:22:34+5:302022-07-27T15:23:36+5:30

शराब पीना एक व्यसन है. व्यसन को केवल कानून बनाकर रोका नहीं जा सकता. इसके लिए जागरूकता पैदा करना सबसे अहम है.

This time the havoc of poisonous liquor on the state of liquor prohibition, what is the way to deal with this problem? | ब्लॉग: शराबबंदी वाले राज्य गुजरात पर इस बार जहरीली शराब का कहर, आखिर क्या है इस समस्या से निपटने का रास्ता?

गुजरात में शराब का कहर (प्रतीकात्मक तस्वीर)

गुजरात में जहरीली शराब कहर ढा रही है. गुजरात अकेला ऐसा राज्य नहीं है जहां अवैध रूप से शराब बनती और बिकती हो, देश के अमूमन हर राज्य में शराब माफिया सक्रिय है तथा आर्थिक राजनीतिक रूप से बेहद ताकतवर है. सत्ता के गलियारों में भी उसकी गहरी पैठ है और प्रशासन के भ्रष्ट तत्व उसके इशारों पर मौत का तांडव देखते रहते हैं. 

गुजरात में शराबबंदी कानून लागू है. इसके बावजूद अवैध शराब से लोगों की मौत यहां बड़ी संख्या में होती है. गुजरात के बोटाद जिले में सोमवार की शाम को अवैध शराब से लोगों के बीमार पड़ने तथा प्राण गंवाने की खबरें सामने आने लगीं. जब प्रशासन हरकत में आया तो जहरीली शराब की चपेट में आने वाले लोगों की तादाद देखकर चौंक गया. 

हालत यह है कि सोमवार की शाम से लेकर मंगलवार को पूरे दिन भावनगर, बोटाद तथा भावनगर के सरकारी अस्पतालों में जहरीली शराब पीने वालों को भर्ती करने का सिलसिला जारी रहा. मृतकों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है. ये पंक्तियां लिखे जाने तक लगभग तीन दर्जन लोग जान गंवा चुके थे और शाम तक 85 लोग अस्पतालों में भर्ती किए जा चुके थे. 

मृतकों और पीड़ितों की संख्या में निश्चित रूप से वृद्धि होगी क्योंकि बोटाद जिले के कई छोटे गांवों में भी लोग शराब का सेवन कर बीमार पड़े हैं तथा उन तक प्रशासन पहुंचा नहीं है. लोग खुद ही अपने बीमार परिजनों को लेकर अस्पताल पहुंच रहे हैं. हमारे देश में शराब को लेकर अजीब विरोधाभास देखने को मिलता है. 

सरकार शराब के सेवन के प्रति आगाह करती रहती है, दूसरी ओर वह शराब के उत्पादन, विपणन तथा वितरण को पूरी तरह प्रतिबंधित नहीं करती. हाल ही में केंद्र सरकार ने सोडा के नाम पर शराब के छद्म विज्ञापन दिखाने पर रोक लगाने की घोषणा की थी, मगर यह महज कागजी सिद्ध हुई. ये विज्ञापन आज भी धड़ल्ले से दिखाए जा रहे हैं. जब शराब प्राणघातक है, तब उसका उत्पादन ही क्यों बंद नहीं किया जाता? 

केंद्र तथा राज्य सरकारों को शराब से होने वाले राजस्व की ज्यादा चिंता है. कोविड काल में जब धीरे-धीरे प्रतिबंध हटाने का फैसला हुआ, तब सबसे पहले छूट शराब की बिक्री को मिली. शराब के खिलाफ नशाबंदी का प्रयोग आजादी के बाद से ही चालू है, मगर वह कारगर साबित नहीं हो पा रहा है. हरियाणा में 1996 में शराबबंदी लागू की गई थी, मगर अवैध शराब के बढ़ते दुष्प्रभाव के कारण उसे दो साल बाद ही हटा दिया गया. 

महाराष्ट्र में गांधीजी की कर्मभूमि वर्धा जिले में पूर्ण शराबबंदी दशकों से लागू है, मगर वहां खुलेआम शराब बिकती है. तत्कालीन मद्रास स्टेट में 1952 में लागू शराबबंदी कानून को भी हटाना पड़ा था. आंध्रप्रदेश में 1994 में लागू शराबबंदी कानून 1997 में खत्म कर दिया गया. केरल में 2014 में शराबबंदी कानून लागू हुआ, मगर समय के साथ-साथ उसमें काफी ढील दी गई. 1981 में तमिलनाडु में शराबबंदी कानून को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया. 

बिहार में 2016 से पूर्ण शराबबंदी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उसे लागू करने की गंभीरता से कोशिश भी कर रहे हैं, मगर वह अवैध शराब माफिया पर अंकुश नहीं लगा सके हैं. इसी वर्ष बिहार में जहरीली शराब के सेवन तथा उससे मौत के आधा दर्जन से ज्यादा बड़े मामले सामने आए हैं. उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी इस वर्ष जहरीली शराब के मामलों ने चिंता पैदा कर दी. 

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जहरीली शराब से हर वर्ष तमिलनाडु, कर्नाटक, पंजाब, प.बंगाल तथा गुजरात में सबसे ज्यादा मौतें होती हैं. 2005 से लेकर 2015 तक 12 हजार तथा 2016 से लेकर 2021 तक 8 हजार से ज्यादा लोग विषैली शराब पीकर मौत के मुंह में समा चुके हैं. 

शराब पीना एक व्यसन है. व्यसन को कानून बनाकर रोका नहीं जा सकता. इसके लिए सरकारी स्तर पर जागरूकता पैदा करने के साथ-साथ समाज तथा परिवार को भी अपनी भूमिका का निर्वाह करना होगा. शराबबंदी जन भागीदारी के साथ ही सफल हो सकती है. 

Web Title: This time the havoc of poisonous liquor on the state of liquor prohibition, what is the way to deal with this problem?

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