शशांक द्विवेदी का ब्लॉगः गांधीजी के जीवन-मूल्यों से ही बचेगा समाज 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 30, 2019 08:15 AM2019-01-30T08:15:05+5:302019-01-30T08:15:05+5:30

गांधी का मानना था कि हमारे समाज में सबसे निचले तबके के आदमी को सर्वाधिक महत्व मिलना चाहिए. वे इस पक्ष में थे कि संपन्न और अभिजात वर्ग को उनके लिए त्याग करना चाहिए.

Shashanka Dwivedi's Blog: Society to Survive Gandhi's Life-Values | शशांक द्विवेदी का ब्लॉगः गांधीजी के जीवन-मूल्यों से ही बचेगा समाज 

फाइल फोटो

राष्ट्र आज महात्मा गांधी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दे रहा है. चौक चौराहों पर लगी गांधीजी की प्रतिमाओं पर श्रद्धासुमन अर्पित किए जा रहे हैं, देश गांधीमय हो गया है. पर एक प्रश्न सबके सामने आज भी खड़ा है कि गांधीजी के जीवन-मूल्यों को आज हम कितना बचा पाए हैं? जिस सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए  गांधीजी ने पूरे विश्व को एक नई दिशा दी, आज उन्हीं के विचारों को हमने लगभग भुला दिया है. 

गांधी का मानना था कि हमारे समाज में सबसे निचले तबके के आदमी को सर्वाधिक महत्व मिलना चाहिए. वे इस पक्ष में थे कि संपन्न और अभिजात वर्ग को उनके लिए त्याग करना चाहिए. कृषि को प्राथमिकता मिलनी चाहिए. इस गरीब देश के तमाम लोगों के हित में श्रमसाध्य छोटे-मोटे उद्योग धंधों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. सभी को सादगी का मंत्न अपनाना चाहिए. लेकिन अब इन सब बातों का उल्टा हो रहा है. हाल की सरकारों का ध्यान कृषि से हटकर बड़े उद्योगों की ओर जा चुका है, ताकि संपन्न वर्ग अधिक संपन्न हो सके.

आज हालत यह है कि दुनिया के सबसे अमीर लोगों में यहां के उद्योगपति हैं तो सबसे दरिद्र आदमी भी यहीं पर देखने को मिल रहे हैं. संपन्नता और विपन्नता की निरंतर चौड़ी हो रही खाई इसी देश की खासियत बन चुकी है. वास्तव में आज का आर्थिक मॉडल गांधी के विचारों के विपरीत है. किसानों की हालत बिगड़ती जा रही है और वे आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे हैं.
 
गांधीजी की कल्पना के स्वराज्य का आधार आध्यात्मिक समाज ही हो सकता था और आध्यात्मिक समाज की रचना का माध्यम राज्य द्वारा स्थापित संस्थाएं या कानून नहीं होते अपितु आध्यात्मिक शक्ति से संपन्न व्यक्ति ही हो सकते हैं. इसलिए दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए गांधीजी ने सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह व ब्रह्मचर्य का व्रत पहले अपने जीवन में अपनाया और फिर फीनिक्स व टॉलस्टॉय आश्रमों की स्थापना कर उस जीवन को अन्य आश्रमवासियों में उतारने का प्रयास किया.

जो लोग सोचते हैं कि हिंद स्वराज को शब्द रूप में जन-जन तक पहुंचाकर भारत को पुन: उस समाज के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ा सकेंगे, वे भूल जाते हैं कि भारतीय मानस पर गांधीजी के प्रभाव का कारण हिंद स्वराज नामक पुस्तक नहीं बल्कि गांधीजी का अपना जीवन दर्शन था. इसीलिए उन्होंने अपनी आत्मकथा को मेरे सत्य के प्रयोग जैसा नाम दिया. अब लोग गांधीजी के जीवन-मूल्यों को तिलांजलि देकर उनके सपनों का भारत बनाने का सपना देख रहे हैं.   आज के दौर में जब देश में राजनीति अपनी मर्यादा खोती जा रही है, गांधीजी के विचार और अधिक प्रासंगिक हो गए हैं. आज देश को उनके विचारों की, उनकी नीतियों की बहुत ज्यादा जरूरत है. तभी असली आजादी महसूस कर सकेंगे.

(स्वतंत्र टिप्पणीकार)

Web Title: Shashanka Dwivedi's Blog: Society to Survive Gandhi's Life-Values

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