रंगनाथ सिंह का ब्लॉग: हर हिन्दी लिखने वाले को प्यारे हरिश्चन्द्र की कहानी याद रखनी चाहिए

By रंगनाथ सिंह | Published: September 9, 2022 02:03 PM2022-09-09T14:03:18+5:302022-09-09T14:05:32+5:30

काशी में जन्मे भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (1850-1885) को आधुनिक हिन्दी का उन्नायक कहा जाता है। उनके काल को हिन्दी साहित्य में भारतेन्दु युग कहा जाता है। आज 9 सितम्बर को उनकी जयंती है।

rangnath singh blog on bhartendu harishchandra birth anniversary | रंगनाथ सिंह का ब्लॉग: हर हिन्दी लिखने वाले को प्यारे हरिश्चन्द्र की कहानी याद रखनी चाहिए

भारतेन्दु हरिश्चंद्र की 24 काव्य-कृतियाँ और 11 नाटक प्रकाशित हैं। (फीचर इमेज- हर्ष )

मैं प्रधानमंत्री बना तो एक महापुरुष की जयंती पक्का मनाऊँगा, वो हैं भारतेंदु हरिश्चंद्र....प्रधानमंत्री क्या बनारस का सांसद भी बन गया तो भारतेन्दु को जरूर याद रखूँगा। मेरे ख्याल से आधुनिक हिन्दी लिखने वाले हर व्यक्ति को उनको याद रखना चाहिए। हाल ही में कहीं पढ़ा कि जब अंग्रेज हुक्मरान ने राजा शिवप्रसाद सिंह को सितारेहिन्द (हिन्द का तारा) का खिताब दिया तो हरिश्चंद्र के प्रशंसकों ने उन्हें अपनी तरफ से भारतेंदु (भारत का चंद्रमा) का लकब दिया। 

आधुनिक हिन्दी के विकास में शिवप्रसाद जी का भी अहम योगदान है लेकिन आधुनिक हिन्दी की कौन सी शैली को आगे बढ़ाना चाहिए इसपर उनके और भारतेंदु के बीच मतभेद थे। हिन्दी भारतेन्दु के सुझाए रास्ते पर आगे बढ़ी इसीलिए आधुनिक हिन्दी के इतिहास में उनका अतिरिक्त महत्व बन गया।

भारतेंदु हरिश्चंद्र के विषय पर कुछ भी लिखना-बोलना हो तो उनके द्वारा लिखित नाटक 'सत्य हरिश्चंद्र' का एक संवाद जरूर याद आता है- 'कहैंगे सबै ही नैन नीर भरि भरि पाछे प्यारे हरिचंद की कहानी रहि जायगी' यानी, सब जन नैनों में नीर भर-भरकर कहेंगे,  प्यारे हरिश्चन्द्र के पीछे वो कहानी रह जाएगी।

अफसोस है कि आज हिन्दी में जिनके पास कहानी कहने के सरअंजाम हैं वो या तो विक्टोरिया दरबार की कहानी कहकर सुर्खरू होते हैं या मुगल दरबार की। यदि कोई उनकी सो रही आत्मा को झकझोर कर जगा दे तो विक्टोरिया दरबार और मुगल दरबार तज कर पृथ्वीराज दरबार की कहानी कहने लग जाएँगे लेकिन कहेंगे दरबार की ही कहानी, दरबारी कहीं के। राज-शाही जा चुकी है, लोक-शाही आ चुकी है, यह बात लोकतंत्र सेवी दरबारी किस्सागो को न जाने कब समझ में आएगी!

