चुनावों के पहले जनता को राहत देने के नाम पर तोहफों की बारिश करने का सिलसिला जिस तरह बढ़ता जा रहा है, निश्चित रूप से इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। विडंबना यह है कि अगर कोई राजनीतिक दल इसे उचित नहीं भी मानता, तब भी अन्य दलों से पिछड़ने के डर से उसे इस प्रतिस्पर्धा में उतरना पड़ता है।
किसी को भी इस बात की चिंता नहीं होती कि इन चुनावी तोहफों से सरकारी खजाने को जो चूना लगता है, आखिर में तो उसकी मार ईमानदार मतदाताओं पर ही पड़ती है। महाराष्ट्र में भी कृषि पंप कनेक्शन के बिजली कनेक्शन के बिल को माफ करने के बाद विधानसभा चुनाव से पहले राज्य सरकार हर वर्ग को राहत प्रदान करने के प्रयास में जुटी है।
अब स्थायी रूप से काटे गए बिजली कनेक्शन के बकायादारों को ‘अभय’ देने की तैयारी हो रही है। महावितरण के प्रस्ताव के अनुसार योजना 1 सितंबर से 30 नवंबर तक लागू रहेगी और 31 मार्च तक के बकायादारों को इसका लाभ मिलेगा। इसमें 100 फीसदी ब्याज एवं डीपीसी शुल्क माफ होंगे और 30 फीसदी मूल राशि भरने पर ग्राहकों को नया कनेक्शन दे दिया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि अभी डेढ़-दो माह पहले ही मई-जून की गर्मी में विद्युत ग्राहकों को आम दिनों के मुकाबले दोगुने-तिगुने बिजली बिल आए थे, जिस पर महावितरण का तर्क था कि लोगों ने बिजली की खपत ज्यादा की है। असलियत यह है कि महावितरण की विद्युत दर ही एक तय सीमा के बाद दोगुनी और फिर तिगुनी हो जाती है।
सवाल यह है कि बिजली अगर इतनी महंगी है कि एक तय सीमा के बाद उसकी दर दोगुनी, तिगुनी करनी पड़ती है तो जिनका बिजली बिल माफ किया जा रहा है, उसकी भरपाई कहां से की जाएगी?
इसके अलावा बिजली बिल नहीं भरने वालों का बकाया माफ करना क्या बिल नियमित रूप से भरने वाले ईमानदार उपभोक्ताओं के साथ अन्याय नहीं है? जब उन्हें लगेगा कि बिल नहीं भरने पर दंड के बजाय पुरस्कार मिलता है तो क्या वे समय पर बिल भरने के लिए हतोत्साहित नहीं होंगे?
हकीकत यह है कि फ्री में जहां जो भी चीजें बांटी जाती हैं, उसका खामियाजा ईमानदार नागरिकों को ही भुगतना पड़ता है, क्योंकि सरकारी खजाना उन्हीं के टैक्स से भरता है। एक ऐसी व्यवस्था बननी चाहिए कि ईमानदार करदाताओं द्वारा अपनी गाढ़ी कमाई पर भरे गए टैक्स को ‘मुफ्त’ में कोई भी न उड़ाने पाए और सचमुच की जनहितकारी योजनाओं में ही वह खर्च हो।