ब्लॉग: कभी एक लाख थी संख्या अब हजारों में है गिनती, बाघों के संरक्षण के लिए अभी और गंभीर प्रयासों की जरूरत
By रमेश ठाकुर | Published: July 29, 2021 09:15 AM2021-07-29T09:15:09+5:302021-07-29T09:17:55+5:30
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस हर साल 29 जुलाई को मनाया जाता है। दुनिया में इस समय केवल मात्र साढ़े चार हजार के आसपास ही बाघ बचे हैं। इनमें 70 से 80 फीसदी हिंदुस्तान में ही हैं।
बाघों की संख्या में बढ़ोत्तरी के सरकारी दावों के बावजूद ग्लोबल संस्था ‘वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड’ की रिपोर्ट पर गौर करें तो समूची दुनिया में इस वक्त मात्र साढ़े चार हजार के आसपास ही बाघ शेष बचे हैं. इनमें 70 से 80 फीसदी तो हिंदुस्तान में ही हैं. आंकड़े बताते हैं कि 20वीं सदी की शुरु आत के बाद से वैश्विक स्तर पर नब्बे फीसदी से अधिक बाघों की आबादी कम हुई. एक वक्त था जब 1915 तक इनकी संख्या एक लाख से भी ज्यादा थी.
बाघों के संरक्षण के लिए प्रत्येक वर्ष 29 जुलाई को जागरूकता फैलाने के मकसद से पूरे विश्व में टाइगर दिवस मनाया जाता है. पिछले दो वर्षो से कोरोना का प्रकोप जारी है तो ये दिवस कुछ खास तरीके से नहीं मनाया जा रहा है. लेकिन सवाल है क्या ‘अंतरराष्ट्रीय टाइगर दिवस’ का मकसद पूरा हो पाता है?
हिंदुस्तान के लिहाज से देखें तो दो वर्ष पूर्व बाघों के संबंध में सुखद खबर सरकार की ओर से बताई गई थी. बाघों की संख्या में बढ़ोत्तरी का दावा किया गया था. दावों के अनुसार सन् 2014 की तुलना में 2018 में बाघों की संख्या 2226 से बढ़कर 2967 बताई गई थी. जबकि, 2006 में हिंदुस्तान में बाघों की कुल संख्या 1411 थी, जो 2010 में बढ़कर 1706 हुई गई और फिर 2014 में और बढ़कर 2226 तक पहुंच गई थी. हालांकि इस दरमियान कई बाघों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत भी हुई.
मध्य प्रदेश में 2018 से 2021 के बीच 93 बाघों की मौत हुई है जिसकी जानकारी बाकायदा विधानसभा में वन मंत्नी द्वारा दी गई. मारे गए वह बाघ थे जो जंगलों से निकलकर बाहर आए थे. उन्हें या तो किसानों ने मारा या फिर शिकारियों ने. इस कृत्य के पीछे वन कर्मियों की भूमिका भी कई दफे सामने आई है.
दरअसल बाघ की खाल और उनकी हड्डियों की बाघ तस्कर इंटरनेशनल मार्केट में मुंहमांगी कीमत वसूलते हैं. बाघों की संख्या घटने का एक बड़ा कारण तस्करी है.
साल 2014 में बाघों की आबादी को जांचने के लिए सरकार ने नया तरीका ईजाद किया. कैमरा ट्रैपिंग विधि का इस्तेमाल किया, जिसके जरिए हिंदुस्तान में पहली बार बाघों की सर्वाधिक आबादी होने का दावा किया गया. वृद्धि होने से ‘गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड’ पर भी नाम दर्ज हुआ.
कैमरा ट्रैपिंग तकनीक का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में किया गया जहां बाघों की बहुतायत थी. बाघों के पंजों के निशानों से बाघों की संख्या का आकलन किया गया. बाघों की संख्या बढ़े, इसके लिए प्रयासों की कोई कमी नहीं रही, सरकारों ने संरक्षण के लिए बेतहाशा धन भी खर्च किया. पर सफलता उतनी नहीं मिल पाई, जितनी उम्मीद लगाई गई थी.