'बागी' न्यायाधीशों के चौथे दिन ही काम पर लौट आने के मायने?
By रंगनाथ | Published: January 15, 2018 04:48 PM2018-01-15T16:48:49+5:302018-01-16T10:31:15+5:30
सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में सब कुछ सही नहीं चल रहा है।
भारतीय लोकतंत्र के रंगमंच पर शुक्रवार (12 जनवरी) को एक अभूतपूर्व घटना घटी। देश की सर्वोच्च न्यायपीठ के चार वरिष्ठ जज मीडिया से सीधे रूबरू थे। जजों का कहना था कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के अंदर चल रही गड़बड़ियों को सामने लाकर देश का कर्ज चुकाया है। चार जजों के निशाने पर देश के मुख्य न्यायाधीश थे। चार जजों ने देश के मुख्य न्यायाधीश के कामकाज पर गंभीर सवाल उठाते हुए सात पन्नों का एक पत्र मीडिया को दिया। कुछ देर के लिए ऐसा लगा कि न्याय के सिंहासन के इन चार पायों ने न्यायपालिका की चूलें हिला दी हैं। बागी तेवरों के लिए मशहूर एक वकील ने तो यहाँ तक कह दिया कि मुख्य न्यायाधीश में जरा भी आत्मसम्मान बचा है तो वो इस्तीफा दे दें।
शुक्रवार शाम तक देश के कई पूर्व जजों और वकीलों के बयान आ गये। कुछ चार जजों की वाहवाह कर रहे थे। कुछ उन्हें न्यायपालिका की पवित्रता भंग करने के लिए धिक्कार रहे थे। शनिवार (13 जनवरी) को बयानबाजियों का दौर जारी रहा। रविवार (15 जनवरी) को भी ये रहस्य बना रहा कि "आगे क्या होगा!" मीडिया लगातार खबर दिखाता रहा कि ये उनसे मिले, वो उनसे। उन्होंने ये कहा तो इन्होंने वो। क्या जज, क्या वकील, क्या नेता, क्या पत्रकार और क्या सोशल मीडिया यूजर्स। हर किसी के पास संभावित घटनाओं की अपनी-अपनी आशंकाएँ थीं। भविष्यवाणियाँ थीं। सोमवार को जब सुप्रीम कोर्ट काम पर लौटेगा तो क्या होगा इसका बहुतों को इंतजार था।
लेकिन सोमवार को जो हुआ वो अभूतपूर्व के बजाय प्रत्याशित निकला। सोमवार को वही हुआ जो देश में होता आ रहा है। सोमवार को सरकार के वकील ने कह दिया सब ठीक हो चुका है। बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कह दिया सब ठीक हो चुका है। चार में से एक रविवार को ही कह चुके थे कि सब ठीक हो चुका है। मीडिया ने भी कहना शुरू कर दिया कि सब कुछ ठीक हो चुका है। "आत्मा की आवाज" पर देश के सामने आने वाले जज सोमवार को अपने रूटीन काम पर आए। जैसे सब कुछ ठीक हो चुका है।
सोमवार को ही एक अखबार ने आंकड़ों के साथ खबर छाप दी कि चार जजों ने मुख्य न्यायाधीश पर दो-तीन महीनों से जो मनमाने तरीके से जूनियर जजों को संवेदनशील मुकदमे देने का आरोप लगाया है उसमें ज्यादा दम नहीं है। दम क्यों नहीं है? क्योंकि देश की सर्वोच्च अदालत में पिछले कई दशकों से चीफ जस्टिस अपनी मर्जी से संवेदनशील मुकदमों के लिए जजों का चयन सीनियर-जूनियर का ख्याल रखे बिना करते रहे हैं। जाहिर है अगर मर्ज दो-महीने पुराना होता तो गंभीर होता! जब 10-20 साल पुराना है तो फिर भला चिंता की क्या बात है? सुप्रीम कोर्ट का संकट क्या है ये तो जज और वकील जानेंगे। देश की शायद यही सबसे बड़ी त्रासदी है कि "आत्मा की आवाज" पर जागे सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जज चौथे दिन काम पर लौटे आते हैं। चार दिन पहले अभूतपूर्व लगने वाला घटनाक्रम अचानक ही प्रहसन में बदल जाता है।