क्वाड से डरा चीन आसियान से चाहता है दोस्ती, शोभना जैन का ब्लॉग
By शोभना जैन | Published: June 12, 2021 01:21 PM2021-06-12T13:21:01+5:302021-06-12T13:22:58+5:30
भारत-चीन रिश्तों की बात फिलहाल न भी करें तो खासकर अमेरिका, इंगलैंड जैसे पश्चिमी देशों से वह अलग-थलग सा पड़ गया है.
भारत सहित अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया के अनौपचारिक गठबंधन (क्वाड) समूह को लेकर बौखलाए चीन ने इस सप्ताह क्षेत्न के पड़ोसी देशों के संगठन आसियान के विदेश मंत्रियों की बैठक बुलाई.
यह बैठक ऐसे वक्त हुई जब कोविड की उत्पत्ति को लेकर चीन संदेह से घिरी अपनी भूमिका को लेकर पहले से ही दुनिया भर में आलोचनाओं के केंद्र में है और भारत-चीन रिश्तों की बात फिलहाल न भी करें तो खासकर अमेरिका, इंगलैंड जैसे पश्चिमी देशों से वह अलग-थलग सा पड़ गया है. रूस फिलहाल भले ही चीन के साथ खड़ा हो लेकिन अमेरिका के साथ उसका 36 का आंकड़ा चल रहा है.
इन तमाम समीकरणों के बीच, पिछले सप्ताह चीन के पेइचिंग के थियानमेन चौक पर जून 1989 में लोकतंत्न बहाली के समर्थन में इकट्ठा हुए छात्नों के दमनचक्र की 32वीं बरसी पर दुनिया का ध्यान एक बार फिर चीन की दमनकारी नीतियों पर गया. दुनिया ने देखा कि हांगकांग सहित चीन के अंदर भी आंतरिक असंतोष को दबाने के लिए दमनचक्र जारी हैं, साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह अपने विस्तारवादी एजेंडा और क्षेत्न में वर्चस्व बढ़ाने को लेकर और आक्रामक हो गया है.
बहरहाल, चीन अब दक्षिण चीन सागर में क्षेत्न के अपने कुछ पड़ोसी देशों के साथ विवाद के बावजूद इन 10 देशों के दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) के साथ दोस्ती बढ़ाने के नाम पर अपना वर्चस्व बढ़ाना चाहता है. इन देशों के साथ रिश्तों की बात करें तो ‘आसियान’ के सदस्य फिलीपींस ने दक्षिण चीन सागर में अपने दावे वाले एक क्षेत्न पर चीनी नौका की मौजूदगी को लेकर बार-बार शिकायत की है और अन्य देश मलेशिया ने पिछले सप्ताह उसके हवाई क्षेत्न में 16 चीनी सैन्य विमानों की घुसपैठ पर विरोध जताया तथा इस घटना को ‘राष्ट्रीय संप्रभुता एवं हवाई सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा’ बताया.
जबकि दक्षिण चीन सागर में समुद्री मार्ग को अपना क्षेत्न बताए जाने को लेकर वियतनाम से उसका विवाद चल ही रहा है या यूं कहें कि कुल मिलाकर चीन पूरे दक्षिण चीन सागर क्षेत्न के अपना होने का दावा करता रहा है. इस क्षेत्न के आसियान देशों मलेशिया, वियतनाम फिलीपींस, ब्रुनेई सभी से द्वीपों के स्वामित्व के दावों को लेकर उसका विवाद चल ही रहा है.
इन स्थितियों में चीन किस तरह से इन देशों के साथ नजदीकियां बढ़ाने की जुगत बिठा रहा है, यह घटनाक्रम गौर करने लायक है. ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड तथा वियतनाम आसियान के सदस्य देश हैं. आसियान चीन संवाद के रिश्तों की 30 वीं वर्षगांठ पर आयोजित इस बैठक के बाद चीन के विदेश मंत्नालय द्वारा जारी बयान का यह अंश विशेष ध्यान देने योग्य है, ‘भले ही पड़ोसियों के बीच कई मर्तबा तनाव आ गया हो, वे आपसी विरोधाभासों को क्षेत्नीय शांति और स्थिरता के लिए उन्हें सहयोग में बदल सकते हैं.’
