शरद जोशी का ब्लॉगः कुंवारे प्रोफेसर की मुसीबतें
By शरद जोशी | Published: December 14, 2019 10:00 AM2019-12-14T10:00:43+5:302019-12-14T10:00:43+5:30
पढ़ा-लिखा लड़का ऐसे कुछ प्रश्न पूछता है जिसका प्रोफेसर उत्तर न दे सके. और शैतान लड़के कक्षा की स्थिति कुछ ऐसी कर देते हैं कि जिससे प्रोफेसर खीझ जाए, घबरा जाए, संतुलन खो बैठे, मूर्ख बन जाए- अयोग्य सिद्ध हो जाए और कोमल शक्ल के मन में बना सम्मान उखड़ जाए.
कल तक जो सीढ़ी से चढ़ते-उतरते तालियों, मजाक-मस्तियों के पात्र थे, वे जब एकाएक अपना चेहरा बदल उसी वातावरण में प्रोफेसर बनकर घूमते हैं तो उनकी स्थिति कई घंटों तक मंच पर नाटक करनेवाले पात्रों से कम नहीं होती. गत वर्ष जिन नए लड़कों को उन्होंने ‘फस्र्ट ईयर फूल’ बनाया था, अब उन्हीं की कक्षा में गंभीरता बनाए रखने के प्रोफेसरी प्रयास सब व्यर्थ जाते हैं. एक ओर तो काफी अध्ययन कर पढ़ाकर सम्मान पाने की इच्छा हृदय में उचकती है और दूसरी तरफ उनका कॉलेजिया मन शरारतों की तरफ इशारा करता है. पर मन मारे बेचारे छह किताबें, एक रजिस्टर बगल में दाबे कॉमन रूम से क्लास तक फस्र्ट ईयर की लड़की की तरह आते-जाते रहते हैं.
उन सारे विषयों का जिन्हें वे अपने पढ़ाई काल में टाल गए थे, अब उन्हें मास्टर बनना पड़ता है. नहीं तो लड़कों के सामने उन्हें शर्मिदा होना पड़े. लड़कियों के सामने भी, जो उनकी टेबल के ठीक सामने सजधज कर परीक्षा लेने बैठती हैं. नया प्रोफेसर सबसे अधिक परेशान रहता है, अगर वह कुंवारा हो तो. वह पहली बेंच की ओर देखना चाहता है पर उनके साथ ही उसे उन लड़कों का भी भय है जो उसकी ओर तथा पहली बेंच की ओर देख रहे हैं.
वह प्रोफेसरी नजरों से किसी कोमल शक्ल की तरफ देखता है और एक क्षण के लिए उसकी आंखें साधारण युवक की आंखें बन जाती हैं, और फिर एकाएक उसे वापस खयाल आ जाता है और वह कहता है- यू सी, हीअर देअर आर टू फैक्टर्स, वगैरह. यदि कभी उनकी वह भावना लड़कों ने भांप ली, कभी कुछ वे समझ गए तब फिर उस कुंवारे प्रोफेसर और कुंवारे लड़कों के बीच एक शीत संघर्ष प्रारंभ हो जाता है.
लड़के अपने क्षेत्र में किसी प्रोफेसर को नहीं आने देना चाहते. पर उन्हें भय रहता है कि कहीं उनकी परसेंटेज न गिर जाए, कहीं वे बहुत अधिक नीचे न हो जाएं.
अत: पढ़ा-लिखा लड़का ऐसे कुछ प्रश्न पूछता है जिसका प्रोफेसर उत्तर न दे सके. और शैतान लड़के कक्षा की स्थिति कुछ ऐसी कर देते हैं कि जिससे प्रोफेसर खीझ जाए, घबरा जाए, संतुलन खो बैठे, मूर्ख बन जाए- अयोग्य सिद्ध हो जाए और कोमल शक्ल के मन में बना सम्मान उखड़ जाए. तब बेचारा कुंवारा प्रोफेसर अपनी आंखों में सहानुभूति की प्यास लिए पहली नरम बेंच की ओर देखता है. वहां उसे मुस्कुराहटें दिखती हैं. तब उसे पसीना आ जाता है. लड़की जानती है कि कुंवारा प्रोफेसर कोई बुरा लड़का नहीं है. उसके पैर सुरक्षित भविष्य में हैं. अत: वह बाकायदा मुस्कराती, लजाती है. पर बात करने में प्रोफेसर को पूरा सम्मान देती है.
(रचनाकाल - 1950 का दशक)