दरबारी से याद आया कि कल ही ब्रिटेन की रानी एलिजाबेथ द्वितीय का देहांत हुआ। एलिजाबेथ के ब्रिटेन की गद्दी पर बैठने से पहले ही अंग्रेज भारत का विभाजन कर चुके थे। एलिजाबेथ की गद्दी पर ही पहले रानी विक्टोरिया बैठा करती थीं जिनका भारत पर कब्जा था। विक्टोरिया के शासन काल में ही 1857 में हुए विद्रोह को कुचला गया था और महारानी ने अंग्रेज व्यापारियों से भारत की कमान अपने हाथ में ले ली थी। 1857 से 1947 तक भारत रानी की गुलामी में रहा। कालांतर में उन्हीं रानी विक्टोरिया की कुर्सी पर बैठने वाली रानी एलिजाबेथ द्वितीय कल गुजरी हैं। 

हरिश्चन्द्र को 'भारत का चन्द्र' नाम देने वाले के संग नियति ने एक खेल किया और उसका सम्बन्ध भी विक्टोरिया से है। जैसे चाँद में दाग होता है उसी तरह भारेतन्दु ने भी विक्टोरिया के बाल-बच्चों की प्रशंसा में भी कविता लिखी है। वह कविता भी सुन्दर लिखी है लेकिन उसकी सुन्दरता अब वैसे ही कचोटती है जैसे चाँदनी रात में मिलने वाले प्रेमी को पता तले कि वह किसी और को भी डेट कर रही है तो वही चाँदनी उसके बदन में चुभने लगती है। इसलिए, भक्ति तक चलेगा, अन्धभक्ति किसी की नहीं। भारतेन्दु की भी नहीं। बाकी सब ठीक है। 

भारत, भारतेन्दु, सितारेहिन्द, रानी और दरबार की बात निकले और लुटियन दिल्ली की याद न आए, यह मुश्किल है। आजकल लुटियन दिल्ली एक रास्ते का हिन्दी नाम बदलकर उसे हिन्दी में करने को लेकर चर्चे में है। उस रास्ते के नामकरण पर अलग पोस्ट लिखूँगा, अभी वह रास्ता जिस इमारत के सामने पड़ा रहता है, उसकी याद-दहानी करनी है क्योंकि उसके जिक्र के बिना भारत, भारतेन्दु, सितारेहिन्द, हिन्दी, विक्टोरिया, रानी और दरबारी की कहानी अधूरी है।

भूतपूर्व राजपथ उर्फ टटका कर्तव्य पथ के सामने सीना ताने खड़े राष्ट्रपति भवन का नाम पहले वायसराय हाउस हुआ करता था। इतिहास गवाह है कि वायसराय हाउस का नाम बदलकर राष्ट्रपति भवन कर देने से उस इमारत का चरित्र नहीं बदला। नाम बदलना सरल काम है, चरित्र बदलना असल काम है। 

आजाद भारत के संस्थापकों ने होशियारी यह दिखायी कि देश की कमान वायसराय की जगह प्रधानमंत्री को दे दी और भूतपूर्व वायसराय हाउस में रहने वाले राष्ट्रपति की स्थिति ब्रिटेन की रानी की तरह प्रतीकात्मक राष्ट्र-प्रमुख की बन गयी। सही मायनों में हमारे राष्ट्रपति ब्रिटेन की रानी-राजा से ज्यादा अधिकार-सम्पन्न हैं। खैर भूतपूर्व वायसराय हाउस को कहानी में इसलिए खींचकर लाया गया है ताकि आपसे कह सकूँ कि अगर मैं प्रधानमंत्री बना तो उस इमरात को म्यूजियम में बदल दूँगा जिसमें इस बात पर रोशनी डाली जाएगी कि ब्रिटेन ने भारत को कैसे कैसे, किस कस तरह से कब से कब तक लूटा और कैसे इतने बड़े देश को गुलाम बनाए रखा।

डर यह है कि कहीं ऐसा न हो कि आप लोगों की कृपा से मैं प्रधानमंत्री बनूँ उसके पहले ही कोई पीएम मेरा राष्ट्रपति भवन को म्यूजियम बनाने का आइडिया न चुरा ले। खैर, आप लोग यह याद रखें कि गोरी हो या काली, कोई सरकार किसी लेखक को अधिक से अधिक सितारेहिन्द बना सकती है, भारतेन्दु उसे जनता ही बनाती है।  

आज इतना ही। शेष, फिर कभी।

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