राजेंद्र दर्डा का ब्लॉग: महाराष्ट्र में जल संस्कृति के जनक शंकरराव
By राजेंद्र दर्डा | Published: July 14, 2020 08:36 AM2020-07-14T08:36:41+5:302020-07-14T08:36:41+5:30
मराठवाड़ा को निजाम के क्रूर शासन से चंगुल से मुक्त कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानी रामानंद तीर्थ के निर्देश पर शंकरराव चव्हाण उमरखेड कैंप पहुंचे थे. हैदराबाद में वकील का काम छोड़कर वे स्वतंत्रता संग्राम में कूदे थे. जन्म पैठण में हुआ. कर्मभूमि नांदेड़ रही. स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी रहे शंकरराव ने पूरा राजनीतिक जीवन ही जनकल्याण के लिए समर्पित कर दिया.
पैठण में जायकवाड़ी परियोजना को साकार नहीं होने देने के लिए पूरा विपक्ष एकजुट हो गया था लेकिन दमदार व्यक्तित्व के धनी स्व. शंकरराव चव्हाण ने विरोधियों को समझाकर, जरूरत पड़ने पर भारी विरोध का भी सामना करते हुए नाथसागर को साकार किया था. अगर जायकवाड़ी न होता तो औरंगाबाद की प्यास कैसे बुझती, कल्पना कर पाना ही मुश्किल है. केवल मराठवाड़ा या विदर्भ ही नहीं बल्कि समूचे राज्य की सिंचाई क्षमता का बारीकी से अध्ययन कर उन्होंने अपने प्रखर नेतृत्व की छाप महाराष्ट्र से दिल्ली तक छोड़ी. जन्मशताब्दी वर्ष संपन्न होने पर आज उनकी जयंती मनाते वक्त शंकररावजी के जनकल्याणकारी जीवंत कार्यों का सिलसिला ही आंखों के सामने आ जाता है.
मराठवाड़ा को निजाम के क्रूर शासन से चंगुल से मुक्त कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानी रामानंद तीर्थ के निर्देश पर शंकरराव चव्हाण उमरखेड कैंप पहुंचे थे. हैदराबाद में वकील का काम छोड़कर वे स्वतंत्रता संग्राम में कूदे थे. जन्म पैठण में हुआ. कर्मभूमि नांदेड़ रही. स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी रहे शंकरराव ने पूरा राजनीतिक जीवन ही जनकल्याण के लिए समर्पित कर दिया. निजाम का शासन समाप्त होने के बाद हैदराबाद स्टेट में मराठी, तेलुगू और कन्नड़ भाषी लोग थे. उस वक्त हैदराबाद के विभाजन को दिल्ली का विरोध था. इसी दौरान कांग्रेस में शंकरराव चव्हाण के युवा नेतृत्व का उदय हुआ था. हैदराबाद राज्य के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरु की मंजूरी लेने में शंकरराव की भूमिका अहम थी. वह नांदेड़ के जनता द्वारा निर्वाचित पहले नगराध्यक्ष थे. उस समय पालिका का कामकाज हैदराबाद कानून के मुताबिक चलता था.
शुरुआत से ही पानी और सिंचाई उनके अध्ययन का प्रिय विषय थे. शंकरराव को यह बात रास नहीं आ रही थी कि तेलंगाना का पक्ष लेने वाले हैदराबाद के मुख्यमंत्री बी. रामकृष्णराव, बांध बनाने की बात पर तर्क देते थे कि बांध से आपकी जमीन बेकार चली जाएगी. उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु से मिलकर हैदराबाद के मुख्यमंत्री की शिकायत कर दी. पंडित नेहरुजी को यह बात जरूर तारीफ के काबिल लगी होगी कि एक युवा नेता व्यक्तिगत समस्या के बजाय सार्वजनिक समस्याएं लेकर मुख्यमंत्री तक जाता है और उनके नहीं सुनने पर सीधे प्रधानमंत्री से शिकायत करता है. उन्होंने 1952 से 56 तक नांदेड़ का नगराध्यक्ष पद, उसके बाद 1956 में द्विभाषी मंत्रिमंडल में उपमंत्री, महाराष्ट्र की स्थापना के बाद राज्य में दो बार मुख्यमंत्री, देश के वित्तमंत्री, गृह व रक्षा
मंत्री पद भी संभाला.
