ब्लॉग: श्रीनिवास रामानुजन ने दिया गणित को नया अर्थ
By योगेश कुमार गोयल | Published: December 22, 2021 10:39 AM2021-12-22T10:39:31+5:302021-12-22T10:45:38+5:30
गणित में महान गणितज्ञों में से एक श्रीनिवास रामानुजन के अविस्मरणीय योगदान को याद रखने और सम्मान देने के लिए उसी अवसर पर रामानुजन के जन्मदिन पर प्रतिवर्ष 22 दिसंबर को ‘राष्ट्रीय गणित दिवस’ मनाए जाने का निर्णय लिया गया, साथ ही वर्ष 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष घोषित किया गया था.
पिछले कुछ वर्षो से भारत में प्रतिवर्ष 22 दिसंबर को ‘राष्ट्रीय गणित दिवस’ मनाया जाता है, जो महान गणितज्ञों में से एक श्रीनिवास रामानुजन को सम्मान देने के उद्देश्य से उनकी स्मृति में उनके जन्मदिवस पर मनाया जाता है.
रामानुजन के द्वारा की गई खोज ‘रामानुजन थीटा’ तथा ‘रामानुजन प्राइम’ ने इस विषय पर आगे के शोध और विकास के लिए दुनियाभर के शोधकर्ताओं को प्रेरित किया.
26 दिसंबर 2011 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने चेन्नई में आयोजित श्रीनिवास रामानुजन के 125 वें जयंती समारोह में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर देश में योग्य गणितज्ञों की संख्या कम होने पर चिंता जताते हुए कहा था कि श्रीनिवास रामानुजन की असाधारण प्रतिभा ने पिछली सदी के दूसरे दशक में गणित की दुनिया को एक नया आयाम दिया. ऐसे प्रतिभावान तथा गूढ़ ज्ञान वाले पुरुषों और महिलाओं का जन्म कभी-कभार ही होता है.
गणित में रामानुजन के अविस्मरणीय योगदान को याद रखने और सम्मान देने के लिए उसी अवसर पर रामानुजन के जन्मदिन पर प्रतिवर्ष 22 दिसंबर को ‘राष्ट्रीय गणित दिवस’ मनाए जाने का निर्णय लिया गया, साथ ही वर्ष 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष घोषित किया गया था.
22 दिसंबर, 1887 को मद्रास से करीब चार सौ किमी दूर तमिलनाडु के ईरोड शहर में जन्मे श्रीनिवास अयंगर रामानुजन का बचपन कठिनाइयों और निर्धनता के दौर में बीता था. तीन वर्ष की आयु तक वे बोलना भी नहीं सीख पाए थे और तब परिवार के लोगों को चिंता होने लगी थी कि कहीं वह गूंगे न हों. कौन जानता था कि यही बालक गणित के क्षेत्र में इतना महान कार्य करेगा कि सदियों तक दुनिया उन्हें आदर-सम्मान के साथ याद रखेगी.
उनका बचपन इतने अभावों में बीता कि वे स्कूल में किताबें अक्सर अपने मित्नों से मांगकर पढ़ा करते थे. उन्हें गणित में इतनी दिलचस्पी थी कि 11वीं कक्षा की परीक्षा में वे गणित के अलावा दूसरे सभी विषयों में अनुत्तीर्ण हो गए और इस कारण उन्हें मिलने वाली छात्रवृत्ति बंद हो गई. परिवार की आर्थिक हालत पहले ही ठीक नहीं थी.
आखिरकार परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्होंने गणितज्ञ रामास्वामी अय्यर के सहयोग से मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी करनी शुरू की. नौकरी के दौरान भी वे समय मिलते ही खाली पन्नों पर गणित के प्रश्नों को हल करने लग जाया करते थे. गणित के क्षेत्न में सफलता उन्हें उसी दौर में मिली.
1913 में उन्होंने गणित के प्रति अपने ज्ञान एवं रुचि को आगे बढ़ाने के लिए यूरोपीय गणितज्ञों से संपर्क साधा. एक दिन एक ब्रिटिश की नजर उनके द्वारा हल किए गए गणित के प्रश्नों पर पड़ी तो वह उनकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुआ. उसी अंग्रेज के माध्यम से रामानुजन का संपर्क जाने-माने ब्रिटिश गणितज्ञ और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जी. एच. हार्डी से हुआ. उसी के बाद उनका हार्डी के साथ पत्रों का आदान-प्रदान शुरू हुआ.
हार्डी ने उनकी विलक्षण प्रतिभा को भांपकर 1914 में उन्हें अपनी प्रतिभा को साकार करने के लिए लंदन बुला लिया और उनके लिए कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में व्यवस्था की, जिसके बाद उनकी ख्याति दुनियाभर में फैल गई. जी. एस. हार्डी ने रामानुजन को यूलर, आर्कमिडीज, आईजैक न्यूटन जैसे दिग्गजों के समकक्ष रखा था.
1917 में उन्हें ‘लंदन मैथमेटिकल सोसायटी’ का सदस्य चुना गया और अगले ही वर्ष 1918 में इंग्लैंड की प्रतिष्ठित संस्था ‘रॉयल सोसायटी’ ने उन्हें अपना फैलो बनाकर सम्मान दिया. वह उपलब्धि हासिल करने वाले रामानुजन सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे.
रामानुजन ने करीब पांच साल कैंब्रिज में बिताए और उस दौरान गणित से संबंधित कई शोधपत्र लिखे. इंग्लैंड में उन पांच वर्षो के दौरान उन्होंने मुख्यत: संख्या सिद्धांत के क्षेत्न में कार्य किया. प्रोफेसर जी. एच. हार्डी के साथ मिलकर रामानुजन ने कई शोधपत्र प्रकाशित किए और उन्हीं में से एक विशेष शोध के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने रामानुजन को बी.ए. की उपाधि भी प्रदान की.
रामानुजन ने खुद ही गणित सीखा और जीवनभर में गणित के 3884 प्रमेयों (थ्योरम्स) का संकलन किया, जिनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किए जा चुके हैं. गणित पर उनके लिखे लेख उस समय की सर्वोत्तम विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित हुआ करते थे. गणित में की गई उनकी अद्भुत खोजें आज के आधुनिक गणित तथा विज्ञान की आधारशिला बनीं.
लंदन की जलवायु और रहन-सहन की शैली रामानुजन के अनुकूल नहीं थी, जिससे धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य प्रभावित होने लगा. जांच के दौरान पता चला कि उन्हें टीबी की बीमारी हो गई है. उसके बाद वहां के डॉक्टरों की सलाह पर वे भारत लौट आए लेकिन यहां आने पर भी उनके स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ और दिन-ब-दिन उनकी हालत बिगड़ती गई.
अंतत: 26 अप्रैल 1920 को महज 32 वर्ष की अल्पायु में ही इस विलक्षण प्रतिभा ने कुंभकोणम में दुनिया को अलविदा कह दिया.