राजेंद्र दर्डा का ब्लॉग: महाराष्ट्र के 60 वर्षों की गौरवशाली यात्रा
By राजेंद्र दर्डा | Published: May 1, 2020 06:43 AM2020-05-01T06:43:23+5:302020-05-01T06:43:23+5:30
एक राज्य के रूप में 60 वर्ष कम लग सकते हैं लेकिन मानव जीवन के संदर्भ में विचार करें तो यह तीन पीढ़ियों की अवधि है. यदि हम महाराष्ट्र की स्थापना के समय की पीढ़ी और वर्तमान समय की पीढ़ी को देखें तो राज्य द्वारा की गई प्रगति का ग्राफ आंखों के सामने आ जाता है.
महाराष्ट्र की स्थापना को आज 60 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं. इस हीरक जयंती के उपलक्ष्य में महाराष्ट्र की जनता का अभिनंदन करते हुए मन गर्व से भरा हुआ है. लेकिन राज्य की गौरवशाली यात्रा के इस महत्वपूर्ण चरण को वर्तमान में कोरोना संकट की वजह से समारोहपूर्वक नहीं मना पाने के कारण मन में कहीं मायूसी भी है. फिर भी महाराष्ट्र के जुझारू इतिहास को देखते हुए विश्वास है कि इस संकट से भी हम सफलतापूर्वक बाहर निकल आएंगे.
कभी हार न मानने वाला अपना महाराष्ट्र भीषण अकाल, विनाशकारी भूकंप व प्रलयंकारी अतिवृष्टि और बाढ़ जैसी कितनी ही आपदाओं की मार को पूरी सामथ्र्य के साथ ङोलते हुए हर बार नई ताकत के साथ उभरा है. वर्तमान में कोरोना महामारी का सर्वाधिक प्रभाव महाराष्ट्र में दिखाई दे रहा है, फिर भी हीरक जयंती की शुभकामना देते हुए यकीन है कि इससे सफलतापूर्वक बाहर निकलने वालों में भी महाराष्ट्र ही सबसे आगे रहेगा.
मैं खुद को भाग्यशाली समझता हूं कि मुंबई सहित संयुक्त महाराष्ट्र के मंगल कलश को यशवंतराव चव्हाण द्वारा दिल्ली से लाए जाने के बाद से ही महाराष्ट्र की छह दशकों की यात्रा को मैंने देखा और महसूस किया है. हमारे परमपूज्य बाबूजी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जवाहरलालजी दर्डा की वजह से महाराष्ट्र की राजनीति और सामाजिक कार्यो को हम दोनों भाइयों ने बचपन से ही नजदीक से देखा है.
इतना ही नहीं बल्कि देश के एक अग्रणी, प्रगतिशील राज्य के रूप में महाराष्ट्र में होने वाले परिवर्तनों का भी निकटता से अनुभव किया है. इस महाराष्ट्र की सेवा करने का अवसर बाबूजी जवाहरलालजी दर्डा को मिला. वे कई वर्षो तक राज्य में मंत्री रहे. महाराष्ट्र की भलाई के लिए सदैव कार्यरत रहने का संस्कार उन्होंने हमें भी दिया.
यशवंतराव चव्हाण से उद्धव बालासाहब ठाकरे तक सभी मुख्यमंत्रियों को हम बहुत करीब से देख सके. इसके अलावा पत्रकार के रूप में उनका मूल्यांकन भी मैं कर सका. इनमें से चार मुख्यमंत्रियों स्व. विलासराव देशमुख, सुशीलकुमार शिंदे, अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चव्हाण के साथ मंत्री के रूप में काम करने का अवसर मुङो मिला. सभी मुख्यमंत्रियों ने महाराष्ट्र को बलशाली बनाने और महाराष्ट्र की संस्कृति को संरक्षित करने के लिए अथक प्रयास किया. लंबे समय तक महाराष्ट्र का नेतृत्व करने वाले वसंतराव नाईक के साथ हमारे पारिवारिक संबंध थे. बैरिस्टर अ.र. अंतुले ने 1982 में औरंगाबाद से लोकमत का लोकार्पण किया.
एक राज्य के रूप में 60 वर्ष कम लग सकते हैं लेकिन मानव जीवन के संदर्भ में विचार करें तो यह तीन पीढ़ियों की अवधि है. यदि हम महाराष्ट्र की स्थापना के समय की पीढ़ी और वर्तमान समय की पीढ़ी को देखें तो राज्य द्वारा की गई प्रगति का ग्राफ आंखों के सामने आ जाता है. जनता का राजा कैसा होना चाहिए, यह आदर्श देश के सामने पेश करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज इसी महाराष्ट्र की माटी में हुए. स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस को लोकाभिमुख करने वाले लोकमान्य तिलक का जन्म इसी भूमि में हुआ और देश को अहिंसा के माध्यम से स्वतंत्रता दिलाने वाले महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का शंखनाद महाराष्ट्र के सेवाग्राम की कुटी से ही किया.
देश में महिला शिक्षा का शुभारंभ करने वाले महात्मा ज्योतिबा फुले व सावित्रीबाई फुले हों या जाति की बेड़ियां तोड़ने वाले संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहब आंबेडकर, वे महाराष्ट्र के ही थे! विविध विचार-प्रवाह महाराष्ट्र की भूमि में विकसित हुए और भारत भर में फले-फूले. आरएसएस की स्थापना यहां हुई और वाम विचारों की शाखा का भी यहां विस्तार हुआ. इस सर्वसमावेशी भावना को महाराष्ट्र के लोगों ने हमेशा पोषित किया है. शाहू-फुले-आंबेडकर के इस प्रगतिशील महाराष्ट्र में ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी ज्ञान, उद्योग, कला, खेल, संगीत आदि विभिन्न क्षेत्रों के अनेक कर्मयोगी हुए.
