प्रो. संजय द्विवेदी का ब्लॉग: ‘मूक’ समाज को आवाज देकर ही उनके ‘नायक’ बने बाबासाहब
By प्रो. संजय द्विवेदी | Published: April 14, 2021 02:46 PM2021-04-14T14:46:30+5:302021-04-17T08:16:23+5:30
बाबासाहब भीमराव आंबेडकर की आज 130वीं जयंती देश मना रहा है. डॉ. आंबेडकर का पत्रकारिता से भी पुराना नाता रहा है. उन्होंने 65 साल जिंदगी में करीब 36 वर्ष तक पत्रकारिता की.
‘अगर कोई इंसान, हिंदुस्तान के कुदरती तत्वों और मानव समाज को एक दर्शक के नजरिए से फिल्म की तरह देखता है तो ये मुल्क नाइंसाफी की पनाहगाह के सिवा कुछ नहीं दिखेगा.’ बाबासाहब भीमराव आंबेडकर ने आज से 100 वर्ष पूर्व 31 जनवरी 1920 को अपने अखबार ‘मूकनायक’ के पहले संस्करण के लिए जो लेख लिखा था, यह उसका पहला वाक्य है.
अपनी पुस्तक ‘पत्रकारिता के युग निर्माता: भीमराव आंबेडकर’ में लेखक सूर्यनारायण रणसुभे ने इसलिए कहा भी है कि ‘जाने - अनजाने बाबासाहब ने इसी दिन से दीन-दलित, शोषित और हजारों वर्षो से उपेक्षित मूक जनता के नायकत्व को स्वीकार किया था.’
आज के मीडिया को कैसे देखा जाए? यदि इस सवाल का जवाब ढूंढ़ना है, तो ‘मूकनायक’ के माध्यम से इसे समझना बेहद आसान है. इस संबंध में मूकनायक के प्रवेशांक के संपादकीय में डॉ. आंबेडकर ने जो लिखा था, उस पर ध्यान देना बेहद आवश्यक है.
डॉ. आंबेडकर लिखते हैं कि ‘मुंबई जैसे इलाके से निकलने वाले बहुत से समाचार पत्रों को देखकर तो यही लगता है कि उनके बहुत से पन्ने किसी जाति विशेष के हितों को देखने वाले हैं. उन्हें अन्य जाति के हितों की परवाह ही नहीं है. कभी-कभी वे दूसरी जातियों के लिए अहितकारक भी नजर आते हैं. ऐसे समाचार पत्न वालों को हमारा यही इशारा है कि कोई भी जाति यदि अवनत होती है, तो उसका असर दूसरी जातियों पर भी होता है. समाज एक नाव की तरह है. जिस तरह से इंजन वाली नाव से यात्ना करने वाले यदि जानबूझकर दूसरों का नुकसान करें, तो अपने इस विनाशक स्वभाव की वजह से उसे भी अंत में जल समाधि लेनी ही पड़ती है. इसी तरह से एक जाति का नुकसान करने से अप्रत्यक्ष नुकसान उस जाति का भी होता है जो दूसरे का नुकसान करती है.’
बाबासाहब ने ‘मूकनायक’ की शुरुआत की थी. इस समाचार पत्र के नाम में ही डॉ. आंबेडकर का व्यक्तित्व छिपा हुआ है. मेरा मानना है कि वे ‘मूक’ समाज को आवाज देकर ही उनके ‘नायक’ बने. बाबासाहब ने कई मीडिया प्रकाशनों की शुरुआत की. उनका संपादन किया. सलाहकार के तौर पर काम किया और मालिक के तौर पर उनकी रखवाली की.
मूकनायक के प्रकाशन के समय बाबासाहब की आयु मात्र 29 वर्ष थी. और वे तीन वर्ष पूर्व ही यानी 1917 में अमेरिका से उच्च शिक्षा ग्रहण कर लौटे थे. अक्सर लोग ये प्रश्न करते हैं कि एक उच्च शिक्षित युवक ने अपना समाचार-पत्र मराठी भाषा में क्यों प्रकाशित किया? वह अंग्रेजी भाषा में भी समाचार-पत्र का प्रकाशन कर सकते थे.
ऐसा करके वह सवर्ण समाज के बीच प्रसिद्धि पा सकते थे और अंग्रेज सरकार तक दलितों की स्थिति प्रभावी ढंग से रख सकते थे. लेकिन बाबासाहब ने ‘मूकनायक’ का प्रकाशन वर्षो के शोषण और हीनभावना की ग्रंथि से ग्रसित दलित समाज के आत्मगौरव को जगाने के लिए किया था. जो समाज शिक्षा से दूर था, जिसके लिए अपनी मातृभाषा मराठी में लिखना और पढ़ना भी कठिन था, उनके बीच जाकर ‘अंग्रेजी मूकनायक’ आखिर क्या जागृति लाता? इसलिए डॉ. आंबेडकर ने मराठी भाषा में ही समाचार पत्रों का प्रकाशन किया.
डॉ. आंबेडकर ने 65 वर्ष 7 महीने और 22 दिन की अपनी जिंदगी में करीब 36 वर्ष तक पत्रकारिता की. ‘मूकनायक’ से लेकर ‘प्रबुद्ध भारत’ तक की उनकी यात्रा, उनकी जीवन-यात्रा, चिंतन-यात्रा और संघर्ष-यात्रा का भी प्रतीक है.
मेरा मानना है कि ‘मूकनायक’.. ‘प्रबुद्ध भारत’ में ही अपनी और पूरे भारतीय समाज की मुक्ति देखता है. डॉ. आंबेडकर की पत्नकारिता का संघर्ष ‘मूकनायक’ के माध्यम से मूक लोगों की आवाज बनने से शुरू होकर, ‘प्रबुद्ध भारत’ के निर्माण के स्वप्न के साथ विराम लेता है.