गुवाहाटी उच्च न्यायालय का 10 साल पुराना वो फैसला और सीबीआई की संवैधानिकता पर सवाल! मोदी सरकार कर रही है अब बड़ी तैयारी
By प्रमोद भार्गव | Published: April 27, 2023 10:47 AM2023-04-27T10:47:22+5:302023-04-27T10:48:27+5:30
संविधान और कानून के जानकार अच्छी तरह से जानते हैं कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जैसी शक्तिशाली संस्था को आजादी के 75 सालों में भी संवैधानिक वैधता नहीं मिल पाई है. इसीलिए गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने इसे 10 साल पहले एक आदेश के जरिये असंवैधानिक संस्था करार देकर तहलका मचा दिया था. तब से यह संस्था सर्वोच्च न्यायालय के स्थगन आदेश पर क्रियाशील बनी हुई है. लेकिन अब केंद्र सरकार इसकी भूमिका और कार्यप्रणाली को वैधानिक श्रेणी में लाकर इसे देशव्यापी संस्था बनाने की तैयारी में है.
केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय इस सिलसिले में गृह मंत्रालय के साथ मिलकर नए कानून का ऐसा प्रारूप बनाएगा, जिसे संसद से पारित होने के बाद राज्य सरकारों से अनुमति लेने की बाध्यता नहीं रह जाएगी. अभी तक सीबीआई दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 1946 के तहत काम कर रही है. इस कानून की सीमाओं और वैधता पर विचार-विमर्श के बाद संसद की स्थाई समिति ने सिफारिश की है कि सीबीआई के लिए अलग से कानून बने.
सीबीआई की मौजूदा स्थापना का कानून संसद से कभी पारित ही नहीं हुआ. इसलिए गुवाहाटी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश इकबाल अहमद अंसारी और इंदिरा शाह की युगल खंडपीठ ने बीएसएनएल के अधिकारी नवेंद्र कुमार की याचिका पर सुनवाई के बाद सीबीआई को अवैधानिक संस्था ठहराया था. दरअसल सीबीआई ने नवेंद्र के खिलाफ भ्रष्टाचार का एक मामला 2001 में धारा 120 बी और आईपीसी की धारा 420 के तहत दर्ज किया था.
इस बाबत नवेंद्र कुमार ने सीबीआई के गठन को ही चुनौती जनहित याचिका के जरिये दे दी थी. हालांकि इस याचिका को एकल खंडपीठ ने खारिज कर दिया था, किंतु युगल पीठ ने सीबीआई के वजूद को ही अपने फैसले में नकार दिया था. अदालत ने कहा था कि संसद में कानून बनाए बिना, महज एक सचिव द्वारा तैयार किए प्रारूप व प्रस्ताव के मार्फत 1 अप्रैल 1963 को सीबीआई का गठन हो गया. इस पर तत्कालीन सचिव वी. विश्वनाथन ने दस्तखत किए थे. महज एक पृष्ठीय प्रस्ताव से प्रक्रिया पूरी कर ली गई थी.
इस प्रस्ताव को वैधानिक स्वरूप देने के क्रम में न तो कोई अध्यादेश जारी हुआ था और न ही कानून में कोई संशोधन हुआ. यह केंद्रीय कैबिनेट का फैसला भी नहीं था. राष्ट्रीय अभिलेखागार दिल्ली से मंगवाए गए सीबीआई के गठन के अभिलेखों से खुलासा हुआ कि इस कार्यकारी आदेश की स्वीकृति राष्ट्रपति से भी नहीं ली गई है. अतएव इसे विभागीय आदेश तो माना जा सकता है, किंतु भारत सरकार का कानूनी आदेश नहीं माना जा सकता. इस फैसले के बाद सीबीआई के कानूनी स्वरूप की समीक्षा और इसे कानूनी वजूद दिए जाने का अवसर आ गया है.