भारतीय सिनेमा के जनक दादासाहब फाल्के, भारतरत्न पं. भीमसेन जोशी, सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर, सचिन तेंदुलकर, डॉ. वसंत गोवारीकर, जयंत नार्लीकर, डॉ. रघुनाथ माशेलकर, डॉ. विजय भटकर जैसे एक से एक रत्न महाराष्ट्र की धरती ने दुनिया को दिए हैं. टाटा, बिड़ला, अंबानी, अजीम प्रेमजी, बजाज, किलरेस्कर जैसे कई प्रसिद्ध उद्यमी भी अपने महाराष्ट्र के हैं.
सुधारकों और सुधारों की कर्मभूमि महाराष्ट्र से वारकरी भक्तिसंप्रदाय देश भर में फैला. ‘आनंदवन, एक गांव-एक पाणवठा, अंधश्रद्धा निमरूलन’ जैसे विभिन्न सामाजिक आंदोलन भी इसी धरती पर हुए. समाज को जागृत करने वाले परिवर्तनवादी दलित साहित्य का प्रवाह भी पहली बार महाराष्ट्र में ही हुआ. संगीत रंगभूमि के शिल्पकार अण्णासाहब किलरेस्कर ने पारसी व मराठी नाटय़संस्कृति का समन्वय 18वीं शताब्दी में किया. कला, विज्ञान, अर्थशास्त्र हो या राजनीति, महाराष्ट्र की यशोगाथा लगातार ऊपर उठ रही है.
पिछले 60 वर्षो में महाराष्ट्र ने अनेक मामलों में देश को नई दिशा दिखाई है. ग्रामीण क्षेत्रों की कायापलट करने वाला सहकार क्षेत्र भी देश को महाराष्ट्र की देन है. लोकतांत्रिक व्यवस्था को सबसे निचले स्तर तक पहुंचाने वाली पंचायत राज्य व्यवस्था सर्वप्रथम महाराष्ट्र में ही साकार हुई. आज देश भर में लागू होने वाली रोजगार गारंटी योजना सबसे पहले महाराष्ट्र में ही शुरू हुई. अंधश्रद्धा निमरूलन, सूचना का अधिकार और महिलाओं को पंचायतों में आरक्षित सीटें देने के लिए कानून बनाने में महाराष्ट्र ने अग्रणी भूमिका निभाई.
इन 60 वर्षो में महाराष्ट्र की बुद्धिमान जनता ने जिन-जिन हाथों में सत्ता की बागडोर सौंपी है, उन सभी ने व्यक्तिगत प्राथमिकताओं को एक तरफ रख कर राज्य के हित को ही सवरेपरि मानकर काम किया. उद्योग क्षेत्र में महाराष्ट्र देश में हमेशा अग्रणी रहा है. पहले की तरह आज भी देश के अनेक राज्यों के लोगों में रोजी-रोटी के लिए महाराष्ट्र की ओर रुख करने का आकर्षण कायम है.
आज भी अनेक बड़ी चुनौतियां हैं. स्कूल व उच्च शिक्षा के संदर्भ में छात्रों को अच्छी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है, लेकिन इसके बाद उन्हें रोजगार नहीं मिलता. स्कूल के बाद इन बच्चों को खेतों में मेहनत करना अच्छा नहीं लगता. इसके कारण युवा शहरों की ओर रुख करते हैं. हालत यह है कि इंजीनियरिंग कॉलेजों में आधी सीटों के लिए भी विद्यार्थी नहीं मिल रहे हैं.
चीनी मिलों व इसके लिए उगाए जाने वाले गन्ने के कारण भूजल स्तर 200-300 मीटर नीचे तक चला गया है. ऐसी स्थिति देखने को मिल रही है कि बांधों और नहरों का पानी भी गन्ने की फसल को दे दिए जाने के कारण नदी के निचले इलाकों में पानी की कमी के कारण खेती उजड़ गई है और गांवों में गर्मियों में पीने के लिए पानी नहीं है. अनेक गांवों को गर्मियों में टैंकर पर निर्भर रहना पड़ता है. कृषि और सिंचाई पर अरबों रु. खर्च करने के बावजूद हम लाभदायक खेती का गणित नहीं बना पाए हैं.
संकट के समय में महाराष्ट्र कभी पीछे नहीं हटा. किसी भी राज्य में संकट आने पर महाराष्ट्र ने मदद का हाथ आगे बढ़ाया है. कोरोना की वजह से वर्तमान में पूरी दुनिया पर संकट है. वर्तमान धूसर हो रहा है और भविष्य के बारे में अनिश्चितता दिखाई दे रही है. इस चिंताजनक स्थिति को बदलने के लिए केवल संयम की जरूरत है. महाराष्ट्र इसे दिखा रहा है. हम सब मिलकर कोरोना को पराजित करने का दृढ़ निश्चय करें. आइए आज महाराष्ट्र दिवस पर लॉकडाउन का पालन करने,
सुरक्षित और स्वस्थ रहने का संकल्प लें!
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श्री महाराष्ट्र देशा।।