रहीस सिंह का ब्लॉग: चीन के मनोविज्ञान को समझकर ही उसे दे सकते हैं मात

By रहीस सिंह | Published: June 27, 2020 05:24 AM2020-06-27T05:24:30+5:302020-06-27T05:24:30+5:30

Rahis Singh's blog: Only by understanding psychology of China can you beat him | रहीस सिंह का ब्लॉग: चीन के मनोविज्ञान को समझकर ही उसे दे सकते हैं मात

चीन को काउंटर करने के लिए भारत को फास्ट, फारवर्ड तथा मल्टीटैक्टिक्स स्ट्रेटेजी को अपनाना होगा

Highlights चीन इस समय कमोबेश क्राइसिस ऑफ आइडेंटिटी के संकट से गुजर रहा है. चीन लगभग पिछले एक दशक से बीजिंग, मॉस्को, इस्लामाबाद, प्योंगयांग क्वाड्रिलैटरल बनाने की कोशिश कर रहा है

इस समय भारत-चीन संबंध बेहद नाजुक दौर में है और फिलहाल अभी तो सुलझने वाला कोई सिरा भी नजर नहीं आ रहा. चीन अपनी हरकतों पर परदा डालते हुए यह आरोप लगा रहा है कि भारतीय फ्रंट-लाइन के सैनिकों ने बॉर्डर प्रोटोकॉल तोड़ा. चीनी सरकार का मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स तो धमकी भरे अंदाज में लिख रहा है कि अगर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव बढ़ा तो भारत मुसीबत में फंस सकता है. उसने यह भी लिखा है कि तनाव बढ़ने की स्थिति में भारत को चीन के अलावा पाकिस्तान और नेपाल की सेना का भी दबाव झेलना पड़ेगा. अब सवाल यह उठता है कि चीनी मनोविज्ञान क्या है और वह भारत को किस रूप में देखता है?

दरअसल चीन के दो चेहरे हैं और उसी आधार पर वह भारत के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ाना चाहता है. एक चेहरा उत्पादक और विक्रेता अथवा मार्केट मैनेजर का है, जिसे भारतीय बाजार से बड़ा लाभ हासिल होता है. दूसरा चेहरा एक ऐसे जियो स्ट्रैटेजिक प्रतिस्पर्धी का है जो किसी भी कीमत पर दुनिया के किसी भी फ्रंट पर भारत को लीडर के रूप में या डिसीजन मेकर के रूप में नहीं देखना चाहता. इसलिए विश्व व्यवस्था जब भी भारत को कोई अवसर प्रदान करती है या वैश्विक मंच पर भारत चीन से अधिक विश्वास और ध्यानाकर्षण हासिल करता है और कूटनीतिक बाधा डालने में भी कामयाब नहीं होता तो वह इसी प्रकार के सीमा विवाद या जियो स्ट्रैटेजिक षड्यंत्रों को आगे लाता है.

अगर थोड़ा सा बैक फ्लैश में जाएंगे तो स्पष्ट हो जाएगा कि डोकलाम पर चीन द्वारा पैदा किया गया विवाद उसकी इसी तरह की रणनीति का हिस्सा था. आज के वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य पर गौर करें तो चीन एक अविश्वासी और षड्यंत्रकारी होने के साथ-साथ एक साम्राज्यवादी देश के रूप में दिखाई देगा. दुनिया यह प्रश्न कर रही है कि वुहान की एक लैब से जन्मे वायरस ने चीन के सिर्फ एक राज्य में ही अपने पांव पसारे और शेष पूरी दुनिया को अपना शिकार बना लिया, आखिर क्यों? इसलिए क्योंकि चीन ने सच को छुपाया? उसने सिर्फ अपने आर्थिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए वैश्विक समुदाय के जीवन को संकट में डाल दिया. इस अविश्वास के कारण चीन इस समय कमोबेश क्राइसिस ऑफ आइडेंटिटी के संकट से गुजर रहा है.

चीन लम्बे समय से कुछ मोर्चो पर रणनीतिक रूप से कार्य करता हुआ दिख रहा है. भारत इससे वाकिफ है लेकिन वह चीन को चीन के चश्मे से नहीं देख रहा है. ध्यान रहे कि चीन लगभग पिछले एक दशक से बीजिंग, मॉस्को, इस्लामाबाद, प्योंगयांग क्वाड्रिलैटरल बनाने की कोशिश कर रहा है. हालांकि मॉस्को पूरी तरह से इस धुरी का हिस्सा नहीं बन पा रहा क्योंकि वह बिग ब्रदर सिंड्रोम से पीड़ित है और बीजिंग उसे लीडरशिप दे नहीं सकता. चूंकि राष्ट्रपति पुतिन रूस को सोवियत युग में ले जाना चाहते हैं, इसलिए यह संभव नहीं है कि वे बीजिंग की लीडरशिप को स्वीकार कर लें. ऐसे में मॉस्को, बीजिंग, प्योंगयांग और इस्लामाबाद के बीच बना रणनीतिक चतुभरुज ढीला-ढाला है. ट्रम्प-किम मुलाकात के बाद यह और भी कमजोर पड़ गया.  

बहरहाल, चीन चेकबुक डिप्लोमेसी के साथ-साथ ‘डिप्लोमेसी बाई टेरर’ के जरिए आगे बढ़ना और भारत को घेरना चाहता है. अपने इस मिशन में वह भारत के पड़ोसी देशों में सफल भी हो रहा है. इसके कुछ कारण हैं. प्रथम- भारत के अधिकांश पड़ोसी ‘स्माल स्टेट सिंड्रोम’ के शिकार हैं. द्वितीय- भारत के पड़ोसी देश वित्त के अभाव से गुजरते रहते हैं और चीन अपनी चेकबुक डिप्लोमेसी के जरिये उनकी फौरी आवश्यकताएं एवं अपने उद्देश्य पूरा कर रहा है. तृतीय- विभिन्न प्रयासों के बावजूद भारत के पड़ोसियों के मनोविज्ञान में यह विषय बना हुआ है कि भारत बिग ब्रदर सिंड्रोम से ग्रस्त है इसलिए वह उनके साथ बराबरी का संबंध स्थापित करना नहीं चाहता.

यही वजह है कि चीन ने ग्वादर से सित्तवै तक हिंद महासागर में स्ट्रिंग ऑफ पल्र्स के जरिए भारत को घेरने की रणनीति को बहुत हद तक अमली जामा पहनाने में सफलता हासिल कर ली, फिर मलक्का से ग्वादर होते हुए जिबूती तक हिंद महासागर में दोहरी दीवार निर्मित कर ली और काश्गर से ग्वादर तक एक रणनीतिक कॉरिडोर की बुनियाद भी रख दी. हालांकि भारत ने चाबहार से असेम्पशन आइलैंड के बीच जो लिंक तैयार किया है वह चीन की मैरीटाइम स्ट्रैटेजी में सुराख का काम करेगा लेकिन चीन को काउंटर करने के लिए भारत को फास्ट, फारवर्ड तथा मल्टीटैक्टिक्स स्ट्रेटेजी को अपनाना होगा और चीन की सप्लाई चेन को ब्रेक करना होगा व चीन को उसी के चश्मे से देखना होगा.

Web Title: Rahis Singh's blog: Only by understanding psychology of China can you beat him

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