रहीस सिंह का ब्लॉग: भारत-बांग्लादेश संबंधों पर तीसरी नजर

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 11, 2019 12:32 PM2019-10-11T12:32:30+5:302019-10-11T12:32:30+5:30

सामान्यतया बांग्लादेश के भारत से विशेषकर तब संबंध बेहद अच्छे रहे हैं जब वहां शेख हसीना वाजेद या उनकी पार्टी की सरकार रही.

Third look at India-Bangladesh relations | रहीस सिंह का ब्लॉग: भारत-बांग्लादेश संबंधों पर तीसरी नजर

रहीस सिंह का ब्लॉग: भारत-बांग्लादेश संबंधों पर तीसरी नजर

Highlightsयात्र से पहले यह माना जा रहा था कि दोनों देशों के बीच संबंधों को नई ऊर्जा देने के लिए बड़ी घोषणाएं हो सकती हैं,वर्तमान परिदृश्य में उभर रही कुछ विशिष्ट स्थितियों और उनमें छिपे हुए संकेतों व संदेशों को भी समझने की जरूरत होगी

(रहीस सिंह-ब्लॉग) 

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की भारत यात्र संपन्न हुई. इस दौरान दोनों देशों का शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व संबंधों की सुदृढ़ ऐतिहासिकता को नई जीवतंता प्रदान करने की दिशा में आगे बढ़ता दिखा. हालांकि उनकी यात्र से पहले यह माना जा रहा था कि दोनों देशों के बीच संबंधों को नई ऊर्जा देने के लिए बड़ी घोषणाएं हो सकती हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यह भी संभावनाएं थीं कि शेख हसीना वाजेद तीस्ता नदी जल बंटवारे और रोहिंग्या-एनआरसी जैसे मुद्दों पर कोई बात करें या भारत पर दबाव बनाएं, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ.

हां दोनों देशों के नेताओं ने द्विपक्षीय मुलाकात के समय सुरक्षा, व्यापार समेत कई क्षेत्रों को लेकर सात समझौतों पर हस्ताक्षर किए. साथ ही बांग्लादेश से एलपीजी गैस आयात समेत तीन परियोजनाओं की शुरुआत भी हुई जिनका इस्तेमाल पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में किया जाएगा. इसका सामान्य अर्थ तो यही निकलता है कि भारत और बांग्लादेश के बीच के स्थापित संबंध सहजता और सौम्यता की परिधियों को छूकर फॉरवर्ड ट्रैक पर चल चुके हैं. लेकिन क्या कुछ और भी पक्ष भी हैं जो इन सामान्य आकलनों में शामिल नहीं हो पा रहे हैं?

सामान्यतया बांग्लादेश के भारत से विशेषकर तब संबंध बेहद अच्छे रहे हैं जब वहां शेख हसीना वाजेद या उनकी पार्टी की सरकार रही. अभी भी इनमें किसी तरह की गिरावट नहीं दिख रही लेकिन आज की जरूरत है कि हम अपनी विदेश नीति का मूल्यांकन निरपेक्ष होकर नहीं बल्कि सापेक्षिक रूप से करें. ऐसा करते समय हमें चीन को सामने रखना होगा. ध्यान रहे कि चीन बांग्लादेश के साथ ऐसी साङोदारी विकसित कर रहा है जो उसे आर्थिक ही नहीं सामरिक लाभ भी पहुंचा सके. हाल के कुछ वर्षो में दक्षिण एशियाई देशों के लिए चीन ने जिस नीति का विकास किया है, उसकी मुख्य दो विशेषताएं हैं.

पहली- दक्षिण एशिया के देशों में चीनी निवेश में तेज वृद्धि. दूसरी- भारत के पड़ोसी देशों को डेट फाइनेंस (ऋण वित्त) देकर उनकी बुनियादी परियोजनाओं में हिस्सेदारी प्राप्त करना. उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश और चीन के बीच संबंधों में वर्ष 2016 से बड़ा परिवर्तन आया जब वे पारंपरिक साङोदारी से रणनीतिक साङोदारी में बदल गए. इसका परिणाम यह हुआ कि शी जिनपिंग के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के हिस्से के रूप में बीजिंग और ढाका ने 21.5 बिलियन डॉलर की डील कर ली जो पावर और बेसिक इन्फ्रा क्षेत्र को कवर करेगी. लेकिन ब्रिटिश स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की बात मानें तो अब इस प्रोजेक्ट की लागत 38 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुकी है. यही नहीं, बांग्लादेश के एफडीआई में सबसे बड़ा हिस्सा भी चीन का है.

बहरहाल भारत ने लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट, न्यूक्लियर एनर्जी डील, कनेक्टिविटी और सिक्योरिटी के क्षेत्र में ‘नेबर्स फस्र्ट नीति’ को बखूबी निभाया है और अभी तक बांग्लादेश भारत के साथ खड़ा है. लेकिन  वर्तमान परिदृश्य में उभर रही कुछ विशिष्ट स्थितियों और उनमें छिपे हुए संकेतों व संदेशों को भी समझने की जरूरत होगी.

Web Title: Third look at India-Bangladesh relations

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