संतोष देसाई का ब्लॉग: एकजुटता की अटूट भावना

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 4, 2020 02:44 PM2020-04-04T14:44:35+5:302020-04-04T14:44:35+5:30

Santosh Desai's blog: Unwavering sense of solidarity | संतोष देसाई का ब्लॉग: एकजुटता की अटूट भावना

प्रतीकात्मक तस्वीर.

Highlightsसमाज का कोई भी हिस्सा अगर कमजोर रह गया तो खतरा सभी के लिए बना रहेगा. लॉकडाउन की अचानक घोषणा के बाद प्रवासी मजदूरों का पलायन यह बताता है कि सुरक्षात्मक मानी जाने वाली किसी भी कार्रवाई का उनके ऊपर कितना विषम प्रभाव पड़ता है.

संतोष देसाई

पिछले सौ वर्षो में इतने बड़े पैमाने पर कोई भी घटना नहीं हुई है. एक स्तर पर, पूरी मानवता को संकट की इस घड़ी में एकजुट हो जाना चाहिए. कोरोना वायरस का यह खतरा मनुष्यों के बीच किसी भी तरह के विभाजन को नहीं मानता. सभी राष्ट्र समान रूप से जोखिम में हैं, इटली या स्पेन का आज जैसा हाल कल किसी का भी हो सकता है. लेकिन इस महामारी से संघर्ष की प्रतिक्रिया में, पुराने विभाजन तो गहरा ही रहे हैं, नए भी सामने आ रहे हैं.

लॉकडाउन की अचानक घोषणा के बाद प्रवासी मजदूरों का पलायन यह बताता है कि सुरक्षात्मक मानी जाने वाली किसी भी कार्रवाई का उनके ऊपर कितना विषम प्रभाव पड़ता है. जिनके पास एक निश्चित वेतन और गारंटीकृत रोजगार की निश्चिंतता नहीं है, उनके लिए बिना बुनियादी साधनों के लॉकडाउन का विचार कम चिंताजनक नहीं है.

एक अन्य विभाजन स्थानीय बनाम बाहरी का सामने आया है. चाहे वे अंतर्राष्ट्रीय यात्री हों, देश के ही अन्य भागों से आए लोग हों या वापस लौटने वाले स्थानीय लोग ही. संक्रमण के आयात की आशंका से संदेह और शत्रुता की भावना पैदा होती है क्योंकि हम अपने आप को बचाने के कठोरतम प्रयासों में लगे होते हैं. शत्रुता की यह भावना महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान करने वालों को भी अपना शिकार बना रही है जबकि वे लोगों की सहानुभूति और प्रशंसा पाने के अधिकारी हैं. हमने ऐसे कई उदाहरण देखे हैं जहां स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को उनके मकान मालिकों ने घरों से निकाला है, उन्हें उत्पीड़ित किया गया है. ऐसा प्रतीत होता है कि हम अपने अस्पतालों में तो डॉक्टरों को चाहते हैं लेकिन अपने घरों के पास नहीं.

जितना ही हम अपने भीतर सिमटते जाते हैं उतना ही बाहरी दुनिया से किसी भी संभावित खतरे से डरने लगते हैं. इस खतरे को दूर करने का एकमात्र तरीका यह है कि हम बड़े, सामूहिक हित के कार्य करें. समाज का कोई भी हिस्सा अगर कमजोर रह गया तो खतरा सभी के लिए बना रहेगा. हम अलगाव में रहने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन सच्चाइ यह है कि हम पहले से भी कहीं ज्यादा आपस में जुड़ी हुई दुनिया में रहते हैं.

Web Title: Santosh Desai's blog: Unwavering sense of solidarity

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