घोड़ा कीचड़ में फंसा लोकनिष्ठा का शंकररावजी ने एक बार जीवंत उदाहरण पेश किया. उनके विधानसभा चुनाव का खर्च 250 रु. था. पोस्टर, बैनर का खर्च खुद कार्यकर्ता करते थे. जहां संकट हो वहां दौड़कर पहुंचने की प्रवृत्ति उनकी थी. निर्वाचन क्षेत्र के एक गांव के दौरे पर जाते वक्त रास्ते में उनका घोड़ा कीचड़ में फंस गया. उसे जैसे-तैसे निकालकर शंकररावजी बड़े संघर्ष के बाद उस गांव तक पहुंच ही गए. संकट के वक्त दौड़कर आने वाले व्यक्ति की छवि ने जनता में उनके प्रति अपनापन बढ़ा दिया. आम आदमी से संबंधों की यह परंपरा परिवार में कायम है. नई पीढ़ी का उदय हुआ. अशोकराव चव्हाण दो बार राज्य के मुख्यमंत्री बने.
आधनिक भागीरथ
शंकरराव चव्हाण की दूरदृष्टि की वजह से राज्य की सिंचाई परियोजनाओं को गति मिली. जायकवाड़ी, विष्णुपुरी, इसापुर, मनार, सिद्धेश्वर, येलदरी, दूधना, अपर वैनगंगा, मांजरा, पूर्णा जैसी अनेक परियोजनाओं को साकार करने में उनका बेशकीमती योगदान रहा. या यूं भी कहा जा सकता है कि उन परियोजनाओं को साकार करने के लिए उनके भागीरथी प्रयासों के कारण ही उन्हें ‘आधुनिक भागीरथ’ भी कहा जाता है. केवल मराठवाड़ा, विदर्भ ही नहीं कोकण जैसे पहाड़ी इलाके में भी सिंचाई योजनाओं को कैसे साकार किया जा सकता है, इसका व्यवस्थित अध्ययन शंकररावजी ने किया था. नर्मदा के पानी पर महाराष्ट्र के हक की बात सबसे पहले शंकरराव चव्हाण ने ही समझाई थी.
कठोर प्रशासक व जवाबदारी
शंकरराव चव्हाण की राजनीति मूल्यों पर आधारित थी. उन्होेंने कोई भी काम चुनावों को सामने रखकर नहीं किया. निष्काम सेवाभाव और रचनात्मक काम करते वक्त उनके भीतर एक कठोर प्रशासक के भी दर्शन हुए. बदले की राजनीति, गुटबाजी, दूसरे दलों में सेंध जैसी कुप्रथाओं से उन्हें चिढ़ थी. राजनीतिक मतभेदों को उन्होंने कभी भी मनभेद में नहीं बदलने दिया.
दिल्ली पर छाप छोड़ी
महाराष्ट्र में उनके ही कार्यकाल में रोजगार गारंटी योजना ने गति पकड़ी. कपास एकाधिकार योजना शुरू हुई. सचिवालय को मंत्रालय नाम उन्होंने ही दिया. किसानों का कर्ज पहली बार माफ करने वाले शंकररावजी ही थे. राज्य की ही तरह केंद्र में स्व. इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पी.वी. नरसिंहराव के मंत्रिमंडल में कर्मठ मंत्री के तौर पर उन्होंने अपनी छाप छोड़ी. जनकल्याण को ही अपनी जिंदगी का ध्येय मानने वाले स्व. शंकरराव चव्हाण को विनम्र आदरांजलि