रमेश ठाकुर का ब्लॉग: मृत्युदंड के भय से थमेगा बच्चों का यौन उत्पीड़न
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 27, 2019 07:21 AM2019-07-27T07:21:46+5:302019-07-27T07:21:46+5:30
बच्चों के खिलाफ अपराधों में विगत कुछ सालों में तेजी आई है जिससे सामाजिक चिंताएं बढ़ी हैं. इसी कारण विधेयक की मांग लंबे समय से हो रही थी. पूर्व संसद सत्रों में इस मसले को लेकर चर्चाएं हुईं, पर मुहिम अंजाम तक नहीं पहुंची.
देर से ही सही, आखिर बच्चों के खिलाफ बढ़ते यौन अपराधों पर अंकुश लगाने के मकसद से संसद में पॉक्सो संशोधन विधेयक पारित हो गया. पूर्व में बने कानून को और धार देने के लिए कानून को मजबूत करना समय की दरकार थी. खैर, चालू संसद सत्र में बाल यौन उत्पीड़न में मृत्युदंड के नए प्रावधान पर राज्यसभा में लगी मुहर ने उम्मीद जगाई है कि शायद इससे बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों में कुछ कमी आएगी.
बाल यौन उत्पीड़न रोकने के उपायों के लिए एक समूह का भी गठन किया गया है. यह सुखद है कि इस अतिगंभीर मसले पर सभी राज्यसभा सदस्यों ने एकजुटता के साथ बच्चों के खिलाफ अपराध के दोषियों को मौत की सजा के प्रावधान पर सहमति दी. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़े बताते हैं कि अन्य आपराधिक श्रेणियों के मुकाबले इस वक्त बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में बेहताशा वृद्धि हुई है. इसी को ध्यान में रखते हुए राज्यसभा में बाल संरक्षण संशोधन विधेयक-2019 पारित किया गया है. इसी सत्र में इस कानून को लोकसभा में भी पारित किया जाएगा.
कानून के अलावा सरकार को उन कारकों पर भी ध्यान देना होगा, जो इस अपराध की मुख्य वजहें हैं. संशोधित नए पॉक्सो विधेयक में मुख्यत: चाइल्ड पोर्नोग्राफी को भी परिभाषित किया गया है जिसे बढ़ते मामलों का मुख्य कारक बताया गया है. केंद्र सरकार ने एक और अच्छी पहल की है. बच्चों के खिलाफ यौन अपराध और बलात्कार के मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए समूचे भारत में 1023 विशेष फास्ट ट्रैक अदालतों का गठन करने की भी मंजूरी दी गई है. ये अदालतें प्रतिदिन सिर्फ बच्चों के खिलाफ अपराध से जुड़े मामलों का ही निपटारा किया करेंगी. मात्र दो माह के भीतर फाइनल रिजल्ट देना होगा. किसी भी मामले को लंबित नहीं किया जाएगा. अच्छी बात यह भी है कि नए प्रावधान और फास्ट ट्रैक अदालतों की निगरानी खुद महिला एवं बाल विकास मंत्रलय करेगा.
बच्चों के खिलाफ अपराधों में विगत कुछ सालों में तेजी आई है जिससे सामाजिक चिंताएं बढ़ी हैं. इसी कारण विधेयक की मांग लंबे समय से हो रही थी. पूर्व संसद सत्रों में इस मसले को लेकर चर्चाएं हुईं, पर मुहिम अंजाम तक नहीं पहुंची. अब जाकर संबंधित कानून में बदलाव किया गया. महिला एवं बाल विकास मंत्रलय के मुताबिक फास्ट ट्रैक कोर्ट फिलहाल 18 राज्यों में स्थापित किया जाएगा, बाद में बाकी राज्यों को भी शामिल किया जाएगा. अभी जिन राज्यों में फास्ट ट्रैक कोर्ट नहीं बनाए जाएंगे, उन राज्यों के बालकों के खिलाफ अपराध से जुड़े मामले की उन राज्यों में सुनवाई होगी जहां फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित हैं. विशेष फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन के लिए कुल 767 करोड़ रु. खर्च किया जाएगा, जिनमें केंद्र सरकार 474 करोड़ रु. देगी, बाकी राज्य सरकारें देंगी.