किसान आंदोलन को लेकर राजस्थान के मंत्री ने मोदी सरकार का सख्त विरोध किया- ये किसान हैं, आतंकवादी नहीं!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: November 26, 2020 08:13 PM2020-11-26T20:13:32+5:302020-11-26T20:16:22+5:30
राजस्थान के मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने मोदी सरकार का सख्त विरोध किया- शर्म करो किसान विरोधी भाजपा सरकार, ये किसान हैं आतंकवादी नहीं.
किसान आंदोलन को लेकर प्रदर्शनकारी किसान और मोदी सरकार आमने-सामने हैं और जिस तरह से किसानों को रोका जा रहा है, उसको लेकर ज़ोरदार विरोध हो रहा है.
राजस्थान के मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने मोदी सरकार का सख्त विरोध किया- शर्म करो किसान विरोधी भाजपा सरकार, ये किसान हैं आतंकवादी नहीं. इतनी ठंड में काले कृषि कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों पर आंसू गैस व वॉटर कैनन से हमला बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है व भाजपा सरकार का असली किसान विरोधी क्रूर चेहरा उजागर करता है.
इससे पहले योगेन्द्र यादव ने किसानों को रोकने को लेकर जो इंतजाम किए गए थे, उसके फोटो के साथ ट्वीट किया था- बैरिकेड्स लगाए गए, वाटर कैनन हैं, संविधान दिवस की पूर्व संध्या पर यह सब है, क्योंकि किसान अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए दिल्ली आ रहे, लेकिन सरकार को यह याद रखना चाहिए कि लोकतंत्र में जनता ही सर्वोच्च है.
कोरोना का हवाला देने पर उनका कहना हैं कि- किसान आंदोलन को कोरोना नियमों का उल्लंघन कहा जा रहा, पर जब हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने इसी इलाके में रविवार को रैली की थी तब कोरोना नहीं था क्या? सरकार के नियम मंत्री और किसान के लिए अलग अलग क्यूं?
बहरहाल, किसान एक बार फिर सड़कों पर हैं, कारण वही- कृषि से जुड़े तीन कानून, जो करीब डेढ़ महीने पहले ही केन्द्र सरकार ने बनाए हैं. इन तीनों कानून के विरोध में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और आसपास के किसान दिल्ली चलो की अपील के साथ आंदोलन कर रहे हैं.
खबरों पर भरोसा करें तो इस किसान आंदोलन को देशभर के लगभग पांच सौ संगठनों का समर्थन प्राप्त है और किसानों को रोक जाने के मुद्दे पर कहा जा रहा है कि किसानों को जहां भी दिल्ली जाने से रोका जाएगा, किसान वहीं बैठकर विरोध प्रदर्शन करेंगे.
इन कानूनों को लेकर किसान इसलिए नाराज़ हैं कि इनके कारण भविष्य में किसान कमजोर होते चले जाएंगे. उन्हें डर है कि एमएसपी की व्यवस्था खत्म हो जाएगी और किसान यदि मंडियों के बाहर उपज बेचेंगे तो मंडियां ही खत्म हो जाएंगी. यही नहीं, ई-नाम जैसे सरकारी पोर्टल का क्या होगा?
किसानों का यह भी मानना है कि कॉन्ट्रैक्ट और एग्रीमेंट करने से किसानों का पक्ष तो कमजोर होगा ही, वे सही कीमत भी तय नहीं कर पाएंगे. छोटे किसान कैसे यह सब कर पाएंगे, मतलब- विवाद की स्थिति में बड़ी कंपनियों को लाभ होगा और किसान को नुकसान. इससे बड़ी कंपनियां की आवश्यक वस्तुओं के संग्रहण की प्रवृत्ति बढ़ेगी, जिसके नतीजे में कालाबाजारी होगी!