इस बयान में कहा गया है कि हमें मिलकर दक्षिण चीन सागर क्षेत्न में स्थिरता बनाए रखनी होगी और ऐसी एकतरफा कार्रवाइयों से बचना होगा जिससे विवाद बढ़ें. साथ ही एक और अहम बिंदु को देखें तो बयान में सागर के चर्चित या यूं कहे कि चीन के वर्चस्व जमाने वाले कदमों की वजह से विवादों का केंद्र बने ‘जलमार्गों’ के लिए जल्द ही आचार संहिता को लागू किए जाने पर बल दिया गया है.
निश्चय ही यह बयान चीन की इस क्षेत्न के देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्नीय समीकरणों के चलते उसकी नीयत और मंशा उजागर करता है. वैसे खबरों के अनुसार बैठक में कोविड-19 के कारण प्रभावित पर्यटन व अन्य आर्थिक आदान-प्रदान बहाल करने तथा महामारी से जंग में और अधिक समन्वित प्रयास व व्यावहारिक टीका पासपोर्ट के मुद्दे पर चर्चा हुई. चीन के विदेश मंत्नी वांग यी के अनुसार चीन ने इन देशों को कोविड महामारी से निबटने के लिए जल्द से जल्द मिलकर काम करने का भरोसा दिलाया.
उन्होंने कहा कि चीन 10 करोड़ टीका व कोरोना से निबटने के लिए जरूरी उपकरण दे रहा है.दरअसल इस बैठक के जरिये लगता यही है कि क्वाड की चुनौतियों से आशंकित चीन की मंशा अब क्षेत्न के आसियान देशों के साथ निकट आर्थिक सहयोग बढ़ाना और कोविड से उबरने के प्रयासों में इन देशों को अपने साथ लाना या यूं कहें कि नजदीक से जोड़कर अपने हित साधना ही प्रतीत होता है.
चीन के विदेश मंत्नी वांग यी की बैठक में कही गई वे बातें भी खासी अहम हैं जिसमें उन्होंने चीन आसियान रिश्तों को लेकर व्यापक सामरिक साझीदारी पर विचार करने का आह्वान किया. चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव के बीच चीन भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया और विशेष तौर पर अमेरिका को, इन देशों के समूह ‘क्वाड’ को अपने विस्तारवादी एजेंडा को आगे बढ़ाने में खतरा मानता है और उसकी जमकर आलोचना कर रहा है. हाल ही में उसने ‘क्वाड’ की आलोचना और भी बढ़ा दी है.
चीन के विदेश मंत्नी ने हाल की श्रीलंका और बांग्लादेश यात्ना के दौरान उन देशों से किसी ‘सैन्य गठबंधन’ में शामिल नहीं होने का आह्वान किया. गौरतलब है कि अपने विस्तारवादी एजेंडे पर किसी प्रकार का अंकुश लग जाने से आशंकित चीन ‘क्वाड’ को ‘सैन्य गठबंधन’ की परिभाषा दे रहा है.
चीन द्वारा इसे एशियाई नाटो बताए जाने पर विदेश मंत्नी डॉ. एस. जयशंकर यह कहकर सख्त आपत्ति जता चुके हैं कि ‘इस तरह की शब्दावली वे ही इस्तेमाल कर सकते हैं, जिन के दिमाग में ये सब चलता है.’ विदेशी मामलों के एक जानकार के अनुसार, भारत क्वाड का अहम साझीदार है लेकिन उसकी नीति बहुत साफ है. भारत किसी देश की संप्रभु नीतियों में कभी भी दखल नहीं देता है.