भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: सौर ऊर्जा पर ही टिका हुआ है भविष्य की जरूरतों का आधार
By भरत झुनझुनवाला | Published: September 22, 2019 06:50 AM2019-09-22T06:50:35+5:302019-09-22T06:50:35+5:30
सौर ऊर्जा में एक समस्या बिजली के ग्रिड की स्थिरता की बताई जाती है. लेकिन हकीकत यह है कि कुछ देशों में 40 प्रतिशत बिजली सौर ऊर्जा से बन रही है. यदि ग्रिड अस्थिर होती तो ऐसा नहीं हो पाता. सौर ऊर्जा में एक समस्या सोलर पैनल से होने वाले प्रदूषण की भी बताई जाती है.
केंद्र सरकार ने नवीकरणीय ऊर्जा अथवा रिन्यूएबल एनर्जी को बढ़ावा दिया है. मुख्य कारण है कि कोयले से कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन होता है जो ग्लोबल वार्मिग का कारण बनता है. तेल का हमें आयात करना पड़ता है और वह भी महंगा पड़ता है. परमाणु ऊर्जा भी हमारे लिए कठिन है क्योंकि रिहायशी इलाकों में इन संयंत्नों को लगाने में खतरा रहता है और हमारे पास इन्हें चलाने के लिए यूरेनियम पर्याप्त मात्ना में उपलब्ध नहीं हैं. इन सभी कारणों को देखते हुए सरकार ने सौर ऊर्जा और जल विद्युत को बढ़ावा देने का निर्णय किया है. इनके वर्तमान दाम में मौलिक अंतर है. आज नए सौर ऊर्जा संयंत्नों से बिजली की उत्पादन लागत 2 से 4 रुपया प्रति यूनिट आती है जबकि जल विद्युत से उत्पादन लागत 7 से 11 रु. प्रति यूनिट आती है. सौर ऊर्जा जल विद्युत की तुलना में बहुत ही सस्ती पड़ती है. लेकिन समस्या है कि इसका उत्पादन सिर्फ दिन के समय होता है जबकि बिजली की अधिक जरूरत सुबह, शाम एवं रात में होती है. देश की विद्युत ग्रिड को स्थिर रखने के लिए जरूरी है कि सुबह, शाम एवं रात को बिजली का उत्पादन जरूरत के अनुसार बढ़ाया जा सके.
जल विद्युत का विशेष लाभ यह है कि जिस समय बिजली की मांग बढ़ती है, उस समय हम एकत्रित पानी को छोड़ कर बिजली का उत्पादन कर सकते हैं. इसलिए सरकार ने सस्ती सौर ऊर्जा के साथ-साथ महंगी जल विद्युत ऊर्जा को भी बढ़ाने का निर्णय लिया है. लेकिन सुबह, शाम एवं रात को बिजली की जरूरत को पूरा करने के लिए दिन में सौर ऊर्जा का संग्रहण करके इसे सुबह एवं शाम के समय उपयोग किया जा सकता है. इसका सुलभ उपाय है कि पंप स्टोरेज परियोजना बनाई जाए. पहाड़ी इलाकों में एक कृत्रिम तालाब नीचे और एक कृत्रिम तालब ऊपर बनाया जा सकता है. दिन के समय जब सौर ऊर्जा उपलब्ध हो तो नीचे के तालाब से पानी को पंप करके ऊपर के तालाब में डाला जा सकता है. सुबह और शाम जब बिजली की जरूरत हो तो ऊपर के तालाब से पानी छोड़ कर बिजली बनाते हुए उस पानी को पुन: नीचे के तालाब में लाया जा सकता है. जैसे हलवाई दूध को ऊपर और नीचे फेंटता है, उसी प्रकार हम पानी को दिन के समय ऊपर ले जाकर और जरूरत के समय नीचे लाकर अपनी बिजली की जरूरत पूरी कर सकते हैं.
सौर ऊर्जा में एक समस्या बिजली के ग्रिड की स्थिरता की बताई जाती है. लेकिन हकीकत यह है कि कुछ देशों में 40 प्रतिशत बिजली सौर ऊर्जा से बन रही है. यदि ग्रिड अस्थिर होती तो ऐसा नहीं हो पाता. सौर ऊर्जा में एक समस्या सोलर पैनल से होने वाले प्रदूषण की भी बताई जाती है. सोलर पैनल के उपयोगी न रह जाने के बाद इसे समाप्त नहीं किया जा सकता. यह बायोडिग्रेडेबल नहीं है. यह प्रकृति में समाता नहीं है. यूरोपीय यूनियन ने इस समस्या के निदान के लिए सोलर पैनल बनाने वालों के लिए अनिवार्य किया है कि वे पुराने सोलर पैनल को खरीदकर इनका पुनरुपयोग करेंगे. इससे सोलर बिजली का दाम वर्तमान में 4 रु. से कुछ बढ़ सकता है, लेकिन यह समस्या हल की जा सकती है.
जल विद्युत के पक्ष में एक तर्क यह है कि हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों द्वारा जल विद्युत भारी मात्ना में उत्पादित की जा रही है जो कि वर्तमान में सस्ती पड़ रही है. यह बात सही है, लेकिन ये संयंत्न आज से 20 से 30 वर्ष पूर्व लगे थे जिस समय इनकी लागत कम थी और उस समय सौर ऊर्जा भी बहुत महंगी थी. उस समय सौर ऊर्जा का दाम 20 रु. प्रति यूनिट था. आज परिस्थिति बदल गई है. हमें आज की परिस्थिति में आगे बढ़ना होगा. अब समय आ गया है कि हम अपनी नवीकरणीय ऊर्जा की जरूरत के लिए सौर ऊर्जा के साथ पंप स्टोरेज परियोजना को बढ़ावा दें.